सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को सूचित किया गया कि झारखंड की एक महिला अपर जिला जज (एडीजे), जिनकी चाइल्ड केयर लीव की मांग को पहले एकल अभिभावक होने के बावजूद अस्वीकार कर दिया गया था, को अब झारखंड हाईकोर्ट से आंशिक राहत मिल गई है।
यह जानकारी Kashika M Prasad बनाम राज्य झारखंड मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने बताया कि हाईकोर्ट ने अब चाइल्ड केयर लीव मंजूर कर दी है, लेकिन यह अवधि याचिका में मांगी गई छुट्टी से काफी कम है।
“मुझे 92 दिन की छुट्टी दी गई है, जबकि मैंने 194 दिन की छुट्टी मांगी थी,” वकील ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि यह अवकाश जून से सितंबर तक का है, जबकि मूल रूप से दिसंबर से छुट्टी मांगी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद एसीआर में प्रतिकूल टिप्पणियों का आरोप
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता जज ने यह गंभीर आरोप भी लगाया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद उनके वार्षिक गोपनीय प्रविष्टि (ACR) में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं।
वकील ने कहा, “अब मेरी एसीआर में कुछ प्रविष्टियां की गई हैं। जो कि याचिका दाखिल करने के बाद की गईं। मैं अनुसूचित जाति से आती हूं और बड़ी संख्या में मामलों का निपटारा किया है। मैं सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वालों में से एक हूं। प्रदर्शन परामर्श के दौरान कुछ संकेतात्मक टिप्पणियां की गई हैं। कहा गया कि ये प्रतिकूल नहीं हैं। 23 मई को मुझे इसकी सूचना दी गई। कृपया समय का संयोग देखें।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि यह विषय मुख्य याचिका से संबंधित नहीं है और याचिकाकर्ता को इसके लिए अलग से आवेदन दायर करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा, “आप एक स्वतंत्र आवेदन दायर करें। यह एक ‘डायरेक्शन’ की मांग है। हम उनके जवाब दाखिल करने का निर्देश देंगे।”
हाईकोर्ट का पक्ष: लंबे अवकाश से न्यायिक कार्य बाधित हो सकता है
झारखंड हाईकोर्ट की प्रशासनिक ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि यह मुकदमा एक स्थानांतरण आदेश के बाद की स्थिति का परिणाम है। उन्होंने लंबी अवधि की चाइल्ड केयर लीव दिए जाने से उत्पन्न होने वाले संभावित दुष्परिणामों पर चिंता जताई।
“यह छुट्टी 2026 में एक 16 वर्ष की बच्ची की परीक्षा के लिए मांगी गई है। अनुच्छेद 32 के तहत याचिका स्थानांतरण आदेश के तुरंत बाद दायर की गई। पहली चिट्ठी में चाइल्ड केयर का कोई ज़िक्र नहीं था, केवल रांची या बोकारो स्थानांतरण की मांग की गई थी,” सिन्हा ने कहा।
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 6 जून के आदेश का सम्मान करते हुए पहले ही 94 दिन की छुट्टी दी जा चुकी है। “एक न्यायिक अधिकारी को करियर भर में अधिकतम 720 दिन की छुट्टी मिलती है। अगर आठ-आठ महीने की छुट्टी ली जाएगी तो जिले का न्यायिक कामकाज पूरी तरह प्रभावित होगा,” उन्होंने जोड़ा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल 92 दिन की दी गई छुट्टी को जारी रखने की अनुमति दी और झारखंड हाईकोर्ट को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
“अभी 92 दिन की छुट्टी ले लें। इस बीच, हाईकोर्ट जवाब दाखिल करे,” पीठ ने कहा।
सुनवाई समाप्त होने से पहले याचिकाकर्ता की ओर से यह अनुरोध भी किया गया कि छुट्टी मंजूर होने के बावजूद वेतन रोका न जाए, जिस पर हाईकोर्ट की ओर से सिन्हा ने जवाब दिया, “यह कल्पनात्मक बात है। किसी ने वेतन रोकने की बात नहीं की है।”
मामले की अगली सुनवाई अगस्त के पहले सप्ताह में होगी।