विदेशी ‘सीट’ वाली मध्यस्थता में धारा 11 की याचिका स्वीकार्य नहीं; ‘मदर एग्रीमेंट’ ही होगा मान्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पार्टियों ने अपने मुख्य समझौते या “मदर एग्रीमेंट” (Mother Agreement) में मध्यस्थता का स्थान (Seat of Arbitration) विदेश में चुना है, तो भारतीय अदालतों के पास मध्यस्थ (Arbitrator) नियुक्त करने का क्षेत्राधिकार नहीं है.

जस्टिस पमीदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (“अधिनियम”) की धारा 11(6) के तहत दायर याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया. कोर्ट ने माना कि मुख्य ‘बायर एंड सेलर एग्रीमेंट’ (BSA), जिसमें बेनिन (Benin) को मध्यस्थता की सीट बनाया गया था, बाद के सहायक अनुबंधों पर भारी पड़ेगा. इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पहले ही ‘एंटी-आर्बिट्रेशन’ (Anti-Arbitration) मुकदमे को खारिज किए जाने के कारण याचिकाकर्ता पर “इश्यू एस्टोपेल” (Issue Estoppel) का सिद्धांत लागू होता है.

विवाद का संक्षिप्त विवरण

याचिकाकर्ता, बालाजी स्टील ट्रेड ने फ्लूडोर बेनिन एस.ए. (प्रतिवादी संख्या 1), मैसर्स विंक कॉरपोरेशंस डीएमसीसी (प्रतिवादी संख्या 2), और ट्रॉपिकल इंडस्ट्रीज इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 3) के खिलाफ मध्यस्थता के लिए एक संयुक्त संदर्भ (Composite Reference) की मांग की थी.

मामले का मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या मुख्य समझौते (BSA), जिसमें मध्यस्थता की सीट बेनिन थी, को बाद में प्रतिवादी संख्या 2 और 3 के साथ किए गए ‘सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ और ‘हाई सीज़ सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ (HSSAs) द्वारा बदल (Novation) दिया गया था? बाद के इन अनुबंधों में मध्यस्थता का स्थान भारत रखा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि BSA ही “मदर एग्रीमेंट” है और यह विवाद बेनिन में स्थित एक ‘इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन’ है, इसलिए अधिनियम का भाग-I (Part I) इस पर लागू नहीं होता.

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, जो एक पार्टनरशिप फर्म है, ने 6 जून 2019 को कॉटनसीड केक की आपूर्ति के लिए रिपब्लिक ऑफ बेनिन की कंपनी, प्रतिवादी संख्या 1 के साथ ‘बायर एंड सेलर एग्रीमेंट’ (BSA) किया था. BSA के अनुच्छेद 11 के अनुसार, विवादों का समाधान मध्यस्थता द्वारा किया जाएगा जो “बेनिन में होगी”. 9 जनवरी 2021 को एक ‘एडेंडम’ (Addendum) भी निष्पादित किया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि समझौता बेनिन के कानूनों द्वारा शासित होगा.

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आपूर्ति को सुविधाजनक बनाने के लिए, प्रतिवादी संख्या 1 ने अपने दायित्व प्रतिवादी संख्या 2 को सौंप दिए. इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी संख्या 2 के साथ अलग से ‘सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ किए, जिसमें भारतीय मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत नई दिल्ली में एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति का प्रावधान था. इसके अतिरिक्त, आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिए, याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी संख्या 3 के साथ ‘हाई सीज़ सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ (HSSAs) किए, जिसमें “भारतीय मध्यस्थता अधिनियम 1940” के तहत मध्यस्थता का उल्लेख था.

जब आपूर्ति और भुगतान को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, तो प्रतिवादी संख्या 1 ने बेनिन में मध्यस्थता शुरू कर दी. इसका विरोध करते हुए, याचिकाकर्ता ने भारतीय अधिनियम के तहत तीनों प्रतिवादियों को नोटिस भेजकर भारत में मध्यस्थता की मांग की और दिल्ली हाईकोर्ट में एक मुकदमा भी दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया. अंततः, याचिकाकर्ता ने धारा 11(6) के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता की दलीलें: याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री देवदत्त कामत ने तर्क दिया:

  1. संयुक्त लेन-देन: सभी प्रतिवादी टीजीआई ग्रुप (TGI Group) का हिस्सा हैं, इसलिए “ग्रुप ऑफ कंपनीज” सिद्धांत के तहत सभी समझौते आपस में जुड़े हुए हैं.
  2. समझौते का नवीनीकरण (Novation): बाद के ‘सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ और HSSAs ने, जिनमें भारत में मध्यस्थता का प्रावधान है, मुख्य BSA की मध्यस्थता शर्त को प्रतिस्थापित कर दिया है.
  3. सीट बनाम स्थान: वैकल्पिक रूप से, बेनिन केवल एक “स्थान” (Venue) था, न कि न्यायिक “सीट” (Seat). पार्टियों का आचरण और बाद के अनुबंध भारत को न्यायिक सीट के रूप में इंगित करते हैं.

प्रतिवादियों की दलीलें: प्रतिवादी संख्या 1 की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री नकुल दीवान ने तर्क दिया:

  1. इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन: विवाद पूरी तरह से BSA के तहत आता है, जो बेनिन के कानून द्वारा शासित है. इसलिए, अधिनियम का भाग-I (धारा 11 सहित) लागू नहीं होता.
  2. मदर एग्रीमेंट: बालाजी अलॉयज लिमिटेड बनाम मेडिमा एलएलसी मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया गया कि BSA “मदर एग्रीमेंट” है और इसकी मध्यस्थता शर्त सहायक अनुबंधों पर प्रभावी होगी.
  3. कोई संबंध नहीं: प्रतिवादी संख्या 2 और 3 ने तर्क दिया कि वे BSA के पक्षकार नहीं हैं और विवाद BSA से संबंधित है, जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मध्यस्थता खंडों के बीच परस्पर क्रिया और याचिका की पोषणीयता (Maintainability) की जांच की.

1. अधिनियम के भाग-I का बहिष्करण कोर्ट ने पाया कि यह विवाद अधिनियम की धारा 2(1)(f) के तहत “इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन” की श्रेणी में आता है. बाल्को (BALCO) और बीजीएस एसजीएस सोमा जेवी के फैसलों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि यदि मध्यस्थता की सीट भारत के बाहर है, तो अधिनियम का भाग-I लागू नहीं होता. पीठ ने नोट किया:

“BSA का अनुच्छेद 11 और एडेंडम का अनुच्छेद 5 स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पार्टियों ने न केवल मध्यस्थता की भौगोलिक स्थिति का संकेत दिया, बल्कि शासी कानून (Governing Law) का भी चयन किया. यह संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता कि बेनिन को ही न्यायिक सीट और बेनिन के कानूनों को ही ‘क्यूरियल लॉ’ (Curial Law) बनाने का इरादा था.”

2. ‘मदर एग्रीमेंट’ की प्रधानता कोर्ट ने याचिकाकर्ता के ‘नोवेशन’ (Novation) के तर्क को खारिज कर दिया. कोर्ट ने BSA को “मदर एग्रीमेंट” बताया जो दीर्घकालिक संबंधों को परिभाषित करता है, जबकि ‘सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स’ और HSSAs विशिष्ट शिपमेंट के लिए सीमित उद्देश्य वाले सहायक दस्तावेज थे. कोर्ट ने कहा:

“BSA स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहा… जबकि सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स और HSSAs केवल अलग-अलग लेनदेन के लिए सहायक व्यवस्था के रूप में काम करते थे… इसलिए, सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स या HSSAs में दिए गए मध्यस्थता समझौते BSA की मध्यस्थता शर्त को विस्थापित या समाप्त नहीं कर सकते.”

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3. इश्यू एस्टोपेल (Issue Estoppel) कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 8 नवंबर, 2024 को याचिकाकर्ता के मुकदमे को खारिज किए जाने को महत्वपूर्ण माना. हाईकोर्ट पहले ही तय कर चुका था कि BSA मुख्य अनुबंध है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन “क्षेत्राधिकार संबंधी तथ्यों” (Jurisdictional Facts) पर निष्कर्ष “इश्यू एस्टोपेल” पैदा करते हैं, जिसका अर्थ है कि एक ही मुद्दे पर बार-बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

4. ‘ग्रुप ऑफ कंपनीज’ सिद्धांत अस्वीकृत कोर्ट ने कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड बनाम एसएपी इंडिया मामले में प्रतिपादित “ग्रुप ऑफ कंपनीज” सिद्धांत पर याचिकाकर्ता की निर्भरता को गलत पाया. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि केवल शेयरहोल्डिंग का ओवरलैप होना गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं (Non-signatories) को बाध्य करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि आपसी इरादा स्पष्ट न हो.

निष्कर्ष और फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 11 के तहत याचिका कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है क्योंकि मध्यस्थता की सीट विदेशी है. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि बेनिन में मध्यस्थता पहले ही 21 मई, 2024 को एक अंतिम पंचाट (Award) के साथ समाप्त हो चुकी है, इसलिए याचिकाकर्ता समानांतर कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता.

पीठ ने फैसला सुनाया:

“दिल्ली हाईकोर्ट के निष्कर्ष एक ठोस तथ्यात्मक आधार प्रदान करते हैं… BSA ही मदर एग्रीमेंट है; मध्यस्थता की न्यायिक सीट बेनिन है; शासी कानून बेनिन का कानून है; कानून के संचालन द्वारा अधिनियम का भाग-I बाहर रखा गया है.”

नतीजतन, मध्यस्थता याचिका संख्या 65 ऑफ 2023 को खारिज कर दिया गया, और पार्टियों को अपनी लागत खुद वहन करने का निर्देश दिया गया.

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