अलग-अलग यूनिट्स में होने वाली एकीकृत निर्माण प्रक्रिया पर भी लगेगी एक्साइज ड्यूटी; सुप्रीम कोर्ट ने CESTAT का आदेश रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि अलग-अलग इकाइयों (Units) द्वारा की जाने वाली निर्माण प्रक्रियाएं (Manufacturing Processes) आपस में जुड़ी हुई हैं और अंतिम उत्पाद (Final Product) बनाने के लिए एक निरंतर श्रृंखला का हिस्सा हैं, तो एक्साइज ड्यूटी (Excise Duty) के उद्देश्य से उन्हें संयुक्त रूप से देखा जाना चाहिए। जस्टिस पमिदीघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें दो अलग-अलग इकाइयों की गतिविधियों को विभाजित करके उन्हें छूट का लाभ दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि (Case Background)

यह मामला खुफिया एजेंसी द्वारा प्राप्त जानकारी पर आधारित जांच से शुरू हुआ, जिसमें ‘भाग्यलक्ष्मी प्रोसेसर इंडस्ट्री’ (यूनिट नंबर 1) और ‘फेमस टेक्सटाइल पैकर्स’ (यूनिट नंबर 2) शामिल थे। दोनों यूनिट्स एक ही कंपाउंड के भीतर स्थित थीं। 21 जनवरी 2003 को की गई तलाशी में पाया गया कि यूनिट नंबर 1 में बेल पैकिंग, मर्सराइजिंग और ब्लीचिंग मशीनरी थी, जबकि यूनिट नंबर 2 में बिजली की मदद से चलने वाली स्क्वीजिंग मशीन और स्टेंटरिंग मशीन लगी थी।

कमिश्नर ऑफ कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज ने एक कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि ये यूनिट्स बिजली की सहायता से सूती कपड़ों (Cotton Fabrics) की प्रोसेसिंग कर रही थीं और इसलिए वे नोटिफिकेशन नंबर 5/98-CE की एंट्री नंबर 106 के तहत छूट की हकदार नहीं थीं। यह नोटिफिकेशन उन सूती कपड़ों को छूट देता था जिन्हें बिना बिजली की सहायता के प्रोसेस किया गया हो।

शुरुआत में कमिश्नर ने दोनों यूनिट्स को संयुक्त रूप से और अलग-अलग (Jointly and Severally) उत्तरदायी ठहराया। CESTAT द्वारा रिमांड किए जाने के बाद, कमिश्नर ने मामले का पुनः न्यायनिर्णयन किया और पाया कि यूनिट नंबर 1 ग्रे फैब्रिक्स प्राप्त करती थी, जिसे ब्लीच और मर्सराइज किया जाता था। इसके बाद इसे बिजली का उपयोग करके स्क्वीजिंग और स्टेंटरिंग के लिए यूनिट नंबर 2 में भेजा जाता था, और अंत में बेलिंग और पैकिंग के लिए वापस यूनिट नंबर 1 में लाया जाता था। कमिश्नर ने निष्कर्ष निकाला कि यह पूरी प्रक्रिया निरंतर थी और बिजली की सहायता से पूरी की गई थी, इसलिए यूनिट नंबर 1 के खिलाफ मांग की पुष्टि की गई।

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प्रतिवादी फिर से CESTAT के पास गए। 5 अक्टूबर 2011 के आदेश द्वारा, CESTAT ने कमिश्नर के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दोनों यूनिट्स अलग-अलग साझेदारी वाली संस्थाएं थीं और उनकी गतिविधियों को एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता (Clubbed)। ट्रिब्यूनल ने माना कि यूनिट नंबर 1 ने मर्सराइजिंग और ब्लीचिंग के लिए बिजली का उपयोग नहीं किया था। राजस्व विभाग (Revenue) ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

पक्षों की दलीलें (Arguments of the Parties)

राजस्व विभाग की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल श्री राघवेंद्र पी. शंकर ने तर्क दिया कि CESTAT ने छूट अधिसूचना की एंट्री नंबर 106 को गलत समझा। उन्होंने कहा कि ग्रे फैब्रिक्स को अंतिम उत्पाद में बदलने में बिजली की सहायता से “प्रोसेस” शामिल था, विशेष रूप से यूनिट नंबर 2 में स्टेंटरिंग के दौरान। सीसीई बनाम राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स (1991) और इंप्रेशन प्रिंट्स बनाम सीसीई (2005) के फैसलों का हवाला देते हुए, उन्होंने दलील दी कि “यदि कच्चे माल को तैयार वस्तु में बदलने के लिए आवश्यक कई प्रक्रियाओं में से किसी में भी बिजली का उपयोग होता है, तो निर्माण को बिजली के उपयोग वाला माना जाएगा।”

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प्रतिवादियों के वकील श्री आशीष बत्रा ने CESTAT के निष्कर्षों का समर्थन किया। उन्होंने तर्क दिया कि दोनों यूनिट्स स्वतंत्र थीं और उनका स्वामित्व भी अलग था। उन्होंने कहा कि भले ही यूनिट नंबर 2 में स्टेंटरिंग में बिजली का उपयोग किया गया हो, लेकिन गतिविधियों को एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता क्योंकि यूनिट नंबर 2 के खिलाफ कारण बताओ नोटिस को हटा दिया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि CESTAT अंतिम तथ्य-खोज प्राधिकरण (Final Fact-finding Authority) है और उसने सही ठहराया है कि यूनिट नंबर 1 ने बिजली का उपयोग नहीं किया।

कोर्ट का विश्लेषण (Court’s Analysis)

सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल एक्साइज एक्ट, 1944 की धारा 2(f) के तहत “मैन्युफैक्चर” (Manufacture) की परिभाषा की जांच की। कोर्ट ने स्टैंडर्ड फायरवर्क्स इंडस्ट्रीज, शिवकाशी बनाम कलेक्टर ऑफ सेंट्रल एक्साइज के पूर्व निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया था कि यदि माल के निर्माण की किसी भी प्रक्रिया में बिजली की सहायता ली जाती है, तो छूट उपलब्ध नहीं होगी।

कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:

“मैन्युफैक्चर में विशिष्ट प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला शामिल मानी गई है। यह उन विभिन्न प्रक्रियाओं का संचयी प्रभाव (Cumulative Effect) है जिनसे कच्चा माल गुजरता है और उसके बाद निर्मित उत्पाद सामने आता है। आवश्यकता यह है कि अंतिम उत्पाद तक ले जाने वाली व्यक्तिगत प्रक्रियाएं एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ी होनी चाहिए।”

तथ्यों का विश्लेषण करते हुए, पीठ ने नोट किया कि प्रक्रिया यूनिट नंबर 1 में ब्लीचिंग और मर्सराइजिंग के साथ शुरू हुई, यूनिट नंबर 2 में स्क्वीजिंग और स्टेंटरिंग तक आगे बढ़ी, और यूनिट नंबर 1 में बेलिंग और पैकिंग के साथ समाप्त हुई।

कोर्ट ने माना कि CESTAT ने “दो यूनिट्स की अलग-अलग पहचान पर जोर देते हुए खुद को गलत दिशा में निर्देशित किया।” पीठ ने कहा:

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“जब ब्लीचिंग और मर्सराइजिंग से शुरू होकर, स्क्वीजिंग और स्टेंटरिंग तक जाने वाली और अंत में उत्पाद की बेलिंग और पैकिंग तक की ये सभी गतिविधियां ग्रे फैब्रिक्स को कॉटन फैब्रिक्स में बदलने की अभिन्न प्रक्रियाएं हैं, तो यह तथ्य शायद ही कोई अंतर पैदा करेगा कि इन प्रक्रियाओं को करने वाली यूनिट्स एक-दूसरे के लिए विशिष्ट (Exclusive) थीं।”

कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि यूनिट नंबर 2 के खिलाफ मांग की पुष्टि न होना अप्रासंगिक था क्योंकि “निर्माण की पूरी प्रक्रिया को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जिसमें अंतिम उत्पाद यूनिट नंबर 2 में एकीकृत प्रक्रिया के अधीन होने के बाद यूनिट नंबर 1 के हाथों में आता है।”

फैसला (Decision)

सुप्रीम कोर्ट ने कमिश्नर ऑफ कस्टम्स, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने 5 अक्टूबर 2011 के CESTAT के आदेश को रद्द कर दिया और 27 सितंबर 2006 के कमिश्नर के ‘ऑर्डर-इन-ओरिजिनल’ को बहाल कर दिया।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“CESTAT ने निर्माण की निरंतर प्रक्रिया को विभाजित करने में त्रुटि की और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रत्येक यूनिट एक अलग निर्माण प्रक्रिया कर रही थी, इसलिए एक यूनिट की गतिविधियों को दूसरे के साथ नहीं जोड़ा जा सकता था।”

मामले का विवरण:

  • केस शीर्षक: कमिश्नर ऑफ कस्टम्स, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स, राजकोट बनाम नरसीभाई करमसीभाई गजेरा व अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 3405-3407 ऑफ 2012 (2025 INSC 1374)
  • पीठ: जस्टिस पमिदीघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर

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