सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ में सरकारी कॉलेज भवन के स्थानांतरण को चुनौती देने वाली छात्रों की याचिका खारिज कर दी और दो टूक टिप्पणी की कि वे पढ़ाई करना चाहते हैं या “नेतागीरी”।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने पहले ही मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था।
पीठ ने छात्रों के वकील से कहा, “आप छात्र हैं। पढ़ाई करना चाहते हैं या यह सब राजनीति, नेतागीरी?” न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कॉलेज कहां बनाया जाए, यह प्रशासन का अधिकार क्षेत्र है।

न्यायालय ने कहा, “युवाओं के लिए यह कोई कठिन बात नहीं है। आप साइकिल से या पैदल ही उस गांव जा सकते हैं जहां कॉलेज स्थानांतरित किया जा रहा है।”
याचिका आदर नांदघर गांव, जिला बेमेतरा के दो छात्रों ने दायर की थी। उनका कहना था कि सरकार ने बढ़ती छात्र संख्या और शिक्षा की सुविधा को ध्यान में रखते हुए गांव में कॉलेज भवन की स्वीकृति दी थी।
लेकिन राजनीतिक नेतृत्व बदलने के बाद, एक मंत्री ने कॉलेज को अमोरा गांव और बाद में कुर्रा गांव में स्थानांतरित करने का आदेश दिया। छात्रों का तर्क था कि इससे उनकी यात्रा दूरी बढ़ जाएगी, जबकि उचित परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। उन्होंने आशंका जताई कि कभी भी नए स्थान पर निर्माण कार्य शुरू हो सकता है।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा था कि प्रारंभ में कॉलेज आदर नांदघर में खोला गया था, लेकिन बाद में इसे अमोरा में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि कॉलेज का स्थान तय करना सरकार और उसकी एजेंसियों का क्षेत्राधिकार है और अदालत यह तय नहीं कर सकती कि कौन-सा स्थान सार्वजनिक हित के लिए अधिक उपयुक्त है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए छात्रों की याचिका खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि यह मामला पूरी तरह से प्रशासनिक नीति का विषय है।