सुप्रीम कोर्ट ने ‘डॉग माफिया’ वाले सर्कुलर पर महिला की जेल की सजा रद्द की, कहा- अगर माफी सच्चे मन से हो तो दया न्यायिक विवेक का अभिन्न अंग है

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसमें आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर न्यायपालिका की आलोचना करने वाली एक महिला को साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि दंड देने की शक्ति में क्षमा करने की शक्ति भी निहित है, विशेष रूप से तब जब व्यक्ति अपनी गलती के लिए सच्चा पश्चाताप व्यक्त करता है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने विनीता श्रीनंदन द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय उचित सावधानी नहीं बरती और जल्द से जल्द दी गई बिना शर्त माफी को खारिज कर दिया।

विवाद की पृष्ठभूमि

यह मामला 29 जनवरी, 2025 को जारी एक सर्कुलर से उत्पन्न हुआ था, जिसे अपीलकर्ता विनीता श्रीनंदन ने जारी किया था। वह उस समय सीवुड्स एस्टेट्स लिमिटेड की सांस्कृतिक निदेशक थीं। “न्यायिक प्रणाली द्वारा लोकतंत्र को कैसे कुचला जा रहा है?” शीर्षक वाले इस सर्कुलर को बॉम्बे हाईकोर्ट के ध्यान में तब लाया गया जब पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर सुनवाई चल रही थी।

सर्कुलर में आरोप लगाया गया था कि देश में “डॉग फीडर्स माफिया” सक्रिय है, जिसकी “न्यायिक प्रणाली में बहुत मजबूत उपस्थिति” है। इसमें यह भी दावा किया गया था कि जज कुत्तों के हमलों को दिखाने वाले सबूतों का संज्ञान लेने से बचते हैं और “अधिकांश हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट के आदेश मानव जीवन की कीमत को नजरअंदाज करते हुए डॉग फीडर्स का बचाव करेंगे।”

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इस सर्कुलर का स्वतः संज्ञान लेते हुए, हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की। 23 अप्रैल, 2025 के अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 12 के तहत दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने माना कि यह सर्कुलर अदालत को बदनाम करने के इरादे से जारी किया गया था और उन्हें एक सप्ताह के साधारण कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।

माफी और दलीलें

हाईकोर्ट से कारण बताओ नोटिस मिलने के बाद, अपीलकर्ता ने 18 फरवरी, 2025 को एक जवाबी हलफनामा दायर किया था। उन्होंने स्वीकार किया कि निवासियों के मानसिक दबाव में उनसे “गंभीर त्रुटि” हुई है। पश्चाताप के रूप में, उन्होंने सीवुड्स एस्टेट्स लिमिटेड के निदेशक मंडल से इस्तीफा दे दिया और बिना शर्त माफी मांगी।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस माफी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि यह माफी केवल औपचारिकता के लिए है और इसमें सच्चा पश्चाताप नहीं दिखता।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हालांकि सर्कुलर की भाषा निश्चित रूप से आपराधिक अवमानना ​​के दायरे में आती है, लेकिन माफी के बावजूद हिरासत की सजा (Custodial Sentence) देना उचित नहीं था।

क्षमा करने की शक्ति जस्टिस विक्रम नाथ ने पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायिक कार्यवाही में दया के महत्व पर जोर दिया:

“दंड देने की शक्ति में आवश्यक रूप से क्षमा करने की शक्ति भी साथ चलती है, जहाँ अदालत के समक्ष व्यक्ति अपनी उस हरकत के लिए सच्चा पश्चाताप और ग्लानि दिखाता है… इसलिए, दया न्यायिक विवेक का एक अभिन्न अंग बनी रहनी चाहिए, जिसे तब बढ़ाया जाना चाहिए जब अवमाननाकर्ता ईमानदारी से अपनी गलती स्वीकार करता है और उसका प्रायश्चित करना चाहता है।”

धारा 12 की व्याख्या अदालत ने अवमानना ​​अधिनियम की धारा 12 का विश्लेषण किया। पीठ ने कहा कि यह कानून अदालत को आरोपी को दोषमुक्त करने या सजा माफ करने का अधिकार देता है, बशर्ते माफी अदालत के संतोषजनक हो। धारा 12 का स्पष्टीकरण यह भी बताता है कि किसी माफी को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वह सशर्त है, यदि वह सद्भावनापूर्ण (Bona fide) तरीके से मांगी गई हो।

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पुराने फैसलों में अंतर सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने डॉ. डी.सी. सक्सेना बनाम भारत के मुख्य न्यायाधीश और राजेंद्र सेल जैसे जिन मामलों का हवाला दिया था, वे इस मामले में लागू नहीं होते।

पीठ ने बताया कि उन मामलों में या तो अवमाननाकर्ताओं ने माफी नहीं मांगी थी, अपनी माफी वापस ले ली थी, या जजों पर रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगाए थे। इसके विपरीत, वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने अपनी उपस्थिति के पहले ही दिन से बिना शर्त माफी मांगी थी।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता की माफी में ईमानदारी की कमी थी। इसलिए, अदालत ने माना कि न्याय के हित में सजा को माफ किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को उस हद तक रद्द कर दिया जहाँ तक जेल की सजा सुनाई गई थी, और अपील को स्वीकार कर लिया।

केस डीटेल्स:

  • केस टाइटल: विनीता श्रीनंदन बनाम बॉम्बे हाईकोर्ट (स्वतः संज्ञान)
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या 2267 ऑफ 2025
  • कोरम: जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता

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