सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस शरद कुमार शर्मा द्वारा दो अलग-अलग आदेशों में एक अधिवक्ता के खिलाफ की गई टिप्पणियों को हटाने का निर्णायक कदम उठाया है। यह निर्णय न्यायपालिका की मर्यादा बनाए रखने और निष्पक्ष न्यायिक आचरण सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सिद्धार्थ सिंह बनाम असिस्टेंट कलेक्टर फर्स्ट क्लास/सब डिविजनल मजिस्ट्रेट और अन्य के मामले में जस्टिस शर्मा द्वारा की गई टिप्पणियों की जांच की। सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अदालती कार्यवाही के दौरान अधिवक्ता के आचरण के बारे में की गई टिप्पणियां न केवल अनावश्यक थीं, बल्कि उनमें कोई कानूनी आधार भी नहीं था, जिससे वे अनुचित हो गईं।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा, “हमने दिनांक 01-12-2020 और 07-12-2021 के आदेशों का अध्ययन किया है और उन परिस्थितियों की सावधानीपूर्वक जांच की है जिनमें विद्वान न्यायाधीश द्वारा टिप्पणियां की गई थीं। माननीय न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद, हम इस राय पर पहुंचे हैं कि न तो आचरण और न ही परिस्थिति के कारण टिप्पणियों को दर्ज करना उचित था। ये टिप्पणियां अनुचित और अवैध हैं।”
यह मुद्दा न्यायमूर्ति शर्मा द्वारा अधिवक्ता की इस आलोचना से उत्पन्न हुआ कि वह कथित तौर पर अदालत को सूचित किए बिना अदालत कक्ष से चले गए, क्योंकि वह अन्य मामलों में शामिल थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट को ऐसी आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए कोई ठोस आधार नहीं मिला और उसने माना कि टिप्पणियां वस्तुनिष्ठ विश्लेषण के बजाय व्यक्तिगत धारणाओं का परिणाम थीं।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति शर्मा की न्यायिक राय में एक पैटर्न पर ध्यान दिया, जो बिना पर्याप्त कारण के कानूनी पेशेवरों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां जारी करने की चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है। पीठ ने टिप्पणी की, “हम हाईकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश द्वारा अधिवक्ताओं के खिलाफ बिना किसी गंभीर बात पर टिप्पणी करने की प्रवृत्ति को अस्वीकार करते हैं।”