परिस्थितिजन्य साक्ष्य में उद्देश्य की अनुपस्थिति अभियुक्त के पक्ष में हो सकती है, लेकिन साक्ष्यों की श्रृंखला पुष्ट होने पर बरी होने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुभाष अग्रवाल बनाम राज्य (एनसीटी) दिल्ली मामले में एक आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता को अपने पुत्र की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। अदालत ने दोहराया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर चल रहे किसी मामले में यदि प्रेरणा (मकसद) का अभाव हो तो वह अभियुक्त के पक्ष में एक कारक हो सकता है, लेकिन यदि साक्ष्य की श्रृंखला दोष को अचूक रूप से स्थापित करती है, तो केवल इसी आधार पर दोषमुक्ति नहीं दी जा सकती।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा और ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 302 तथा शस्त्र अधिनियम, 1959 की धाराओं 25 और 27 के तहत दोषसिद्धि को सही ठहराया। अदालत ने हत्या के लिए आजीवन कारावास और शस्त्र अधिनियम के तहत क्रमशः एक वर्ष और सात वर्ष के कठोर कारावास के साथ जुर्माना भी लगाया।

मामला संक्षेप में:

यह घटना 14–15 दिसंबर 2012 की रात की है, जब अपीलकर्ता अपने निवास पर अपनी पत्नी और पाँच बच्चों के साथ रहता था। उसी रात उनके सबसे छोटे पुत्र की छाती में निकट दूरी से गोली लगने से मृत्यु हो गई। अपीलकर्ता सुभाष अग्रवाल ने परिवार को बताया कि बेटे ने पेचकस (screwdriver) से आत्महत्या कर ली।

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प्रमुख गवाहों में अभियुक्त की पत्नी (PW-3) और बेटियाँ (PW-1 और PW-4) थीं, जिन्होंने घटना के बाद अभियुक्त के व्यवहार के बारे में गवाही दी। एक पड़ोसी (PW-11) ने बताया कि अभियुक्त ने उसे भी यही बताया कि बेटे ने पेचकस से आत्महत्या की, जबकि उस पर खून के कोई निशान नहीं थे।

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पक्षों की दलीलें:

अपीलकर्ता की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता वरुण देव मिश्रा ने तर्क दिया कि अभियुक्त के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और परिस्थितिजन्य साक्ष्य एक पूर्ण श्रृंखला नहीं बनाते। उन्होंने यह भी कहा कि अभियुक्त और मृतक पुत्र के बीच अच्छे संबंध थे, और कोई स्पष्ट मकसद नहीं बताया गया। अभियुक्त के दाएँ हाथ पर गनशॉट अवशेष (GSR) की उपस्थिति को भी संदेहास्पद और जबरन आरोपित बताया गया। CrPC की धारा 313 के तहत दिए गए बयान में अभियुक्त ने कहा कि पुलिस ने उस पर अत्याचार किया और कपास में GSR लगाकर जबरन उसके हाथों पर लगाया।

राज्य की ओर से:
राज्य की ओर से अधिवक्ता आकांक्षा कौल ने प्रस्तुत किया कि चिकित्सीय एवं बैलिस्टिक रिपोर्ट्स से यह स्पष्ट है कि मृत्यु आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या थी। पेचकस पर खून का न होना, अभियुक्त द्वारा झूठी कहानी गढ़ना, और उसके दाएँ हाथ पर GSR की उपस्थिति—all these were relied upon.

अदालत की विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ:

चिकित्सीय एवं बैलिस्टिक साक्ष्य:

  • डॉक्टर (PW-20) ने बताया कि छाती में लगी गोली करीब एक मीटर की दूरी से चली थी, लेकिन संपर्क दूरी की नहीं थी — जो आत्महत्या से मेल नहीं खाता।
  • बैलिस्टिक विशेषज्ञ (PW-10) ने पुष्टि की कि इस्तेमाल की गई बंदूक (डबल बैरल ब्रिच-लोडिंग) को एक हाथ से चलाया जा सकता था और लगभग तीन फीट की दूरी से गोली मारी गई थी।
  • GSR केवल अभियुक्त के दाएँ हाथ पर पाया गया, पेचकस या किसी अन्य वस्तु पर नहीं।
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झूठा स्पष्टीकरण एवं व्यवहार:

  • अभियुक्त ने पड़ोसी और परिवार को पेचकस से मृत्यु का झूठा कारण बताया।
  • उन्होंने यह नहीं बताया कि रात में शव उन्हें कैसे मिला जबकि सब सो रहे थे।
  • GSR को जबरन लगाया गया होने का दावा अविश्वसनीय माना गया, क्योंकि ऐसा होता तो दोनों हाथों पर अवशेष मिलते।

हथियार का स्वामित्व:

  • बंदूक अभियुक्त की ही थी और परिवार की गवाही के अनुसार केवल वही उसका उपयोग कर सकता था।
  • उसने बंदूक की भंडारण स्थिति और लाइसेंस को लेकर भी भ्रामक बयान दिए।

प्रेरणा (मकसद) और परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर न्यायालय की टिप्पणी:

कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष कोई स्पष्ट प्रेरणा स्थापित नहीं कर सका, लेकिन यह कहा:

“यदि किसी मामले की संपूर्ण नींव परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है, तो प्रेरणा का अभाव अभियुक्त के पक्ष में एक कारक हो सकता है। जिस प्रकार एक प्रबल प्रेरणा मात्र से दोषसिद्धि नहीं होती, उसी प्रकार प्रेरणा का पूर्ण अभाव मात्र से अभियुक्त को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता। जब चश्मदीद गवाह सुसंगत न हों, तब भी एक मजबूत प्रेरणा दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकती; उसी प्रकार जब परिस्थितियां अत्यंत सुसंगत हों और एकमात्र यही निष्कर्ष निकलता हो कि अभियुक्त ही दोषी है, तो प्रेरणा की अनुपस्थिति का कोई महत्व नहीं होता।”

अदालत ने Jan Mohammad v. State of Bihar (1953), Suresh Chandra Bahri v. State of Bihar (1995), तथा Sukhpal Singh v. State of Punjab (2019) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि प्रेरणा एक प्रासंगिक कारक हो सकती है, लेकिन जब साक्ष्य दोष को पूर्ण रूप से सिद्ध करते हों, तब इसकी आवश्यकता नहीं होती।

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निष्कर्ष और निर्णय:

कोर्ट ने पाया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला पूरी, संगठित और केवल अभियुक्त के दोष की ओर इशारा करती है। आत्महत्या की वैकल्पिक थ्योरी खारिज की गई। कोर्ट ने कहा:

“वे सभी परिस्थितियाँ, जो अभियुक्त द्वारा शव मिलने के तत्काल बाद दर्शाई गई झूठी कहानी तथा CrPC की धारा 313 के तहत दिए गए झूठे स्पष्टीकरण के साथ जुड़ी हैं—जैसे GSR के जबरन लगाए जाने का दावा—ये सभी उस परिस्थितिजन्य श्रृंखला की कड़ियाँ हैं जो अभियुक्त के दोष की ओर ही संकेत करती हैं और निर्दोषता की किसी भी संभावना को नकारती हैं।”

अतः अपील को खारिज कर दिया गया।

निर्णय: सुभाष अग्रवाल बनाम राज्य (एनसीटी) दिल्ली, आपराधिक अपील संख्या __ / 2025 (@SLP (Crl.) No. 1069/2025), निर्णय दिनांक: 17 अप्रैल 2025.

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