भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर रुख अपनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पंजाब सरकार के ऑडिट इंस्पेक्टर देविंदर कुमार बंसल को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। बंसल पर आधिकारिक ऑडिट से संबंधित एक मामले में रिश्वत मांगने और प्राप्त करने का आरोप है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि “यदि भ्रष्टाचार मुक्त समाज सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता से इनकार करना पड़े, तो न्यायालयों को इसमें कोई संकोच नहीं करना चाहिए।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला FIR संख्या 1, दिनांक 8 जनवरी 2025 से संबंधित है, जिसे विजिलेंस ब्यूरो, पुलिस स्टेशन, पटियाला में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 61(2) के तहत दर्ज किया गया था।
याचिकाकर्ता देविंदर कुमार बंसल पर आरोप है कि उन्होंने ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच की पत्नी के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों के ऑडिट के दौरान अवैध रिश्वत की मांग की।

अभियोजन पक्ष के अनुसार:
- सह-आरोपी पृथ्वी सिंह को बंसल की ओर से रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया।
- 8 जनवरी 2025 की ऑडियो रिकॉर्डिंग में बंसल को पृथ्वी सिंह से रिश्वत मिलने की पुष्टि करते और इसे एक अन्य व्यक्ति नरेश को हस्तांतरित करने के निर्देश देते सुना गया।
सुप्रीम कोर्ट की कानूनी व्याख्या और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) देने के सिद्धांतों का विश्लेषण करते हुए दोहराया कि यह राहत केवल असाधारण परिस्थितियों में दी जानी चाहिए।
महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष:
- रिश्वत की केवल मांग या याचना करना भी अपराध है – भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7 के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए वास्तविक रिश्वत प्राप्त करना आवश्यक नहीं है।
- रिश्वत लेने का प्रयास भी दंडनीय अपराध है – केवल राशि स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं, बल्कि मांगना भी अपराध माना जाएगा।
- मध्यस्थों के माध्यम से रिश्वत लेने वाले सरकारी कर्मचारी भी दोषी माने जाएंगे।
उल्लेखनीय कानूनी मिसालें:
- Ratan Moni Dey बनाम Emperor (1905) – जिसमें कहा गया कि रिश्वत मांगना भी अवैध लाभ प्राप्त करने के प्रयास के समान है।
- Damodar Krishna Kamli बनाम राज्य (1955 Cr.L.J. 181) – जिसमें बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना कि यदि कोई सरकारी अधिकारी रिश्वत लेने के लिए सहमत होता है, तो वह अपराध का दोषी माना जाएगा, भले ही उसे वास्तविक राशि न मिली हो।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
- “भ्रष्टाचार राष्ट्र का शत्रु है, और भ्रष्ट लोक सेवकों को दंडित करना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की प्राथमिक आवश्यकता है।”
- “सभी भ्रष्ट अधिकारी, चाहे वे उच्च पद पर हों या निम्न, समान रूप से कानून के अधीन हैं और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।” (Subramanian Swamy बनाम CBI, 2014 के निर्णय का संदर्भ)
अग्रिम जमानत से इनकार और भविष्य के कानूनी विकल्प
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अग्रिम जमानत से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन है।
न्यायालय ने इसे ठुकराते हुए कहा:
- अग्रिम जमानत मौलिक अधिकार नहीं है।
- निर्दोषता की धारणा (Presumption of Innocence) ही जमानत देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।
- भ्रष्टाचार के मामलों में कठोर जांच की आवश्यकता होती है।
पीठ ने स्पष्ट किया:
“अग्रिम जमानत केवल उन्हीं असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है, जब यह स्पष्ट हो कि अभियुक्त को झूठे आरोपों में फंसाया गया है, या मामला राजनीतिक द्वेष या दुर्भावना से प्रेरित है।”
लेकिन बंसल के मामले में, प्रत्यक्ष साक्ष्य मौजूद थे – जिसमें एक सह-आरोपी रंगे हाथों पकड़ा गया और रिश्वत की पुष्टि करने वाली ऑडियो रिकॉर्डिंग भी मौजूद थी।
अतः, याचिका खारिज कर दी गई, लेकिन न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि बंसल बाद में नियमित जमानत (Regular Bail) के लिए आवेदन करता है, तो उसे इस फैसले से प्रभावित हुए बिना, उसके गुण-दोष के आधार पर तय किया जाएगा।