नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय में देशभर के हाईकोर्टों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी। यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुनाया।
शीर्ष अदालत 2019 से लंबित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो यूएपीए की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाती हैं, खासकर 2019 संशोधन के बाद। अब तक ये चुनौतियाँ सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के इंतजार में थीं, जिससे उनकी सुनवाई रुकी हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने इस संदर्भ में कहा, “कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कभी किसी पक्ष की बात रह जाती है, तो कभी दूसरे पक्ष की; फिर हमें बड़ी पीठ को मामला भेजना पड़ता है और यह जटिल हो जाता है। इसलिए, हम इसे हाईकोर्ट में ही सुनवाई के लिए रखेंगे।”
इस टिप्पणी के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया कि हाईकोर्ट लंबित याचिकाओं पर सुनवाई करने में संकोच न करें। यह कदम न्यायिक प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत करने और हाईकोर्टों की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने के रूप में देखा जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं में साजल अवस्थी और “एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स” नामक एनजीओ भी शामिल हैं, जिन्होंने यूएपीए की धारा 35 और 36 की वैधता को चुनौती दी है। इन संशोधित धाराओं के तहत सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार मिलता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस तरह की घोषणा से व्यक्ति पर आजीवन कलंक लग सकता है और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से अब हाईकोर्टों में लंबित यूएपीए संशोधन चुनौतियों पर तेज़ी से सुनवाई होने की उम्मीद है, जिससे इस कानून की संवैधानिकता पर जल्द ही स्पष्टता आ सकती है।