क्षेत्र में न्यायपालिका को मजबूत करने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के तीन अपर जजों को स्थायी रूप से नियुक्त करने की सिफारिश की है। जिन जजों को स्थायी बनाए जाने की अनुशंसा की गई है, वे हैं – जस्टिस वसीम सादिक नरगल, जस्टिस राजेश सेखरी और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी।
जस्टिस वसीम सादिक नरगल, जो इस हाई कोर्ट में जम्मू क्षेत्र से पहले मुस्लिम जज के रूप में जाने जाते हैं, का कानूनी करियर अत्यंत प्रतिष्ठित रहा है। उन्हें 2017 में हाई कोर्ट कोलेजियम द्वारा न्यायाधीश पद के लिए अनुशंसित किया गया था और अप्रैल 2018 में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने इस सिफारिश को मंजूरी दी थी। इसके बाद, उन्हें जून 2022 में अपर जज के रूप में नियुक्त किया गया और 3 जून 2022 को शपथ दिलाई गई। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य किया है और जम्मू-कश्मीर गृह विभाग के लिए वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता भी रह चुके हैं।
जस्टिस राजेश सेखरी ने जुलाई 2024 में हाई कोर्ट के अपर जज के रूप में शपथ ग्रहण की। उन्होंने 1989 में जम्मू विश्वविद्यालय के लॉ फैकल्टी से एलएलबी प्राप्त किया और 1995 में मुनसिफ जज के रूप में न्यायिक सेवा में प्रवेश किया। वे सब जज, राजौरी और कारगिल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य कर चुके हैं। 2008 में उन्हें जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया। हाई कोर्ट में नियुक्ति से पहले, वे जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल, जम्मू में न्यायिक सदस्य के रूप में कार्यरत थे।

जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी ने 1990 में अपने कानूनी करियर की शुरुआत की और दिसंबर 1997 में मुनसिफ जज नियुक्त किए गए। 2000 में उन्हें सब जज के रूप में पदोन्नत किया गया और 2008 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश बनाए गए। उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण न्यायिक पदों पर कार्य किया है, जिसमें श्रीनगर स्थित जम्मू-कश्मीर स्पेशल ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य के रूप में उनकी भूमिका शामिल है। मार्च 2024 में उन्हें हाई कोर्ट के अपर जज के रूप में नियुक्त किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 5 मार्च 2025 को अपनी बैठक में इन तीनों अपर जजों को स्थायी बनाने की सिफारिश की। हालांकि, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट में जजों की कमी बनी हुई है। कोर्ट की स्वीकृत क्षमता 25 जजों की है, लेकिन वर्तमान में केवल 15 जज कार्यरत हैं और 10 पद खाली हैं। इस कमी के कारण मामलों के त्वरित निपटारे में बाधा आ रही है और मौजूदा जजों पर कार्यभार बढ़ रहा है। इन जजों को स्थायी रूप से नियुक्त करने का निर्णय न्यायिक लंबित मामलों को कम करने और क्षेत्र में न्याय प्रशासन को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।