सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदररेश और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी शामिल थे, ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति को केवल संभावित संज्ञेय (cognizable) और गैर-जमानती (non-bailable) अपराध की जांच के उद्देश्य से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी गिरफ्तारी केवल ठोस सबूतों और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के आधार पर ही की जानी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ (W.P.(Crl.) No.336/2018) से संबंधित है, जिसमें जीएसटी और सीमा शुल्क (Customs) अधिनियम के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता राधिका अग्रवाल और अन्य व्यावसायिक संस्थानों ने तर्क दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) सहित जांच एजेंसियां कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने ढंग से गिरफ्तारी कर रही थीं। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के 2011 के फैसले ओम प्रकाश बनाम भारत संघ का हवाला दिया, जिसमें सीमा शुल्क अधिनियम के तहत अपराधों को गैर-संज्ञेय और जमानती माना गया था। हालांकि, बाद में हुए संशोधनों से इस कानूनी स्थिति में बदलाव आया।
महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित कानूनी सवालों पर विचार किया:
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- क्या जीएसटी और सीमा शुल्क अधिनियमों के तहत किसी व्यक्ति को केवल संज्ञेय अपराध के संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है?
- क्या सीमा शुल्क और जीएसटी अधिनियमों में किए गए संशोधन ओम प्रकाश मामले में दिए गए निर्णय को निष्प्रभावी कर सकते हैं?
- क्या जीएसटी और कस्टम्स अधिकारी को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत पुलिस अधिकारी के समान माना जा सकता है और क्या उन्हें उन्हीं प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन करना चाहिए?
- क्या इस तरह की गिरफ्तारी शक्तियां संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं?
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
- “गिरफ्तारी की शक्ति को धमकी या दबाव बनाने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि यह एक आवश्यक कदम होना चाहिए जो ठोस साक्ष्यों द्वारा समर्थित हो।”
- “सिर्फ किसी अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती घोषित करने से जांच एजेंसियों को असीमित गिरफ्तारी अधिकार नहीं मिल जाते। गिरफ्तारी से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।”
- “निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया के बिना गिरफ्तारी करना संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।”
- “गिरफ्तारी कोई जांच उपकरण नहीं है, बल्कि यह केवल यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि आरोपी मुकदमे के दौरान उपस्थित रहे। इस सिद्धांत से कोई भी विचलन संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा।”
- “संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को आर्थिक अपराधों की आड़ में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका को मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
✅ केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तारी नहीं होगी: जीएसटी और सीमा शुल्क अधिकारियों को गिरफ्तारी से पहले ठोस सबूत पेश करने होंगे।
✅ CrPC के तहत प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय लागू होंगे: अधिकारियों को गैर-संज्ञेय अपराधों के मामलों में न्यायिक स्वीकृति लेनी होगी।
✅ ओम प्रकाश निर्णय मान्य रहेगा: अदालत ने ओम प्रकाश बनाम भारत संघ (2011) के फैसले को सही ठहराया और मनमानी गिरफ्तारी को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया।
✅ न्यायिक निगरानी आवश्यक: जीएसटी और कस्टम्स कानूनों के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना अनिवार्य होगा।