सुप्रीम कोर्ट ने एक ही FIR में जमानत याचिकाओं को अलग-अलग जजों के समक्ष सूचीबद्ध करने की इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रथा पर असंतोष व्यक्त किया

हाल के एक घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ही आपराधिक मामले से उत्पन्न जमानत आवेदनों को अलग-अलग एकल न्यायाधीशों के समक्ष सूचीबद्ध करने की इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रथा पर अपना असंतोष व्यक्त किया।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सीटी रविकुमार और ज्यूटिक पीवी संजय कुमार शामिल थे, ने कहा कि इस तरह की प्रक्रिया से असंगत परिणाम सामने आए और विसंगतिपूर्ण स्थितियाँ पैदा हुईं।

जस्टिस गवई ने कार्यवाही के दौरान चलन पर सवाल उठाया और कहा कि कुछ मामलों में, एक न्यायाधीश ने जमानत दे दी जबकि दूसरे ने नहीं।
इसके बाद कोर्ट ने अपने आदेश में अपनी चिंता दर्ज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को इस मुद्दे के बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट को सूचित करने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई आदेशों के अस्तित्व पर प्रकाश डाला जहां विभिन्न न्यायाधीशों ने एक ही प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) से उत्पन्न जमानत याचिकाओं की सुनवाई की। इसके परिणामस्वरूप एकरूपता की कमी हुई, कुछ आरोपियों को जमानत दे दी गई जबकि अन्य को जमानत नहीं दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने इस असमानता पर अपना असंतोष व्यक्त किया और ऐसे मामलों में निरंतरता की आवश्यकता पर बल दिया।

साजिद को जमानत देते समय चिंता व्यक्त की गई थी, जिस पर सशस्त्र दंगे का आरोप था। वकील अंकुर यादव द्वारा प्रस्तुत साजिद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 6 दिसंबर के आदेश को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की

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