सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि 2016 गढ़चिरौली आगज़नी मामले की सुनवाई के दौरान वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग (VC) सुविधा ठीक से काम करे। इस मामले में मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग आरोपी हैं।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने यह आदेश तब दिया जब वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने शिकायत की कि गाडलिंग की VC उपस्थिति के लिए उपलब्ध सिस्टम सही तरीके से काम नहीं कर रहा।
पीठ ने कहा, “आरोपी को VC के ज़रिये पेश होने की अनुमति है, लेकिन VC विधिवत काम नहीं कर रही। राज्य यह सुनिश्चित करे कि VC प्रभावी रूप से काम करे ताकि आरोपी वर्चुअल रूप से पेश हो सके।”
सुनवाई के दौरान ग्रोवर ने दलील दी कि गाडलिंग को इसलिए अनुचित रूप से “ब्रांडेड” किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने कुछ नक्सल मामलों में वकील के रूप में पेशी की थी। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट के अपने रिकॉर्ड दिखाते हैं कि मुकदमे की शुरुआत में देरी के लिए राज्य ज़िम्मेदार है।
उन्होंने यह भी कहा कि मुख्य साक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक हैं और भीमा कोरेगांव मामले से ओवरलैप करते हैं, फिर भी राज्य ने इलेक्ट्रॉनिक सामग्री की प्रतियां रक्षा पक्ष को उपलब्ध नहीं कराईं।
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने अदालत को बताया कि भीमा कोरेगांव मामले के रिकॉर्ड ट्रांसफर करने का आवेदन अभी ट्रायल कोर्ट में लंबित है और गाडलिंग ने अब तक उस पर जवाब नहीं दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने गाडलिंग को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और ट्रायल कोर्ट को 15 जनवरी 2026 तक आवेदन का निस्तारण करने को कहा। अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
24 सितंबर को पीठ ने यह तथ्य दर्ज किया था कि गाडलिंग इस मामले में छह साल सात महीने से जेल में हैं, और अभियोजन से पूछा था कि मुकदमे में इतनी देरी क्यों हुई।
पीठ ने कहा था, “ट्रायल में देरी का कारण क्या है? अभियोजन एजेंसी संक्षेप में बताए।”
अभियोजन के अनुसार 25 दिसंबर 2016 को माओवादी विद्रोहियों ने सुरजगढ़ खदानों से लौह अयस्क ले जाने वाले 76 वाहनों में आग लगा दी थी। नागपुर के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, जो कई नक्सल मामलों में पेश होते रहे हैं, पर आरोप है कि उन्होंने माओवादी समूहों की सहायता की और सह-आरोपियों व फरार व्यक्तियों के साथ साजिश रची।
उन पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप हैं, जिनमें सरकार से जुड़े गोपनीय इनपुट, नक्शे आदि माओवादियों को देने और सुरजगढ़ खदानों का विरोध करने के लिए स्थानीय लोगों को उकसाने का आरोप शामिल है।
गाडलिंग एल्गार परिषद–भीमा कोरेगांव मामले में भी आरोपी हैं, जहां पुलिस का आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसके बाद अगले दिन हिंसा हुई।

