सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों को सामूहिक रूप से रद्द करने से पहले न्यायालयों और अधिकारियों को यह देखना होगा कि निर्दोष कर्मचारियों को उन गलतियों की सज़ा न मिले जो उनके कारण नहीं हुईं।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए झारखंड हाईकोर्ट के दिसंबर 2021 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें झारखंड स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (JSEB) के तीन कर्मचारियों की नियुक्तियां इस आधार पर निरस्त कर दी गई थीं कि वे स्वीकृत पदों से अधिक थीं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विभाज्यता का सिद्धांत (Doctrine of Severability), जो सामान्यतः संवैधानिक मामलों में लागू होता है, सेवा संबंधी मामलों में भी उतना ही प्रासंगिक है ताकि योग्य कर्मचारियों को प्रशासनिक चूक का खामियाज़ा न भुगतना पड़े।
पीठ ने कहा, “हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखना निर्दोषों को उन गलतियों की सज़ा देने जैसा होगा जो उनसे जुड़ी ही नहीं थीं। यह न्याय का मखौल होगा।”

न्यायालय ने चेतावनी दी कि पूरे बैच की नियुक्तियों को एक साथ रद्द कर देना “ईमानदार कर्मचारियों के मनोबल और प्रशासन की विश्वसनीयता दोनों को कमजोर करता है।”
अदालत ने पाया कि अपीलकर्ताओं के पास आवश्यक योग्यता थी, वे स्वीकृत पदों पर नियुक्त हुए थे और चयन प्रक्रिया पारदर्शी थी। अधिक से अधिक, इन नियुक्तियों को प्रक्रियागत कमी के कारण अनियमित कहा जा सकता है, लेकिन अवैध नहीं, क्योंकि न तो कोई धोखाधड़ी साबित हुई और न ही किसी क़ानूनी प्रावधान का उल्लंघन।
पीठ ने कहा कि निष्पक्षता, आनुपातिकता और व्यक्तिगत न्याय प्रशासनिक कानून के मूल तत्व हैं और न्यायालयों को “अंधाधुंध निरस्तीकरण” के बजाय मामले-दर-मामले आधार पर जांच करनी चाहिए।
पीठ ने टिप्पणी की, “न्याय अलगाव चाहता है, मिटा देना नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियुक्तियां तभी अवैध मानी जाएंगी जब वे वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करें, स्वीकृत पद के बिना की गई हों या फिर धोखाधड़ी से की गई हों। केवल प्रक्रियागत त्रुटियां सामूहिक निरस्तीकरण का आधार नहीं हो सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की नियुक्तियों को वैध और कानूनी ठहराते हुए उनकी सेवा निरंतरता और वरिष्ठता को अप्रैल 2009 से बहाल करने का निर्देश दिया। हालांकि, उन्हें बीच के समय के बकाया वेतन का अधिकार नहीं दिया गया।
उनके भविष्य के सेवा अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत ने वेतन का नोटIONAL निर्धारण और क्रमोन्नति व वार्षिक वेतनवृद्धि जैसे लाभ लागू नियमों के अनुसार प्रदान करने का आदेश दिया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके अवलोकनों को हर मामले में एक कठोर नियम की तरह लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन भविष्य में बड़े पैमाने पर नियुक्तियों से जुड़ी अनियमितताओं के मामलों में विभाज्यता और अलगाव की संभावना पर विचार करना अनिवार्य होगा।