सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर, 2025 के एक महत्वपूर्ण आदेश में, ग्रेटर नोएडा के एक रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्ट के समाधान के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक-सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह प्रोजेक्ट “बड़े पैमाने पर धन की हेराफेरी और गबन” का शिकार है, जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि घर खरीदार “पिछले लगभग 20 वर्षों से एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।”
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने जस्टिस पंकज नकवी (रिटायर्ड) को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है। समिति को मुख्य रूप से असली आवंटियों की पहचान करने, 2011 में रद्द की गई प्रोजेक्ट की लीज डीड (पट्टा) की आंशिक बहाली की व्यवहार्यता तलाशने और प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करने का काम सौंपा गया है।
यह आदेश रवि प्रकाश श्रीवास्तव और अन्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर पारित किया गया, जिसमें 2016 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने उन्हें कोई ठोस राहत देने से इनकार कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला ग्रेटर नोएडा के सेक्टर PI-2 स्थित प्लॉट नंबर 7 पर “शिव कला चार्म्स” नामक ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट से संबंधित है। यह ज़मीन 2004 में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (GNIDA) द्वारा गोल्फ कोर्स सहकारी आवास समिति (“समिति”) को आवंटित की गई थी और 29 मार्च, 2005 को लीज डीड निष्पादित की गई थी।
चार टावरों वाले इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य डेवलपर, M/s शिव कला डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया। याचिकाकर्ताओं (आवंटियों) ने बैंकों के साथ त्रिपक्षीय समझौतों के माध्यम से होम लोन लिया, और यह लोन राशि सीधे समिति के खाते में वितरित की गई।
धोखाधड़ी और लीज का रद्द होना
हालांकि, 14 अक्टूबर, 2007 के बाद समिति ने GNIDA को लीज का भुगतान करना बंद कर दिया। इसके चलते GNIDA ने फरवरी 2011 में अंतिम कारण बताओ नोटिस जारी किया और अंततः 9 सितंबर, 2011 को लीज डीड को पूरी तरह से रद्द कर दिया।
घर खरीदारों की शिकायतों के बाद, गौतम बुद्ध नगर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने एक जांच समिति का गठन किया। 5 मार्च, 2012 की अपनी रिपोर्ट में, समिति ने “गंभीर अनियमितताओं” का खुलासा किया। रिपोर्ट में पाया गया कि:
- घर खरीदारों से प्राप्त धन का “दुरुपयोग” किया गया था।
- समिति के सचिव एसयू जाफर और डेवलपर के निदेशक महिम मित्तल द्वारा भुगतान न करने के कारण लीज रद्द हुई।
- जांच में पाया गया कि “एक ही फ्लैट को एक से अधिक आवंटी को कई बार आवंटित किया गया था।”
- यहां तक कि “ऐसे फर्जी फ्लैट जो कभी अस्तित्व में ही नहीं थे” भी आवंटित कर दिए गए और उन पर लोन भी स्वीकृत करा लिए गए।
इस मामले में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा 2012 में एक FIR दर्ज की गई और एसयू जाफर, महिम मित्तल और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 420, 467, 468 और 120B के तहत चार्जशीट भी दायर की गई।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही
आवंटियों ने पहले 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Writ-C No. 22576 of 2016) में याचिका दायर कर GNIDA के 2011 के लीज रद्द करने के आदेश को रद्द करने और बैंकों को लोन वसूली से रोकने की मांग की थी।
17 मई, 2016 को, हाईकोर्ट ने लीज रद्द करने के आदेश में “हस्तक्षेप करने का कोई अच्छा आधार नहीं पाया” और याचिका का निस्तारण कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अपने बैंक लोन से संबंधित “समझौते से बचने के लिए एक सिविल मुकदमा दायर करने” की स्वतंत्रता दी।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां “प्राथमिक मुद्दा” लीज डीड की बहाली का था। कार्यवाही के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने सहकारी समिति रजिस्ट्रार (respondent No. 5) को “वास्तविक सदस्यों” की पहचान के लिए “सीमित जांच” करने का निर्देश दिया।
इसी बीच, 40 आवंटियों का एक समूह सामने आया, जिसने एकजुट होकर टावर-1 को पूरा करने की इच्छा जताई। कोर्ट के आदेश पर हुए एक स्ट्रक्चरल ऑडिट में पाया गया कि टावर-1 को मजबूत करने के बाद “रहने योग्य बनाया जा सकता है”।
इन आवंटियों ने GNIDA की सभी देनदारियों को चुकाने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, GNIDA ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि “केवल टावर-1 के संबंध में लीज की आंशिक बहाली… प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में नहीं है,” और तर्क दिया कि लीज को केवल “पूरी तरह से” (in toto) ही बहाल किया जा सकता है, आंशिक रूप से नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च, 2025 के एक आदेश में, GNIDA के इस रुख पर “नाराजगी” व्यक्त की और कहा, “हम इस तथ्य से खुश नहीं हैं कि ग्रेटर नोएडा… एक मृत परियोजना को पुनर्जीवित करने के पूरे अभ्यास में सहयोग नहीं कर रहा है…”
कोर्ट का विश्लेषण और अंतिम निर्णय
अपने अंतिम आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आवंटियों ने “अत्यधिक कठिनाई” सही है और वे “प्रशासनिक गतिरोध और लंबी मुकदमेबाजी” में फंसे हुए हैं।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला “काफी प्रशासनिक परिमाण और पेचीदगी” वाला बन गया है और “भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत कार्यवाही में इन सभी मुद्दों का समाधान असंभव नहीं तो मुश्किल लगता है।”
यह पाते हुए कि “एक पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में एक स्वतंत्र समिति का गठन… अनिवार्य” हो गया है, कोर्ट ने जस्टिस पंकज नकवी (रिटाय) की अध्यक्षता में एक-सदस्यीय समिति का गठन किया।
समिति के जांच के मुख्य बिंदु (Terms of Reference) इस प्रकार हैं:
- सभी रिकॉर्ड की जांच करना और “वास्तविक आवंटियों की पहचान करना”।
- उन आवंटियों की सूची तैयार करना जो “परियोजना के विकास और उसे पूरा करने के लिए एक साथ आने के इच्छुक हैं”।
- GNIDA से परामर्श करके “लीज डीड की आंशिक बहाली के संबंध में एक समाधान निकालना”।
- यदि आंशिक बहाली संभव है, तो “प्रत्येक आवंटी की देनदारी निर्धारित करने के लिए एक निष्पक्ष तंत्र/फार्मूला” तैयार करना।
- समयबद्ध तरीके से परियोजना को पूरा करने के लिए एक “व्यापक योजना” तैयार करना।
- यदि टावर 3 और 4 के मूल आवंटी “अज्ञात या असत्यापित” पाए जाते हैं, तो लागत वसूलने और टावर 1 व 2 के वास्तविक आवंटियों के हितों की रक्षा के लिए “टावर 3 और 4 की नीलामी करने की व्यवहार्यता” की जांच करना।
कोर्ट ने समिति को चार महीने के भीतर सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार और GNIDA को “दो राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्रों, एक अंग्रेजी और एक हिंदी में, एक सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करने” का आदेश दिया गया है, ताकि वे आवंटी भी अपने दावे पेश कर सकें जो अब तक अदालत नहीं पहुंचे हैं।
मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च, 2026 को समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए निर्धारित की गई है।




