सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड को लेकर गहरी चिंता जताई और कहा कि इस बढ़ते साइबर अपराध को अब “लोहे के हाथों से निपटाया जाएगा।” अदालत को गृह मंत्रालय (MHA) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की सीलबंद रिपोर्ट से जानकारी मिली कि अब तक भारतीय नागरिकों से करीब ₹3,000 करोड़ की ठगी हो चुकी है, जिनमें ज़्यादातर बुजुर्ग लोग हैं जिन्होंने अपनी पूरी जीवनभर की बचत खो दी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और जॉयमाल्या बागची भी शामिल थे, ने कहा—
“अगर हम इस समस्या को अभी नहीं रोकेंगे या डरकर पीछे हटेंगे, तो यह और भयावह हो जाएगी। हम इसे लोहे के हाथों से सख्ती से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में सामने आए तथ्य “चौंकाने वाले” हैं। ₹3,000 करोड़ का आंकड़ा सिर्फ भारत का है, और यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि वैश्विक स्तर पर यह धोखाधड़ी कितनी बड़ी है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वप्रेरणा से (suo motu) लिए गए संज्ञान से जुड़ा है, जो अंबाला के 73 वर्षीय दंपति की चिट्ठी से शुरू हुआ था। उन्होंने बताया था कि कुछ लोगों ने खुद को CBI अधिकारी बताकर उन्हें व्हाट्सऐप वीडियो कॉल पर फर्जी सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिखाए और गिरफ्तारी की धमकी देकर ₹1.05 करोड़ रुपये अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिए।
अदालत ने पहले ही कहा था कि न्यायालयों के नाम, मोहर और आदेशों की इस तरह की जालसाजी “न्यायपालिका पर जनता के भरोसे की नींव को हिला देती है” और “कानून के शासन पर सीधा आघात” है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता एन.एस. नप्पिनई को अमीकस क्यूरी नियुक्त किया है, ताकि वे इस अपराध से निपटने के लिए सुझाव दे सकें। अदालत ने केंद्र सरकार और जांच एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे नप्पिनई को सभी रिपोर्ट और पीड़ितों के पत्र उपलब्ध कराएं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि गृह मंत्रालय ने ऐसे मामलों के लिए एक समन्वय इकाई बनाई है। उन्होंने यह भी कहा कि जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अपराधी व्हाट्सऐप कॉल या AI-generated वीडियो के ज़रिए नकली कोर्ट सुनवाई दिखाते हैं, जिनका स्रोत ट्रेस नहीं किया जा सकता। कई मामलों में ये कॉल ऐसे देशों से आती हैं जहां भारत के साथ Mutual Legal Assistance Treaty (MLAT) नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के मामलों का डेटा मांगा था और संकेत दिया था कि ऐसे मामलों की जांच एक ही केंद्रीय एजेंसी, संभवतः CBI, को सौंपी जा सकती है क्योंकि यह अपराध सीमा-पार (trans-national) प्रकृति का है।
मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी, जिसमें अदालत अमीकस क्यूरी के सुझावों और केंद्र की रिपोर्ट पर आगे की दिशा तय करेगी।




