केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने में पुरुष अधिकारियों की तुलना में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा रहा है। सरकार ने स्पष्ट किया कि नीति के सभी मानदंड समान रूप से लागू किए जाते हैं।
यह मामला जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया, जहाँ महिला अधिकारियों ने दावा किया कि गालवान, बालाकोट और हालिया ऑपरेशन सिंदूर जैसी महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाइयों में योगदान देने के बावजूद उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित रखा गया।
केंद्र और सेना की ओर से पेश हुई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि चयन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी, लैंगिक तटस्थ और योग्यता आधारित है। उन्होंने बताया कि वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में अधिकारी का नाम सामने नहीं आता, जिससे किसी तरह के भेदभाव की संभावना ही नहीं रहती।

“सेना में हम बहुत सख्त प्रणाली का पालन करते हैं और भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं है। चयन बोर्ड के समक्ष अधिकारी का नाम ही नहीं होता,” भाटी ने दलील दी। उन्होंने यह भी कहा कि क्राइटेरिया अपॉइंटमेंट यानी कठिन क्षेत्रों में पोस्टिंग ही स्थायी कमीशन का एकमात्र आधार नहीं है, बल्कि एसीआर में कई पहलुओं को देखा जाता है।
याचिकाकर्ता महिला अधिकारियों का कहना है कि कठिन और संवेदनशील इलाकों में सेवाएँ देने के बावजूद चयन प्रक्रिया में उनके योगदान को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 2020 और 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए लैंगिक समानता के निर्देशों का पालन केंद्र ने पूरी तरह से नहीं किया।
पीठ ने नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ बैचों में 80 अंक पाने वाले अधिकारी स्थायी कमीशन से वंचित रह गए, जबकि अन्य बैचों में 65 अंक पाने वालों को चयनित कर लिया गया। अदालत ने केंद्र से कहा, “महिला अधिकारियों को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि उन्हें स्थायी कमीशन के लिए नहीं चुना जाएगा।”
भाटी ने प्रणालीगत चुनौतियों का हवाला देते हुए बताया कि नियमित अधिकारियों और एसएससी अधिकारियों के बीच अनुपात वांछित 1:1 से काफी असंतुलित है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक बैच में अधिकतम 250 अधिकारियों को ही स्थायी कमीशन के लिए चुना जा सकता है और यह पूरी तरह योग्यता सूची पर आधारित होता है।
भाटी की दलीलें गुरुवार को भी जारी रहेंगी। सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि महिला अधिकारियों के भेदभाव के आरोपों में कितनी सच्चाई है और केंद्र की निष्पक्ष प्रक्रिया की दलीलों को कितना स्वीकार किया जा सकता है।