भविष्य में हाईकोर्ट से अधिक जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने पहले से सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचाराधीन मामले में आदेश पारित करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की आलोचना की

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीखी आलोचना की है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट द्वारा पारित उस अंतरिम आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें स्तनपान कराने वाली माताओं और छोटे बच्चों के लिए खाद्य आपूर्ति पर रोक लगा दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का यह कदम “इस न्यायालय के आदेशों को दरकिनार करने का प्रयास करने की सीमा तक जाता है।” शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि “हाईकोर्ट को आगे की कार्यवाही से पहले शीर्ष अदालत के आदेशों की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।”

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL No. 21609/2021) के रूप में दायर किया गया था, जिसमें सरकार की कल्याणकारी योजना के तहत स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद और वितरण से संबंधित मुद्दों को उठाया गया था। 11 नवंबर, 2024 को हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि “यदि इस दौरान कोई टेंडर अंतिम रूप दिया गया है, तो आपूर्ति के लिए बिना न्यायालय की अनुमति के इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।”

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उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आदेश से आहत होकर शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका (SLP (C) No. 30405/2024) दायर की। सरकार ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कारण के इस तरह की रोक लगा दी, जिससे कल्याणकारी योजना के कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

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मामले में प्रमुख कानूनी मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो महत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं पर विचार किया:

  1. क्या हाईकोर्ट खाद्य आपूर्ति पर रोक लगाने का आदेश बिना किसी उचित कारण के जारी कर सकता था?
  2. क्या सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद हाईकोर्ट अपने आदेश में संशोधन करने का अधिकार रखता था?

19 दिसंबर, 2024 को इस याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कारण बताए अचानक खाद्य आपूर्ति रोकने का आदेश दे दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि “स्तनपान कराने वाली माताओं और छोटे बच्चों के लिए आवश्यक खाद्य आपूर्ति को बिना किसी ठोस कारण के रोका नहीं जाना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद, 20 दिसंबर, 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक और आदेश जारी कर दिया, जिसमें उसने अपने पहले के आदेश में संशोधन किया और राज्य सरकार को वर्ष 2024-25 की तीसरी और चौथी तिमाही के लिए खाद्य आपूर्ति जारी रखने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के इस कदम पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई।

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सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही पर कड़ी आपत्ति जताई और निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

  • “हम हाईकोर्ट से भविष्य में अधिक जिम्मेदार आचरण की अपेक्षा करते हैं,” सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा।
  • “हमें आश्चर्य है कि हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर, 2024 को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश के बाद क्या किया। हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई कार्यवाही न तो उचित थी और न ही वांछनीय।”
  • “हाईकोर्ट को इस न्यायालय द्वारा दी गई अंतरिम रोक के आदेश की जानकारी होने के बावजूद आगे के आदेशों की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, न कि इस दौरान और नए निर्देश जारी करने चाहिए थे।”
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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को योजना को यथासंभव पूर्ववत रूप से जारी रखने की अनुमति दी, जब तक कि जनहित याचिका का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने इस मामले से संबंधित हाईकोर्ट द्वारा पारित अन्य सभी अंतरिम आदेशों को भी निरस्त कर दिया।

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