सुप्रीम कोर्ट ने दुबई अदालत के बच्चे पर लगाए यात्रा प्रतिबंध को बताया ‘घोर अमानवीय’, कहा- यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक कठोर टिप्पणी में दुबई की अदालत द्वारा एक नाबालिग बच्चे पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने इस आदेश को ‘घोर अमानवीय’ करार दिया और इसे ‘गृह-कारावास’ जैसा बताया, जो मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह एक हैबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका प्रिंस रिचर्ड नामक घाना के नागरिक ने दायर की थी, जो वर्तमान में दुबई में रहते हैं और अपने नाबालिग पुत्र की कस्टडी मांग रहे हैं। बच्चा इस समय भारत के बेंगलुरु में अपनी मां के साथ रह रहा है।

रिचर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनकी पूर्व पत्नी, जो भारतीय नागरिक हैं, बिना उनकी जानकारी के बच्चे को दुबई से बेंगलुरु ले आईं। उन्होंने यह भी बताया कि दुबई की एक अदालत ने 2022 में बच्चे पर यात्रा प्रतिबंध लगाया था और शरिया कानून के तहत उन्हें बच्चे की कस्टडी भी दी गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने दुबई अदालत के आदेश के औचित्य पर ही सवाल उठाते हुए कहा— “जब दोनों पक्ष ईसाई हैं और उनकी शादी फॉरेन मैरिज एक्ट, 1969 के तहत भारत में हुई थी, तो शरिया कानून कैसे लागू हो सकता है?”

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पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “आपको यह आदेश इसलिए मिला क्योंकि वहां की अदालतें इस तरह के घोर आदेश देने के लिए जानी जाती हैं। कोई भी ऐसा कोर्ट जो मानवाधिकारों और नागरिक अधिकारों में विश्वास करता है, वह ऐसा आदेश नहीं देगा कि पिता और बच्चा कहीं यात्रा ही न कर सकें।”

कोर्ट को यह भी अवगत कराया गया कि रिचर्ड की पूर्व पत्नी ने कर्नाटक हाईकोर्ट में कहा था कि दुबई में उनके साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न हुआ, जिससे परेशान होकर वह बच्चे के साथ भारत लौट आईं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दुबई में उन्हें तलाक की याचिका वापस लेने के लिए मजबूर किया गया ताकि बच्चे पर से यात्रा प्रतिबंध हटाया जा सके।

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सुप्रीम कोर्ट ने यात्रा प्रतिबंध को “दबाव बनाने का स्पष्ट हथियार” बताते हुए कहा कि यह आदेश “उन्हें (महिला को) नजरबंद रखने जैसा है।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चे की कस्टडी का मामला बेंगलुरु की फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है, और कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह सही कहा कि बच्चे के सर्वोत्तम हित का निर्णय भारतीय अदालत ही करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध की है, जिसमें वह रिचर्ड को अस्थायी मुलाकात के अधिकार देने पर विचार करेगा। तब तक कोर्ट ने रिचर्ड को यह अनुमति दे दी है कि वह अपनी पूर्व पत्नी को नोटिस भेजकर जवाब दाखिल करने का अवसर दें।

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