सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन शामिल हैं, ने एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि भले ही ट्रायल कोर्ट द्वारा मूल मुकदमा (Suit) खारिज कर दिया गया हो, फिर भी अपीलीय अदालत अपील के लंबित रहने के दौरान यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखने जैसी अंतरिम राहत देने का अधिकार रखती है। शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट और वडोदरा जिला न्यायालय के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें कहा गया था कि चूंकि मुकदमा खारिज हो चुका है, इसलिए अपील में कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों का यह दृष्टिकोण कानूनी रूप से “गलत” है।
कानूनी मुद्दा और परिणाम
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 41 नियम 5 के तहत एक अपीलीय अदालत को केवल इस आधार पर अंतरिम राहत देने से रोका जा सकता है कि जिस मुकदमे से अपील उत्पन्न हुई है, वह खारिज हो चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसका उत्तर नकारात्मक में दिया। पीठ ने व्यवस्था दी कि अपील मूल मुकदमे की ही निरंतरता होती है, और अपीलीय अदालत के पास अपूरणीय क्षति को रोकने के लिए उचित अंतरिम राहत देने की शक्ति होती है। कोर्ट ने मामले को दोबारा सुनवाई के लिए जिला न्यायालय को वापस भेज दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक संपत्ति विवाद से जुड़ा है, जहां अपीलकर्ताओं ने धोखाधड़ी के आधार पर दो सहमति डिक्री (Consent Decrees) की वैधता को चुनौती दी थी। इसके लिए दो अलग-अलग मुकदमे दायर किए गए थे: स्पेशल सिविल सूट नंबर 1036/1999 और स्पेशल सिविल सूट नंबर 1035/1999।
जहां स्पेशल सिविल सूट नंबर 1036/1999 को स्वीकार कर लिया गया और सहमति डिक्री रद्द कर दी गई, वहीं ट्रायल कोर्ट ने स्पेशल सिविल सूट नंबर 1035/1999 को खारिज कर दिया। इस खारिज आदेश से असंतुष्ट होकर, अपीलकर्ताओं ने वडोदरा के जिला न्यायाधीश के समक्ष रेगुलर सिविल अपील नंबर 205/2024 दायर की।
अपील के अंतिम निपटारे तक, अपीलकर्ताओं ने संपत्ति के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने हेतु एक आवेदन (Exhibit-5) दायर किया। जिला न्यायालय ने 25 नवंबर, 2024 को इस आवेदन को खारिज कर दिया। इसके बाद, अपीलकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने 10 जून, 2025 को जिला न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी।
निचली अदालतों का तर्क
राहत देने से इनकार करते हुए, जिला न्यायालय ने तर्क दिया कि चूंकि मुकदमा खारिज हो चुका है और दावा नामंजूर कर दिया गया है, इसलिए निष्पादन (Execution) के लिए कोई आदेश नहीं है। कोर्ट का कहना था कि अपीलकर्ता प्रतिकूल रूप से प्रभावित नहीं हैं क्योंकि “मुकदमे का निष्पादन नहीं होना है,” और इस प्रकार “किसी भी पर्याप्त नुकसान की संभावना नहीं है।”
इस दृष्टिकोण की पुष्टि करते हुए, हाईकोर्ट ने अपने आदेश के पैरा 11 में टिप्पणी की थी कि जब वादी मुकदमा हार गया है, तो जब तक अपीलीय अदालत द्वारा निर्णय/डिक्री को रद्द नहीं किया जाता, तब तक निषेधाज्ञा (Injunction) देने का प्रश्न ही नहीं उठता।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और विश्लेषण
जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस विश्वनाथन की पीठ ने निचली अदालतों के तर्क पर असहमति जताई। पीठ ने कहा कि यह मानना कि मुकदमा खारिज होने पर अपील में अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती, “सही नहीं” है।
1. अपील मुकदमे की निरंतरता है सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को दोहराया कि अपील मूल कार्यवाही की ही निरंतरता मानी जाती है। पीठ ने कहा:
“एक अपील को मूल मुकदमे की निरंतरता माना जाता है, और अपीलीय अदालत के पास अपूरणीय क्षति को रोकने और अपील के अंतिम निपटान तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए उचित अंतरिम राहत देने की शक्ति है।”
2. आदेश 41 नियम 5 का गलत सहारा शीर्ष अदालत ने प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा राहत देने से इनकार करने के लिए सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 पर भरोसा करने की आलोचना की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “पर्याप्त नुकसान” जैसे विचार, जो निष्पादन पर रोक लगाने के लिए होते हैं, तब सख्ती से लागू नहीं होते जब खारिज मुकदमे में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की गई हो।
3. अपीलीय अदालत की विवेकाधीन शक्ति कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अपीलीय अदालत को अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग न्यायिक रूप से करना चाहिए। यह निर्णय प्रथम दृष्टया मामले (Prima Facie Case), अपूरणीय क्षति और सुविधा के संतुलन (Balance of Convenience) के स्थापित सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अपीलीय अदालत को केवल मुकदमे के अंतिम परिणाम को नहीं देखना चाहिए, बल्कि स्वतंत्र रूप से विचार करना चाहिए।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
- आदेश रद्द: गुजरात हाईकोर्ट के 10 जून, 2025 के आदेश और जिला न्यायालय के 25 नवंबर, 2024 के आदेश को रद्द कर दिया गया।
- रिमांड: मामले को रेगुलर सिविल अपील नंबर 205/2024 में Exhibit-5 आवेदन पर नए सिरे से सुनवाई के लिए जिला न्यायालय को वापस भेज दिया गया।
- अंतरिम सुरक्षा: कोर्ट ने निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 13 अक्टूबर, 2025 को पारित अंतरिम आदेश (जिसमें पक्षों को संपत्ति की प्रकृति, चरित्र और कब्जे के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया था) तब तक लागू रहेगा जब तक जिला न्यायालय आवेदन का निपटारा नहीं कर देता।
- समय सीमा: जिला न्यायालय को दो महीने के भीतर आवेदन का निपटारा करने का निर्देश दिया गया है। पक्षों को 1 दिसंबर, 2025 को जिला न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा गया है।
नोटिस तामील होने के बावजूद प्रतिवादी सुप्रीम कोर्ट में अपील का विरोध करने के लिए उपस्थित नहीं हुए।




