रैंक लिस्ट की वैधता के दौरान भी इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर कम्युनल रोटेशन नियम होगा लागू; सुप्रीम कोर्ट ने वेटलिस्ट उम्मीदवार की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एक्ट, 1986 (यूनिवर्सिटी एक्ट) के तहत, यदि कोई नियुक्त उम्मीदवार इस्तीफा दे देता है, तो उससे उत्पन्न होने वाली रिक्ति पर ‘कम्युनल रोटेशन’ (सांप्रदायिक रोटेशन) का नियम तत्काल लागू होगा, भले ही उस समय कोई वैध रैंक लिस्ट मौजूद हो। कोर्ट ने वेटलिस्ट उम्मीदवार की अपील को खारिज करते हुए कहा कि रैंक लिस्ट की वैधता से संबंधित धारा 31(10) और कम्युनल रोटेशन से संबंधित धारा 31(11) का ‘सामंजस्यपूर्ण अर्थान्वयन’ (Harmonious Construction) किया जाना आवश्यक है।

जस्टिस एन.वी. अंजारिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, राधिका टी., जो अनुसूचित जाति (SC) वर्ग से संबंधित हैं, ने 22 अक्टूबर 2019 की अधिसूचना के तहत ‘एसोसिएट प्रोफेसर, इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री’ के पद के लिए आवेदन किया था। यह पद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित था। यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित रैंक लिस्ट में याचिकाकर्ता को दूसरा स्थान (Rank No. 2) प्राप्त हुआ था। यह रैंक लिस्ट 15 फरवरी 2021 से लागू हुई थी।

रैंक नंबर 1 पर रहीं उम्मीदवार, डॉ. अनीता सी. कुमार को इस पद पर नियुक्त किया गया। हालांकि, उन्होंने महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी में नियुक्ति मिलने के कारण 30 मार्च 2022 को इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने रिक्त हुए पद पर अपनी नियुक्ति का दावा किया। उनका तर्क था कि यूनिवर्सिटी एक्ट की धारा 31(10) के तहत रैंक लिस्ट दो साल के लिए वैध थी, इसलिए उन्हें मौका दिया जाना चाहिए।

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यूनिवर्सिटी ने शुरुआत में यह कहते हुए अनुरोध को खारिज कर दिया कि पिछली उम्मीदवार का पद पर ‘लियन’ (Lien/धारणाधिकार) था। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, यूनिवर्सिटी ने 16 सितंबर 2022 को फिर से अनुरोध अस्वीकार किया, लेकिन इस बार कारण दिया कि इस्तीफे से उत्पन्न रिक्ति को धारा 31(11) के तहत कम्युनल रोटेशन द्वारा भरा जाना चाहिए। रोटेशन के अनुसार, अब यह बारी लैटिन कैथोलिक/एंग्लो इंडियन (LC/AI) उम्मीदवार की थी।

याचिकाकर्ता ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन एकल पीठ और बाद में खंडपीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता का तर्क: याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मोहन गोपाल ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता रैंक लिस्ट में दूसरे स्थान पर थीं, इसलिए पहले रैंक होल्डर के जाने के बाद उन्हें नियुक्ति का अधिकार है। उन्होंने कहा कि कम्युनल रोटेशन की धारा 31(11) को रैंक लिस्ट की वैधता अवधि में बाधा नहीं डालनी चाहिए। उनका कहना था कि जब तक दो साल की रैंक लिस्ट वैध है, रोटेशन नियम को स्थगित रखा जाना चाहिए।

प्रतिवादी का तर्क: यूनिवर्सिटी के वकील श्री प्रांजल किशोर ने तर्क दिया कि वेटलिस्ट में शामिल उम्मीदवार को नियुक्ति का कोई अक्षुण्ण अधिकार (Indefeasible Right) नहीं होता है। उन्होंने कहा कि डॉ. अनीता के इस्तीफे के बाद एक ‘नई रिक्ति’ (Fresh Vacancy) उत्पन्न हुई, जिसे रोटेशन नियम के तहत ही भरा जाना चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वेटलिस्ट रोटेशन के वैधानिक जनादेश को दरकिनार नहीं कर सकती।

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कोर्ट का विश्लेषण

1. ‘लियन’ (Lien) का तर्क खारिज सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले यूनिवर्सिटी के उस शुरुआती तर्क को खारिज कर दिया कि डॉ. अनीता का पद पर लियन था। कोर्ट ने कहा कि जब कोई कर्मचारी किसी दूसरे पद पर स्थायी रूप से नियुक्त हो जाता है, तो पिछले पद पर उसका लियन स्वतः समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के इस आधार को कानूनन पूरी तरह गलत बताया।

2. धारा 31(10) और 31(11) का सामंजस्यपूर्ण अर्थान्वयन मामले का मुख्य मुद्दा धारा 31(10) (रैंक लिस्ट की 2 साल की वैधता) और धारा 31(11) (कम्युनल रोटेशन) के बीच का संबंध था।

कोर्ट ने ‘हार्मोनियस कंस्ट्रक्शन’ (Harmonious Construction) के सिद्धांत को लागू करते हुए कहा:

“यूनिवर्सिटी एक्ट की धारा 31(10) और 31(11) को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि दोनों उप-धाराएं अलग-अलग क्षेत्रों में काम करती हैं, लेकिन वे परस्पर अनन्य (mutually exclusive) नहीं हैं। धारा 31(10) केवल चयन सूची की जीवन अवधि निर्धारित करती है, जबकि कम्युनल रोटेशन का जनादेश इस अवधि के दौरान उत्पन्न रिक्तियों पर नियुक्ति के तरीके को नियंत्रित करता है।”

पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस अंजारिया ने कहा कि यह व्याख्या करना कि रोटेशन केवल रैंक लिस्ट की समाप्ति के बाद लागू होगा, धारा 31(11) को उस अवधि के लिए पूरी तरह से निरर्थक बना देगा।

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3. आरक्षण की संतुष्टि कोर्ट ने माना कि इस मामले में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण “रूप और सार में संतुष्ट” (Satisfied in form and substance) हो गया था जब डॉ. अनीता ने पदभार ग्रहण किया और उनका प्रोबेशन घोषित हुआ। उनके बाद के इस्तीफे ने एक नई रिक्ति पैदा की। कोर्ट ने कहा, “चूंकि रिक्ति डॉ. अनीता के इस्तीफे से उत्पन्न हुई है, इसलिए इसे अनिवार्य रूप से कम्युनल रोटेशन के आधार पर भरा जाना चाहिए।”

4. वेटलिस्ट का संचालन कोर्ट ने स्वीकार किया कि वेटलिस्ट आकस्मिक स्थितियों (जैसे चयनित उम्मीदवार का ज्वाइन न करना) के लिए होती है, लेकिन यह रोटेशन के नियमों के अधीन है। यदि कोई उम्मीदवार ज्वाइन कर लेता है और बाद में इस्तीफा देता है, तो रिक्ति रोटेशन के वैधानिक नियमों का पालन करेगी।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यूनिवर्सिटी ने रिक्ति को लैटिन कैथोलिक/एंग्लो इंडियन (LC/AI) श्रेणी को आवंटित करके रोटेशन का सही पालन किया है। चूंकि याचिकाकर्ता उस श्रेणी से संबंधित नहीं थीं, इसलिए उनका दावा खारिज कर दिया गया।

कोर्ट ने कहा:

“चूंकि याचिकाकर्ता उक्त श्रेणी (LC/AI) से संबंधित नहीं थीं, इसलिए उनका चयन नहीं किया गया और न ही वेटलिस्ट से कोई उस श्रेणी का था।”

तदनुसार, अपीलों को खारिज कर दिया गया और हाईकोर्ट के आदेशों की पुष्टि की गई।

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