सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और ऑनलाइन पोर्टल द वायर के कंसल्टिंग एडिटर समेत अन्य पत्रकारों को असम में दर्ज देशद्रोह मामलों में पहले से दी गई सुरक्षा को आगे बढ़ा दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह आदेश उस समय पारित किया जब वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि पत्रकारों ने असम पुलिस को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अदालत ने यह दलील दर्ज कराते हुए सुनवाई स्थगित कर दी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से पेश होकर मुख्य याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। यह याचिका सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस. जी. वोंबतकेरे ने दाखिल की है, जिसमें 2023 की भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता – BNS) की धारा 152 (देशद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने की अनुमति दे दी।

उल्लेखनीय है कि असम के मोरीगांव और गुवाहाटी पुलिस थानों में जुलाई में फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म और वरदराजन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इन पर बीएनएस की धारा 152 और अन्य प्रावधान लगाए गए हैं। मामला द वायर में प्रकाशित उस लेख से जुड़ा है जिसमें “ऑपरेशन सिंदूर” की रिपोर्टिंग की गई थी। यह अभियान मई 2024 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल) के बाद पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ढांचे को निशाना बनाने के लिए चलाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 22 अगस्त को असम पुलिस को पत्रकारों के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाने का निर्देश दिया था और जांच में सहयोग करने के लिए कहा था। अदालत ने साथ ही मामले की स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी।
बीएनएस की धारा 152 “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों” को अपराध मानती है और इसमें आजीवन कारावास या सात वर्ष तक की सजा तथा जुर्माने का प्रावधान है।
अब यह मामला केंद्र सरकार के जवाब दाखिल करने के बाद आगे सुना जाएगा।