नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 19 मार्च को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया, जो कानूनी कार्यवाहियों में अधिवक्ताओं की उपस्थिति दर्ज करने की प्रक्रिया को बदल देगा। नए आदेश के अनुसार, केवल वे सीनियर अधिवक्ता, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) या अधिवक्ता, जो शारीरिक रूप से उपस्थित होकर बहस कर रहे हैं, और उनके साथ केवल एक सहायक अधिवक्ता या AoR की उपस्थिति को ही आधिकारिक रूप से दर्ज किया जाएगा।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने और उपस्थिति रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। कोर्ट ने वकालतनामे के निष्पादन और सत्यापन को लेकर विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। विशेष रूप से, यदि कोई वकालतनामा एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की उपस्थिति में निष्पादित किया जाता है, तो उसे प्रमाणित करना अनिवार्य होगा। यदि AoR केवल पहले से निष्पादित वकालतनामे को स्वीकार करता है, तो उसे यह पुष्टि करनी होगी कि वह उसके विधिवत निष्पादन से संतुष्ट है।
इसके अलावा, AoRs को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध लिंक के माध्यम से फॉर्म नंबर 30 में आवश्यक उपस्थिति विवरण प्रदान करना होगा। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि केवल वही अधिवक्ता, जो वास्तव में अदालत में उपस्थित होकर बहस कर रहे हैं, उनके नाम रिकॉर्ड में दर्ज किए जाएं, ताकि कार्यवाही के रिकॉर्ड में अनावश्यक भीड़भाड़ न हो।

आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि फॉर्म नंबर 30 जमा करने के बाद AoR या बहस करने वाले अधिवक्ता के प्राधिकरण में कोई बदलाव होता है, तो संबंधित AoR को तुरंत कोर्ट मास्टर्स को इस बदलाव की सूचना देनी होगी, ताकि रिकॉर्ड को सही तरीके से अपडेट किया जा सके।
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा दायर एक आवेदन के जवाब में आया है, जिसमें सितंबर 2024 में पारित एक दिशा-निर्देश को स्पष्ट करने की मांग की गई थी। उस दिशा-निर्देश में यह कहा गया था कि केवल उन्हीं वकीलों की उपस्थिति दर्ज की जाएगी जो वास्तव में अदालत में बहस कर रहे हैं या पेश हो रहे हैं।
SCBA और SCAORA ने इस आदेश पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि यह उन वकीलों के साथ अन्याय करेगा, जिन्होंने याचिका के मसौदे और शोध कार्य में योगदान दिया है। उन्होंने तर्क दिया कि ‘उपस्थिति’ का अर्थ केवल मौखिक बहस तक सीमित नहीं होना चाहिए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यवाही के रिकॉर्ड को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाए रखने के लिए केवल उन्हीं अधिवक्ताओं की उपस्थिति दर्ज की जाएगी, जो शारीरिक रूप से उपस्थित होकर बहस कर रहे हैं।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अदालती कार्यवाहियों में पारदर्शिता और व्यवस्था सुनिश्चित करने के निरंतर प्रयासों के अनुरूप है। विशेष रूप से भगवान दास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में, जहां अदालत ने एक जाली SLP दायर करने के लिए वकीलों के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दिया था, ऐसे मामलों से बचने के लिए यह नियम लागू किया गया है। इन नए दिशानिर्देशों से अदालत के रिकॉर्ड की प्रामाणिकता सुनिश्चित होगी और केवल वास्तविक रूप से शामिल अधिवक्ताओं को ही आधिकारिक रूप से मान्यता दी जाएगी।