सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को बाल अभिरक्षा और माता-पिता की पहुंच से जुड़े एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि बच्चे के कल्याण के लिए दोनों अभिभावकों से सार्थक संपर्क अत्यावश्यक है और इसे प्रक्रियात्मक बाधाओं के चलते बाधित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के 23 अगस्त 2024 के आदेश को रद्द करते हुए विदेश में कार्यरत एक गैर-पालक पिता को संरचित अंतरिम अभिरक्षा प्रदान की।
यह निर्णय जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने ईबी चेरियन बनाम जेरिमा जॉन (सिविल अपील, विशेष अनुमति याचिका (नागरिक) संख्या 24419/2024 से उत्पन्न) में सुनाया।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता पिता ईबी चेरियन और प्रतिवादी मां जेरिमा जॉन का विवाह 10 जनवरी 2016 को हुआ था। उनकी पुत्री का जन्म 17 अक्टूबर 2017 को हुआ। वैवाहिक संबंधों में दरार आने के बाद, प्रतिवादी मां 4 मार्च 2023 को बच्ची को लेकर वैवाहिक घर छोड़कर एर्नाकुलम चली गईं और तब से बच्ची की एकमात्र देखभालकर्ता रही हैं।

पिता, जो विदेश में रोटेशनल आधार पर कार्यरत हैं, ने फैमिली कोर्ट, एर्नाकुलम में स्थायी अभिरक्षा के लिए याचिका (O.P. No. 1085/2023) दायर की और साथ ही अंतरिम मुलाकात के अधिकार भी मांगे। 21 सितंबर 2023 को फैमिली कोर्ट ने उन्हें प्रतिदिन वीडियो बातचीत और भारत आने पर एक सप्ताहांत की रात्रिकालीन अभिरक्षा की अनुमति दी, किंतु प्रत्येक दौरे के लिए नई याचिका दायर करना अनिवार्य किया।
सितंबर 2023 से मई 2024 के बीच, अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट में 20 अंतरिम याचिकाएं और हाईकोर्ट में 4 मूल याचिकाएं दायर कीं, परंतु उन्हें कुल मिलाकर केवल 37 दिनों की भौतिक पहुंच मिल सकी।
पक्षों की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमती शशि किरण ने अपीलकर्ता की ओर से दलील दी कि प्रत्येक दौरे के लिए नई याचिका दायर करना बोझिल और अव्यावहारिक है, विशेषकर जब अभिरक्षा संबंधी वाद लंबी प्रक्रिया से गुजरते हैं। अपीलकर्ता ने अपने पेशेवर स्थानांतरण (एंगोला से यूएई) का हवाला देते हुए बताया कि यह सब उन्होंने बच्ची से संपर्क बनाए रखने के लिए किया। वे नियमित ₹20,000 मासिक भरण-पोषण देते रहे हैं और कोर्ट काउंसलर व फैमिली कोर्ट जज ने भी उनके और बच्ची के संबंधों को सकारात्मक बताया।
प्रतिवादी मां ने स्थायी व्यवस्था का विरोध करते हुए कहा कि मार्च 2023 से वे ही बच्ची की देखभाल कर रही हैं। उन्होंने बच्ची की दिनचर्या में व्यवधान और मुख्य अभिरक्षा याचिका लंबित होने की बात उठाई।
न्यायालय की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“फैमिली कोर्ट में अभिरक्षा संबंधी मुकदमे सामान्यतः धीमी गति से चलते हैं और जो राहत बार-बार मांगी जा रही है, उसके लिए बार-बार याचिका दायर करना बच्चे के समय की क्षति, पिता की सीमित छुट्टियों की बर्बादी और अनावश्यक टकराव को जन्म देता है।”
पीठ ने यह भी नोट किया कि बच्ची अपने पिता के साथ सहज थी। कोर्ट ने कहा:
“बच्चे के कल्याण के लिए दोनों अभिभावकों से सार्थक संपर्क एक आवश्यक तत्व है। यदि कोई गैर-पालक अभिभावक लगातार बच्चे से मिलने का प्रयास करे, भरण-पोषण दे, और अपनी पेशेवर जिंदगी को बच्चे के कैलेंडर के अनुसार व्यवस्थित करे—जैसा कि इस मामले में अपीलकर्ता ने किया है—तो प्रक्रिया को एक नियमित समय-सारणी के रास्ते में नहीं आना चाहिए।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार करते हुए एक स्थायी अंतरिम व्यवस्था की घोषणा की, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- सप्ताहांत अभिरक्षा: यदि पिता भारत में लगातार कम-से-कम 7 दिन रहेंगे, तो उन्हें शनिवार सुबह 10 बजे से रविवार शाम 5 बजे तक बच्ची की अभिरक्षा मिलेगी। यदि प्रवास लंबा होगा, तो वैकल्पिक सप्ताहांत भी मिलेंगे।
- अवकाश विभाजन: गर्मी और त्योहारों की छुट्टियां समान रूप से बांटी जाएंगी, अग्रिम समन्वय के अधीन।
- यात्रा प्रतिबंध: बच्ची को अभिरक्षा अवधि में केरल से बाहर ले जाने के लिए लिखित पूर्वानुमति आवश्यक होगी।
- वर्चुअल संपर्क: प्रति सप्ताह कम से कम तीन वीडियो कॉल और हर शनिवार एक विस्तारित सत्र सुनिश्चित किया जाएगा।
- नई याचिकाओं की आवश्यकता नहीं: प्रत्येक दौरे के लिए अब अलग से याचिका दायर करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- पूर्व सूचना और सहमति: प्रत्येक दौरे के लिए चार सप्ताह पूर्व सूचना देनी होगी; यदि सात दिनों में कोई आपत्ति न हो तो उसे सहमति माना जाएगा।
- व्यवहारिक लचीलापन: फैमिली कोर्ट समय और स्थान समायोजित कर सकता है, लेकिन संपर्क की मात्रा में कटौती नहीं की जा सकती।
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, एर्नाकुलम को निर्देश दिया कि वह लंबित अभिरक्षा याचिका का शीघ्र निस्तारण करे। सभी लंबित याचिकाओं का निपटारा इन निर्देशों के अनुसार कर दिया गया।