सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उन 40 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की जो 16 मई के फैसले की समीक्षा, संशोधन या स्पष्टीकरण की मांग कर रही हैं। इस फैसले में केंद्र सरकार को उन परियोजनाओं को पूर्ववर्ती (retrospective) पर्यावरणीय स्वीकृति देने से रोक दिया गया था जो पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करते हुए चलाई गई थीं।
इन याचिकाओं में कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CREDAI) और पीएसयू SAIL की याचिकाएं भी शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान व न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की विशेष पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, जो CREDAI की ओर से पेश हुए, ने फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी कि इसमें “एक ही रास्ता बताया गया है और वह है ढहाना (demolition)”。

16 मई के फैसले, जिसे न्यायमूर्ति ए. एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति भुयान की पीठ ने सुनाया था, में कहा गया था कि प्रदूषण रहित वातावरण में जीने का अधिकार मौलिक अधिकार का हिस्सा है। इसलिए, पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को बाद में मंजूरी देकर नियमित करना गैरकानूनी है।
रोहतगी ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार को जुर्माना लेकर पश्चगामी (retrospective) पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) देने का अधिकार है और इस पहलू को पिछले फैसले में नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “इस फैसले के अनुसार अगर ईसी नहीं है तो सब कुछ तोड़ो और ईसी लेने के बाद दोबारा बनाओ। अदालत का दृष्टिकोण यह था कि अगर पहले से ईसी नहीं ली तो सब ध्वस्त कर दो।”
जब पीठ ने पूछा कि क्या सरकार हत्या के मामलों में भी इस तरह “माफी” दे सकती है, तो रोहतगी ने जवाब दिया कि हत्या के दोषियों को भी 14 साल बाद रिहा कर दिया जाता है, क्योंकि नीति सुधार की है, प्रतिशोध की नहीं। उन्होंने कहा कि इमारतें तोड़ने से और अधिक प्रदूषण फैलेगा, और साथ ही ईसी देने की प्रक्रिया में पुनरीक्षण की नीति भी मौजूद है।
उन्होंने यह भी कहा कि कई बार परियोजना प्रोमोटर को यह जानकारी ही नहीं होती कि उसे पहले से ईसी लेनी है। ऐसे में परियोजना को बचाया जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, “कानून की अनभिज्ञता कोई बहाना नहीं है।”
जिन अधिवक्ताओं ने फैसले की समीक्षा का विरोध किया, उन्होंने कहा कि पुनर्विचार के लिए याचिकाकर्ताओं को “रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि (error apparent on the face of record)” दिखानी होगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो एक ऐसी कंपनी की ओर से पेश हुए जिसका हवाईअड्डा परियोजना ध्वस्तीकरण के खतरे में है, ने कहा कि ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट बनाना अनुमेय गतिविधि है और इस पर पुनर्विचार होना चाहिए।
यह फैसला एनजीओ वनशक्ति की याचिका पर आया था, जिसमें सरकार द्वारा दी गई पश्चगामी पर्यावरणीय मंजूरियों को चुनौती दी गई थी। अदालत ने 2021 के पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) के कार्यालय ज्ञापन (OM) और परिपत्रों को “मनमाना, गैरकानूनी और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 तथा EIA अधिसूचना, 2006 के विपरीत” घोषित किया।
फैसले में कहा गया:
“चालाकी से ‘ex post facto’ शब्दों का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन बिना उन शब्दों का उपयोग किए, व्यावहारिक रूप से ex post facto EC देने का प्रावधान कर दिया गया है। 2021 का OM इस न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करते हुए जारी किया गया है…”
अदालत ने केंद्र को किसी भी रूप में पूर्ववर्ती पर्यावरणीय मंजूरियां देने या उल्लंघनों को नियमित करने से रोक दिया।
याचिकाकर्ता एम/एस कुमार ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स लिमिटेड, अधिवक्ता गोपाल झा के माध्यम से, ने उन आवेदनों की स्थिति को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है जो 14 मार्च 2017 की अधिसूचना के तहत दाखिल किए गए थे लेकिन 16 मई तक लंबित थे।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कुछ वकीलों की आपत्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हम समीक्षा याचिकाओं पर विचार कर रहे हैं… यह उन्हें दिखाना होगा कि रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट त्रुटि है… सौभाग्य या दुर्भाग्य से, हमें ही फैसला करना होगा।”
पीठ इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को करेगी। इस समीक्षा की प्रक्रिया पर नज़रें उद्योग जगत और पर्यावरण संगठनों दोनों की हैं, क्योंकि इसका असर देश भर की बड़ी अवसंरचनात्मक और रियल एस्टेट परियोजनाओं पर पड़ सकता है।