सुप्रीम कोर्ट ने एआईएफएफ का मसौदा संविधान मंज़ूर किया, चार हफ़्तों में अपनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF) का मसौदा संविधान, जो पूर्व न्यायाधीश एल. नागेश्वर राव ने तैयार किया था, कुछ संशोधनों के साथ मंज़ूर कर लिया। अदालत ने एआईएफएफ को निर्देश दिया कि इसे चार हफ़्तों के भीतर आम निकाय की बैठक में अपनाया जाए।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने वर्तमान कार्यकारी समिति के चुनाव को भी मान्यता दी, जिसका नेतृत्व अध्यक्ष कल्याण चौबे कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि नए चुनाव कराने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि मौजूदा कार्यकाल में केवल एक वर्ष ही शेष है।

यह फ़ैसला उस सुनवाई के बाद आया है, जिसमें अदालत ने 30 अप्रैल को मसौदा संविधान को अंतिम रूप देने पर निर्णय सुरक्षित रखा था। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं रंजीत कुमार, राहुल मेहरा और अमिकस क्यूरी गोपाल शंकरनारायणन सहित कई पक्षों की आपत्तियों और सुझावों पर विचार किया। राज्य फुटबॉल संघों और पूर्व खिलाड़ियों द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर अदालत ने खंड-खंड चर्चा भी की।

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न्यायमूर्ति राव द्वारा तैयार किए गए मसौदे में एआईएफएफ की कार्यप्रणाली में कई बड़े बदलाव सुझाए गए हैं:

  • अवधि और आयु सीमा: कोई भी पदाधिकारी अधिकतम 12 वर्षों तक ही पद पर रह सकता है। लगातार दो कार्यकाल (प्रत्येक चार वर्ष) के बाद चार वर्ष का कूलिंग-ऑफ पीरियड अनिवार्य होगा। 70 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति पद पर नहीं रह सकेगा।
  • कार्यकारी समिति की संरचना: कार्यकारी समिति में कुल 14 सदस्य होंगे — एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष (एक पुरुष और एक महिला), एक कोषाध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य। इन 10 में से पाँच प्रतिष्ठित खिलाड़ी होंगे, जिनमें कम से कम दो महिलाएं होंगी।
  • पद से हटाने का प्रावधान: मसौदे में पहली बार यह व्यवस्था की गई है कि अध्यक्ष समेत पदाधिकारियों को अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए हटाया जा सकेगा। मौजूदा संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मसौदा संविधान पर लंबे समय तक विचार-विमर्श हुआ और विभिन्न हितधारकों की आपत्तियों को सुना गया। अदालत ने ज़ोर दिया कि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ये सुधार आवश्यक हैं, ताकि एआईएफएफ का ढांचा आधुनिक और लोकतांत्रिक मानकों के अनुरूप बने।

अदालत के आदेश के बाद अब एआईएफएफ को चार हफ़्तों के भीतर आम निकाय की बैठक बुलाकर इस नए संविधान को औपचारिक रूप से अपनाना होगा।

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