सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी नौकरी के दौरान ‘परिवार’ (Family) हासिल कर लेता है (जैसे कि शादी होने पर), तो उसके द्वारा पहले किया गया सामान्य भविष्य निधि (GPF) नामांकन अमान्य हो जाता है, भले ही उसने इसे औपचारिक रूप से बदला न हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में GPF की राशि नियमों के अनुसार पात्र परिवार के सदस्यों के बीच समान रूप से वितरित की जानी चाहिए।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें मृतक कर्मचारी की GPF राशि को उसकी पत्नी (अपीलकर्ता) और मां (प्रतिवादी संख्या 1) के बीच बराबर बांटने का निर्देश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील मृतक सरकारी कर्मचारी, बोल्ला मोहन की पत्नी और उनकी मां के बीच एक विवाद से उत्पन्न हुई थी। मृतक रक्षा लेखा विभाग, भारत सरकार में कार्यरत थे।
- तथ्य: मृतक ने 29 फरवरी, 2000 को सेवा में शामिल होते समय अपनी मां, बी. सुगुणा (प्रतिवादी संख्या 1) को GPF, केंद्रीय सरकारी कर्मचारी समूह बीमा योजना (CGEIS), और मृत्यु सह सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी (DCRG) के लिए नॉमिनी बनाया था।
- विवाह: 20 जून, 2003 को मृतक ने अपीलकर्ता श्रीमती बोल्ला मालती से विवाह किया। इसके बाद, उन्होंने CGEIS और DCRG के लिए अपना नामांकन बदलकर पत्नी के नाम कर दिया, लेकिन GPF के नामांकन में कोई बदलाव नहीं किया।
- विवाद: 4 जुलाई, 2021 को कर्मचारी की मृत्यु हो गई। पत्नी को अन्य लाभों के रूप में लगभग 60 लाख रुपये मिले, लेकिन GPF की राशि देने से इनकार कर दिया गया क्योंकि रिकॉर्ड पर नॉमिनी मां थीं।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), मुंबई ने शुरू में पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया था। ट्रिब्यूनल का मानना था कि हालांकि मां का नामांकन शुरू में वैध था, लेकिन कर्मचारी द्वारा परिवार (पत्नी) प्राप्त करने के बाद यह अमान्य हो गया। इसलिए, CAT ने राशि को पत्नी और मां दोनों में समान रूप से बांटने का आदेश दिया।
हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 11 फरवरी, 2025 के अपने फैसले में CAT के आदेश को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट का कहना था कि नियमों में नामांकन के “स्वतः रद्द” (auto-cancellation) होने का प्रावधान नहीं है और मां, विशिष्ट नॉमिनी होने के नाते, पूरी राशि की हकदार हैं।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता (पत्नी) ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए मूल नामांकन दस्तावेज और ऑफिशियल मैनुअल के नियम 476(5) का सहारा लिया। उनकी दलील थी कि “परिवार प्राप्त करने” (acquiring a family) पर पिछला नामांकन प्रभावी नहीं रहता, इसलिए फंड सभी पात्र परिवार के सदस्यों को समान रूप से देय होना चाहिए।
दूसरी ओर, प्रतिवादी (मां) ने तर्क दिया कि मृतक की मंशा स्पष्ट थी, क्योंकि उन्होंने अन्य लाभों (CGEIS और DCRG) के लिए पत्नी का नाम जोड़ दिया था, लेकिन जानबूझकर GPF नामांकन में मां का नाम ही रहने दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य भविष्य निधि (केंद्रीय सेवा) नियम, 1960 के नियम 33 और संबंधित प्रावधानों की जांच की।
नियम 33(i)(b) यह प्रावधान करता है कि यदि परिवार के किसी सदस्य के पक्ष में कोई नामांकन नहीं है, तो राशि परिवार के सदस्यों को समान हिस्सों में देय होगी। कोर्ट ने नोट किया कि हालांकि मृतक ने नामांकन नहीं बदला था, लेकिन नियम अनिवार्य रूप से कहते हैं कि “परिवार प्राप्त करने पर नामांकन अमान्य हो जाएगा।”
खंडपीठ ने अपने आदेश में महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“यह सही हो सकता है कि नियम ‘स्वतः रद्दीकरण’ का प्रावधान नहीं करते, लेकिन वे उस स्थिति का प्रावधान जरूर करते हैं जहां अभिदाता (subscriber) द्वारा भरा गया नामांकन अस्तित्व में नहीं रहता। इसके अलावा, उक्त नियम एक अनिवार्यता निर्धारित करता है कि परिवार प्राप्त करने पर नामांकन अमान्य हो जाएगा। ऐसी स्थिति में, भले ही मृतक ने GPF नामांकन में बदलाव नहीं किया था, पूर्व नामांकन को वैध नहीं माना जा सकता।”
कोर्ट ने इस कानूनी स्थिति को भी दोहराया कि केवल नॉमिनेशन होने से किसी को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व नहीं मिल जाता। सरबती देवी बनाम उषा देवी (1984) के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:
“नामांकन केवल उस हाथ को इंगित करता है जो राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है… हालांकि, राशि का दावा बीमित व्यक्ति के वारिसों द्वारा उन पर लागू उत्तराधिकार के कानून के अनुसार किया जा सकता है।”
कोर्ट ने शक्ति येजदानी बनाम जयानंद जयंत सालगांवकर (2024) का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि नामांकन से नॉमिनी को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार (Absolute Title) नहीं मिलता और कानूनी वारिसों को नामांकन के आधार पर बेदखल नहीं किया जा सकता।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए माना कि नामांकन फॉर्म में निर्धारित शर्त ने मृत्यु के समय मां के नामांकन को शून्य (void) बना दिया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नामांकन से मां को पत्नी की तुलना में कुल GPF राशि पर कोई “बेहतर दावा” नहीं मिलता।
कोर्ट ने निर्देश दिया:
“मृतक का GPF अपीलकर्ता और प्रतिवादी संख्या 1 के बीच वितरित किया जाएगा… पैसे का शेष आधा हिस्सा जो वर्तमान में रजिस्ट्रार, हाईकोर्ट (अपीलीय पक्ष) के पास जमा है, उसे यहां प्रतिवादी संख्या 1 (मां) के पक्ष में जारी किया जाएगा।”
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए CAT के आदेश को सही ठहराया।
केस विवरण:
- केस का नाम: श्रीमती बोल्ला मालती बनाम बी. सुगुणा और अन्य
- केस संख्या: सिविल अपील संख्या 14604 ऑफ 2025
- बेंच: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह

