चश्मदीद द्वारा पहचाने जाने के बावजूद FIR में आरोपी का नाम न होना अभियोजन के लिए “घातक”: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी को बरी किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हत्या के दोषी को बरी करते हुए स्पष्ट किया है कि यदि चश्मदीद गवाह आरोपी को पहले से जानता है, फिर भी एफआईआर (FIR) में उसका नाम दर्ज नहीं कराया जाता है, तो यह चूक अभियोजन पक्ष के मामले की विश्वसनीयता को पूरी तरह से खत्म कर देती है।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और निचली अदालत के उन फैसलों को खारिज कर दिया, जिनमें अपीलकर्ता गोविंद मंडावी को हत्या का दोषी ठहराया गया था। पीठ ने कहा कि एफआईआर में आरोपी के नाम का उल्लेख न करना मामले की “जड़ पर प्रहार” करता है।

अपीलकर्ता गोविंद मंडावी को आईपीसी की धारा 302/34 (हत्या/सामान्य आशय) और धारा 460 के तहत दोषी ठहराया गया था। जबकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो सह-आरोपियों, नरेंद्र नाग और मानसिंह नुरेटी को बरी कर दिया था, लेकिन मंडावी की सजा बरकरार रखी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मुख्य चश्मदीद गवाह की गवाही विरोधाभासी थी और उसमें बाद में काफी सुधार (improvements) किए गए थे, विशेष रूप से आरोपी की पहचान को लेकर।

क्या था पूरा मामला?

अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना 17 अप्रैल 2021 की रात की है। शिकायतकर्ता हीरालाल हिड़को (PW-1) ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि उनकी बहू, श्रीमती सुकमई हिड़को (PW-2) ने उन्हें बताया कि “दो अज्ञात नकाबपोश व्यक्तियों” ने उनके खेत की झोपड़ी में घुसकर उनके पति बीवन हिड़को का अपहरण किया और उस पर हमला किया। इस जानकारी के आधार पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

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घटना के चार दिन बाद, 21 अप्रैल 2021 को, पुलिस ने मृतक की पत्नी श्रीमती सुकमई हिड़को का बयान दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 के तहत दर्ज किया। इस बयान में उन्होंने पहली बार यह दावा किया कि हमले के दौरान एक हमलावर का नकाब गिर गया था, जिससे उन्होंने उसे पहचान लिया था और वह अपीलकर्ता गोविंद मंडावी था।

निचली अदालत ने मंडावी को दोषी ठहराया था और हाईकोर्ट ने इस आधार पर फैसले की पुष्टि की थी कि मृतक की दूसरी शादी अपीलकर्ता की बहन, बिंदा बाई से हुई थी, जिसके कारण दोनों पक्षों के बीच पुरानी रंजिश थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर में आरोपी का नाम नहीं था, जबकि रिपोर्ट पूरी तरह से कथित चश्मदीद गवाह, श्रीमती सुकमई हिड़को द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित थी। यह दलील दी गई कि यदि गवाह ने वास्तव में घटना के समय अपीलकर्ता को पहचान लिया होता, तो उसका नाम शुरुआती रिपोर्ट में जरूर होता। बचाव पक्ष ने कहा कि “नकाब गिरने” की कहानी बाद में गढ़ी गई थी ताकि पुरानी दुश्मनी के कारण अपीलकर्ता को झूठा फंसाया जा सके।

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इसके विपरीत, छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि घटना के तुरंत बाद गवाह सदमे में थी और बीमार थी, जिसके कारण नाम बताने में देरी हुई। राज्य ने दोषसिद्धि के समर्थन में शिनाख्त परेड (Test Identification Parade) और खून से सने कपड़ों व कुल्हाड़ी की बरामदगी का हवाला दिया।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने हीरालाल हिड़को (PW-1) और श्रीमती सुकमई हिड़को (PW-2) की गवाही का बारीकी से विश्लेषण किया। कोर्ट ने पाया कि एफआईआर में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि किसी हमलावर का नकाब गिर गया था या गवाह बीमारी के कारण बोलने में असमर्थ थी।

फैसला लिखते हुए जस्टिस मेहता ने कहा:

“इसलिए यह पूरी तरह से अविश्वसनीय है कि वह (गवाह) अपने ससुर को आरोपी का नाम बताने से इसलिए चूक गई क्योंकि वह ठीक नहीं थी। यह चूक अभियोजन पक्ष के मामले की नींव पर ही प्रहार करती है।”

पीठ ने पाया कि दो मुख्य गवाहों ने शपथ पर गवाही देते समय अपनी कहानी को बदलने और सुधारने की कोशिश की। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब गवाह आरोपी को पहले से जानती थी (क्योंकि वह मृतक की दूसरी पत्नी का भाई था), तो शिनाख्त परेड (TIP) का कोई औचित्य नहीं था।

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एफआईआर में नाम न होने के मुद्दे पर कोर्ट ने राम कुमार पांडेय बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1975) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मामले की संभावनाओं को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण तथ्यों का एफआईआर में न होना गवाही की सत्यता परखने के लिए प्रासंगिक है।

फॉरेंसिक सबूतों के बारे में कोर्ट ने कहा:

“बरामद की गई किसी भी वस्तु पर किसी विशेष रक्त समूह (blood group) की पुष्टि नहीं हुई है, और इसलिए, इन्हें अपराध से नहीं जोड़ा जा सकता।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि “आरोपी-अपीलकर्ता के नाम का देरी से परिचय” पुरानी रंजिश के कारण उसे फंसाने के लिए रची गई एक चाल प्रतीत होती है। नतीजतन, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने कानून और तथ्यों में गंभीर त्रुटियां की हैं।

पीठ ने आदेश दिया:

“आक्षेपित निर्णय जांच में खरे नहीं उतरते और उन्हें रद्द किया जाता है। आरोपी-अपीलकर्ता को आरोपों से बरी किया जाता है। यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल हिरासत से रिहा किया जाए।”

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: गोविंद मंडावी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
  • साइटेशन: 2025 INSC 1399
  • कोरम: जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता

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