सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चल रहे विशेष सारांश पुनरीक्षण (SIR) को रोकने से इनकार कर दिया। साथ ही, चुनाव आयोग से कहा कि वह इस प्रक्रिया के लिए आधार और मतदाता पहचान पत्र (EPIC कार्ड) को वैध दस्तावेज़ों के रूप में स्वीकार करने पर विचार करे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं और मतदाता डेटा के दुरुपयोग का आरोप लगाया।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि बड़ी संख्या में मतदाताओं की व्यक्तिगत जानकारी बिना उनकी जानकारी या सहमति के ऑनलाइन अपलोड कर दी गई। कुछ मामलों में मृत व्यक्तियों के नाम भी फॉर्मों में शामिल थे।

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने फिलहाल इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, “चूंकि यह प्रक्रिया अभी प्रारंभिक चरण में है, ऐसे में इसे रोकने का कोई कारण नहीं है।” अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया की वैधता का आकलन तब किया जा सकता है जब प्रारूप सूची अंतिम रूप ले ले।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को निर्धारित की है।
चुनाव आयोग ने दी सफाई, बताया 92% भागीदारी
इस बीच चुनाव आयोग ने विशेष सारांश पुनरीक्षण प्रक्रिया का बचाव किया है। 27 जुलाई को जारी प्रेस विज्ञप्ति में आयोग ने बताया कि बिहार के 7.89 करोड़ पात्र मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से अधिक लोगों ने इस प्रक्रिया में भाग लिया, जो लगभग 92% की भागीदारी दर्शाता है।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रारूप सूची से 35 लाख मतदाताओं के नाम गायब होने को लेकर जो सवाल उठे हैं, उनके पीछे कई कारण हैं। इनमें से कुछ मतदाता दूसरे राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं, कुछ की मृत्यु हो चुकी है, जबकि कुछ ने फॉर्म ही जमा नहीं किया या पंजीकरण नहीं करवाया।
चुनाव आयोग ने कहा कि इन मतदाताओं की स्थिति का अंतिम निर्धारण निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (ERO) और सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (AERO) द्वारा विस्तृत जांच के बाद किया जाएगा। यह प्रक्रिया 1 अगस्त तक पूरी होने की उम्मीद है।