सुप्रीम कोर्ट ने सेवा कानून से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि जिन कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति (Retirement) की तारीख को उस महीने के अंतिम दिन तक बढ़ाया जाता है जिसमें वे 60 वर्ष की आयु पूरी करते हैं, उन्हें उस अंतिम दिन भी “सेवा में” माना जाएगा। तदनुसार, वे उस विशिष्ट तारीख को सेवा में रहने वाले कर्मचारियों के लिए लागू वेतन संशोधन (Pay Revision) के लाभों के हकदार हैं।
यह निर्णय जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मुकुट दास बनाम असम पावर जनरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड और अन्य (सिविल अपील संख्या 14559/2025) के मामले में दिया। कोर्ट ने गुवाहाटी हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (खंडपीठ) के फैसले को रद्द कर दिया और एकल जज (Single Judge) के आदेश को बहाल कर दिया।
पृष्ठभूमि
इस विवाद का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या 31 मार्च, 2016 को रिटायर होने वाले अपीलकर्ता ‘असम राज्य बिजली बोर्ड और उसकी उत्तराधिकारी कंपनियों के संशोधित वेतन नियम, 2017’ (जिन्हें आगे ‘2017 के नियम’ कहा गया है) के तहत वेतन संशोधन के हकदार थे या नहीं।
मामले के तथ्यों के अनुसार, दोनों अपीलकर्ताओं ने मार्च 2016 में अपनी सेवानिवृत्ति की आयु (60 वर्ष) पूरी कर ली थी। हालांकि, फंडामेंटल रूल (FR) 56(a) के प्रावधानों के तहत, उनकी सेवानिवृत्ति को उस महीने के अंतिम दिन, यानी 31 मार्च, 2016 की दोपहर तक बढ़ा दिया गया था।
हाईकोर्ट के एकल जज ने अपने फैसले में माना था कि चूंकि 2017 के नियम उन कर्मचारियों पर लागू होते हैं जो 31 मार्च, 2016 को सेवा में थे, इसलिए अपीलकर्ता इन लाभों के हकदार हैं। लेकिन, हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस निष्कर्ष को पलट दिया था, जिसके खिलाफ अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के.एन. चौधरी ने तर्क दिया कि FR 56(a) विशेष रूप से सेवानिवृत्ति की तारीख को उस महीने के अंतिम दिन तक बढ़ाता है जिसमें कर्मचारी 60 वर्ष का होता है। इसलिए, अपीलकर्ता कानूनी रूप से 31 मार्च, 2016 को सेवा में थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि 2017 के नियमों में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि यह संशोधन उन लोगों पर लागू होगा जो “31.03.2016 को सेवा में थे।”
दूसरी ओर, प्रतिवादियों (असम पावर जनरेशन कॉरपोरेशन) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री बी.के. शर्मा ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका तर्क था कि वेतन संशोधन नियम उन लोगों के लिए थे जिन्हें 1 अप्रैल, 2016 या उसके बाद नियुक्त किया गया या जो सेवा में बने रहे। उन्होंने यह भी कहा कि संशोधित पेंशन उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होती जो 31 मार्च, 2016 को या उससे पहले रिटायर हो चुके थे। प्रतिवादियों ने अपने तर्क के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के के. जे. जॉर्ज बनाम बीएसएनएल (2008) और दिल्ली हाईकोर्ट के जी.सी. यादव (2018) के फैसलों का हवाला दिया।
न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादियों द्वारा उद्धृत किए गए पिछले निर्णयों को वर्तमान मामले से अलग बताया।
के. जे. जॉर्ज मामले पर विचार करते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि उस मामले में कर्मचारी वेतन संशोधन लागू होने की तारीख से पहले ही रिटायर हो चुके थे। वहीं, जी.सी. यादव के मामले में, कर्मचारी का जन्म महीने की पहली तारीख को हुआ था, और नियमों के तहत वह पिछले महीने के अंतिम दिन रिटायर हो गया था, इसलिए वह लाभ का दावा नहीं कर सकता था।
बेंच ने के. जे. जॉर्ज मामले में दी गई इस दलील से असहमति जताई कि FR 56(a) के तहत सेवा का विस्तार केवल वेतन और भत्तों के उद्देश्य से होता है। कोर्ट ने कहा:
“हम इस निष्कर्ष से सहमत होने में असमर्थ हैं, विशेष रूप से इस संदर्भ में कि FR 56(a) वेतन और भत्ते के उद्देश्य से ही निरंतरता की ऐसी कोई कठोरता प्रदान नहीं करता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ (Constitution Bench) के एस. बनर्जी बनाम भारत संघ (1989) के फैसले का सहारा लिया, जिसमें यह माना गया था कि सेवानिवृत्ति की तारीख को कार्य दिवस (working day) माना जाता है। पीठ ने केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 5(2) का भी उल्लेख किया, जो कहता है:
“जिस दिन कोई सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है… उसे उसका अंतिम कार्य दिवस माना जाएगा।”
इन सिद्धांतों को लागू करते हुए, कोर्ट ने फैसला सुनाया:
“सुपरएंमुएशन (सेवानिवृत्ति) का नियम स्पष्ट और असंदिग्ध है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी महीने में सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करता है, वह उस महीने के अंतिम दिन ही रिटायर होगा।”
कोर्ट ने 2017 के नियमों का विश्लेषण किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“सभी कर्मचारी जो 31 मार्च 2016 को सेवा में थे या जिन्हें 1 अप्रैल 2016 को या उसके बाद नियुक्त किया गया हो, वे संशोधित वेतन संरचना में वेतन प्राप्त करेंगे…”
कोर्ट ने प्रतिवादियों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पेंशनभोगियों से संबंधित नियम 32 अपीलकर्ताओं को अयोग्य ठहराता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह प्रावधान उन लोगों के लिए न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित करने के लिए था जो संशोधन के दायरे में नहीं आते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जो लोग 31 मार्च 2016 को सेवा में थे, उन्हें संशोधित वेतनमान से वंचित किया जाए।
निर्णय (Decision)
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले को रद्द कर दिया और एकल जज के आदेश को बहाल कर दिया। कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश दिए:
- अपीलकर्ता 31.03.2016 को वेतन संशोधन (Pay Revision) के हकदार हैं।
- मार्च 2016 के लिए उनके वेतन का निर्धारण संशोधित वेतनमान (Revised Scales) में किया जाएगा।
- इस संशोधित वेतन को देय पेंशन की गणना के लिए आधार माना जाएगा।
- वेतन और पेंशन के एरियर (बकाया) का भुगतान ** छह महीने** की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए।
- संशोधित पेंशन फरवरी 2026 से शुरू होगी।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यदि छह महीने के भीतर एरियर का भुगतान नहीं किया जाता है, तो उस पर 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगेगा। प्रतिवादी निगम इस ब्याज की राशि उन अधिकारियों से वसूलने का हकदार होगा जो भुगतान में देरी के लिए जिम्मेदार होंगे।

