एक महत्वपूर्ण फैसले में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों और कार्यस्थलों पर स्तनपान और चाइल्ड केयर सुविधाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि स्तनपान न केवल मां और शिशु का अधिकार है, बल्कि इसे सार्वजनिक रूप से कलंकित करने की प्रवृत्ति को समाप्त किया जाना चाहिए। अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को आवश्यक सुविधाओं को लागू करने के लिए निर्देश दे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में “मातृ स्पर्श – अव्यान फाउंडेशन” नामक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा दायर किया गया था, जो सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान कक्ष, चाइल्ड केयर सेंटर और क्रेच (शिशु गृह) स्थापित करने की वकालत करता है। रिट याचिका (सिविल) संख्या 950/2022 में यह दर्शाया गया कि उचित स्तनपान और बाल देखभाल सुविधाओं के अभाव में माताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
याचिकाकर्ता एनजीओ की निदेशक, अधिवक्ता नेहा रस्तोगी ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुए बताया कि सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण के अभाव में वह अपने शिशु को स्तनपान कराने में असमर्थ थीं। इस याचिका में पूरे देश में ऐसी सुविधाओं को अनिवार्य करने की मांग की गई थी।

कानूनी मुद्दे
इस मामले ने माताओं और शिशुओं के मौलिक अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न उठाए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर चाइल्ड केयर सुविधाओं की अनुपलब्धता निम्नलिखित अनुच्छेदों का उल्लंघन करती है:
- अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) – स्तनपान कराने के लिए माताओं को गरिमा और गोपनीयता का अधिकार मिलना चाहिए, जो उनकी निजता और शारीरिक स्वायत्तता से जुड़ा हुआ है।
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) – स्तनपान और बाल देखभाल सुविधाओं की अनुपलब्धता से महिलाएं असमान रूप से प्रभावित होती हैं, जिससे उनकी सार्वजनिक जीवन में भागीदारी सीमित होती है।
- अनुच्छेद 15(3) (महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान) – राज्य का यह कर्तव्य है कि वह महिलाओं और बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाए।
- अनुच्छेद 39(f) (राज्य नीति के निदेशक तत्व) – राज्य को बच्चों के स्वस्थ विकास और उनकी गरिमा की रक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
- अनुच्छेद 47 (सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार का राज्य का कर्तव्य) – सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो बच्चों के स्वास्थ्य को बढ़ावा दें, जिनमें स्तनपान सुविधाएं भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा कि स्तनपान बच्चे के स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य तत्व है। अदालत ने कहा कि माताओं को ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जो उनके स्तनपान के अधिकार का समर्थन करे।
“बच्चे को स्तनपान कराने का अधिकार मां से अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है। इसलिए, राज्य का यह दायित्व बनता है कि वह स्तनपान को सुविधाजनक बनाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करे।”
अदालत ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (अनुच्छेद 25) और संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (अनुच्छेद 24) का उल्लेख किया, जिनमें माताओं और बच्चों के लिए विशेष देखभाल पर जोर दिया गया है। अदालत ने वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक संयुक्त वक्तव्य का भी हवाला दिया, जिसमें सार्वजनिक रूप से स्तनपान के प्रति अधिक समर्थन की मांग की गई थी।
सरकार की प्रतिक्रिया और अदालत के निर्देश
सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तुत एक हलफनामे में कहा गया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 27 फरवरी 2024 को एक परामर्श जारी किया गया था। इस परामर्श में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्तनपान कक्ष, सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन, क्रेच सुविधाएं और जेंडर-फ्रेंडली स्पेस सार्वजनिक स्थानों, कार्यस्थलों, परिवहन हब, शैक्षणिक संस्थानों और धार्मिक स्थलों में स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस परामर्श का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसकी पुनः याद दिलाए और यह सुनिश्चित करे कि ये सुविधाएं लागू की जाएं।
अदालत ने निम्नलिखित निर्देश भी जारी किए:
- मौजूदा सार्वजनिक स्थानों को संशोधित कर स्तनपान और चाइल्ड केयर सुविधाएं जोड़ी जाएं।
- नए सार्वजनिक भवनों में पहले से ही स्तनपान और बाल देखभाल के लिए स्थान आरक्षित किया जाए।
- सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) को भी अपने कार्यालयों और परिसरों में ऐसी सुविधाएं स्थापित करने की सलाह दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने और एक कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।