सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को छत्तीसगढ़ सरकार को 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में आरोपियों को लंबे समय तक हिरासत में रखने को लेकर कड़ी फटकार लगाई और अनिश्चितकालीन कारावास के औचित्य पर सवाल उठाए। यह मामला राज्य की शराब वितरण प्रणाली से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित है।
दो जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने जांच की धीमी गति पर चिंता व्यक्त की। अदालत ने कहा कि अब तक तीन चार्जशीट दाखिल की जा चुकी हैं, लेकिन मामला अभी तक हल नहीं हुआ है। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “जांच अपनी गति से चलती रहेगी। यह अनंत काल तक चलेगी। आप व्यक्ति को हिरासत में रखकर वस्तुतः दंडित कर रहे हैं। आपने प्रक्रिया को ही सजा बना दिया है। यह कोई आतंकी या तिहरे हत्याकांड का मामला नहीं है।”
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों को अन्य आरोपियों के साथ आमना-सामना कराना जरूरी है। दूसरी ओर, आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने तर्क दिया कि आरोप तय किए बिना ही उनके मुवक्किलों को लंबे समय से हिरासत में रखा गया है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता अरविंद सिंह और अमित सिंह को पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा से आमना-सामना का अवसर दिया जाएगा और मामले की अगली सुनवाई 9 मई को होगी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी जांच में उच्च स्तर के एक गठजोड़ का पर्दाफाश किया है, जिसमें राज्य सरकार के अधिकारी, निजी संस्थाएं और राजनीतिक हस्तियां शामिल हैं। आरोप है कि 2019 से 2022 के बीच अवैध गतिविधियों के जरिये 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की गई। आयकर विभाग द्वारा 2022 में दाखिल एक चार्जशीट में आरोप लगाया गया था कि छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CSMCL) के माध्यम से खरीदी गई शराब की मात्रा के आधार पर डिस्टिलरों से रिश्वत ली जाती थी और रिकॉर्ड से बाहर शराब बेची जाती थी।