सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) के पक्ष में अपने अंतरिम आदेश को बढ़ाते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) को किसी भी प्रकार की दमनात्मक कार्रवाई—जैसे तलाशी, जब्ती या आगे की जांच—से रोका। यह मामला राज्य में कथित शराब रिटेल घोटाले से जुड़ा है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य के जांच अधिकारों के संतुलन को लेकर अहम सवाल उठाए।
पीठ ने पूछा, “क्या यह राज्य के जांच के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं होगा? हर मामले में, जब आपको लगे कि राज्य जांच नहीं कर रहा है, तो क्या आप खुद ही जांच करेंगे? धारा 66(2) का क्या होगा?”
डीएमके सरकार और TASMAC ने ईडी की छापेमारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के 23 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने ईडी की कार्रवाई को बरकरार रखा था। याचिकाओं में कहा गया था कि ईडी की जांच संवैधानिक अधिकारों और संघीय ढांचे का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को ईडी की चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर रोक लगाते हुए टिप्पणी की थी कि केंद्रीय एजेंसी “सभी सीमाएं पार कर रही है” और संघीय शासन की अवधारणा को कमजोर कर रही है।
तब अदालत ने आदेश दिया था कि “प्रतिवादी संख्या 2 (TASMAC) के संबंध में आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी… साथ ही प्रार्थना क्लॉज (B) के अनुसार अंतरिम राहत भी दी जाती है, जिसके तहत ईडी को TASMAC और उसके अधिकारियों के खिलाफ कोई दमनात्मक कदम उठाने से रोका गया है।”
मंगलवार को पीठ ने इस सुरक्षा को जारी रखा। अब TASMAC की याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा विजय मदनलाल चौधरी मामले में लंबित पुनर्विचार याचिकाओं के निपटारे के बाद होगी। वर्ष 2022 के इस फैसले में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के कई प्रावधानों को संवैधानिक माना गया था, जिनमें गिरफ्तारी, तलाशी और ईसीआईआर (ECIR) की प्रतिलिपि न देने से जुड़े प्रावधान शामिल हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने राज्य सरकार और TASMAC की ओर से पेश होकर कहा कि ईडी की तलाशी न केवल प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा का उल्लंघन है, बल्कि संघीय जांच ढांचे को भी कमजोर करती है।
सिब्बल ने सवाल उठाया, “जब कथित अपराध कुछ निजी रिटेल ऑपरेटरों से जुड़ा है, जिनकी जांच राज्य की सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निवारण निदेशालय (DVAC) पहले से कर रहा है, तब एक सरकारी निगम पर ईडी कैसे छापा मार सकती है?”
उन्होंने दलील दी, “भ्रष्टाचार एक प्रारंभिक अपराध (predicate offence) है। ईडी सीधे भ्रष्टाचार की जांच नहीं कर सकती।” उन्होंने पीएमएलए की धारा 66(2) का हवाला दिया, जिसके तहत ईडी को प्रारंभिक अपराधों से संबंधित जानकारी संबंधित सक्षम प्राधिकरण को साझा करनी होती है।
सिब्बल ने बताया कि DVAC ने 2014 से 2021 के बीच शराब की दुकानों के ऑपरेटरों के खिलाफ 47 एफआईआर दर्ज की थीं और जांच के बाद 37 मामलों को बंद कर दिया था। उनके अनुसार, 2025 में ईडी ने अचानक TASMAC मुख्यालय में छापा मारा और अधिकारियों के मोबाइल फोन व डिवाइस जब्त कर लिए।
ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने कहा कि चूंकि राज्य की सतर्कता एजेंसी ने ही प्रारंभिक अपराधों के मामले दर्ज किए हैं, इसलिए ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, “ईडी को तलाशी में आपत्तिजनक साक्ष्य मिले हैं। बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार को संघवाद की दलीलों के पीछे छिपाने की कोशिश की जा रही है।”
राजू ने कहा कि तलाशी “सभ्य और व्यवस्थित तरीके” से की गई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य पुलिस जानबूझकर एक के बाद एक प्रारंभिक एफआईआर बंद कर रही है ताकि ईडी की कार्रवाई रुक जाए।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पीएमएलए के तहत ईडी को “संदेह के आधार पर” तलाशी की अनुमति है, जिसका मानक ‘विश्वास के आधार’ से कम होता है।
पीठ ने माना कि वह विजय मदनलाल चौधरी फैसले से बंधी हुई है, जो फिलहाल ईडी की शक्तियों को परिभाषित करता है। मुख्य न्यायाधीश गवई ने हल्के अंदाज़ में कहा, “पिछले छह वर्षों में हमें ईडी से जुड़े कई मामलों से निपटने का मौका मिला है… मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता, पिछली बार कहा था तो हर जगह छप गया था।”
ईडी के वकील ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब कुछ ईडी के पक्ष में कहा जाता है तो शायद ही कभी रिपोर्ट होता है, यही मेरी शिकायत है।”
अदालत ने कहा कि TASMAC की याचिका पर आगे की सुनवाई विजय मदनलाल फैसले से जुड़ी लंबित पुनर्विचार याचिकाओं के निपटारे के बाद होगी। तब तक ईडी के खिलाफ अंतरिम सुरक्षा जारी रहेगी।