कर्नाटक की बार एसोसिएशनों में महिलाओं को 30% आरक्षण देने की वकालत सुप्रीम कोर्ट ने की

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम पहल करते हुए कर्नाटक राज्य की जिला बार एसोसिएशनों की गवर्निंग काउंसिल में महिलाओं के लिए 30% सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की है। यह पहल न्यायिक पेशे में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और बार एसोसिएशनों की संचालन संरचना में लैंगिक संतुलन लाने के उद्देश्य से की गई है।

यह निर्देश 24 जनवरी को दिए गए एक आदेश की निरंतरता में है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु अधिवक्ता संघ (AAB) में कोषाध्यक्ष का पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने को कहा था। इसके साथ ही AAB की गवर्निंग काउंसिल में भी 30% आरक्षण लागू करने का आदेश दिया गया था, जिससे लिंग समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा मिल सके।

READ ALSO  हत्या के मामले में हथियार की बरामदगी न होना अभियोजन को अविश्वसनीय नहीं बनाता, यदि हत्या सबूतों से साबित हो: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 1999 के मामले में उम्रकैद की सज़ा बरकरार रखी

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने आज के आदेश में बताया कि AAB में हाल में हुए चुनावों में इस दिशा-निर्देश का पालन किया गया। उन्होंने कहा कि अब यह व्यवस्था राज्य की सभी बार एसोसिएशनों में लागू की जानी चाहिए। कोर्ट ने आदेश दिया, “हम निर्देश देते हैं कि 24 जनवरी का आदेश ‘म्यूटाटिस म्यूटांडिस’ सभी जिला अदालत बार एसोसिएशनों पर लागू होगा। अतः कोषाध्यक्ष का पद महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाए और गवर्निंग बॉडी की 30% सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए हों।”

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के समानांतर, कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मांग को समर्थन दिया है। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने तुमकुरु जिला बार एसोसिएशन में महिला अधिवक्ताओं के लिए 33% आरक्षण की मांग पर सुनवाई करते हुए आगामी चुनावों में संयुक्त सचिव का एक पद और कार्यकारी परिषद के दो पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''हम दानव नहीं हैं;'' मौलिक अधिकारों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को वापस लेने की अनुमति

न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने अपने आदेश में बार एसोसिएशनों में पारंपरिक पुरुष वर्चस्व को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसे अक्सर “ओल्ड मैन क्लब” के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा, “यह केवल नैतिक रूप से उचित ही नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी आवश्यक है कि सभी बार एसोसिएशन महिलाओं को उनके प्रतिनिधित्व के समान अधिकार दें, जिससे लंबे समय से पुरुषों के गढ़ बने इन संगठनों को बदलने में मदद मिलेगी।”

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के ये निर्देश न्यायिक क्षेत्र में लैंगिक असमानता को दूर करने की दिशा में एक बड़ा कदम माने जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य महिला अधिवक्ताओं को नेतृत्व और निर्णय प्रक्रिया में समान अवसर देना है।

READ ALSO  कब होंगी CLAT 2023 और 2024 की परीक्षा- जानिए यहाँ
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles