एक्सीडेंट के बाद फाइल किया गया ITR भी मुआवजे के आकलन के लिए मान्य; बिजनेस प्रॉफिट शायद ही कभी स्थिर रहता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि मोटर दुर्घटना दावों में मुआवजे की गणना के लिए दुर्घटना या मृत्यु के बाद दाखिल किए गए आयकर रिटर्न (ITR) पर भी विचार किया जा सकता है। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि केवल दुर्घटना की तारीख के बाद जमा किए जाने के आधार पर रिटर्न को खारिज करना “कानूनी रूप से सही नहीं” है।

सायर व अन्य बनाम रामकरण व अन्य के मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोटेश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि व्यावसायिक लाभ (Business Profits) “शायद ही कभी स्थिर होते हैं और अक्सर इनमें निरंतर वृद्धि (Progressive Growth Trajectory) देखी जाती है।” इस आधार पर कोर्ट ने दावेदारों को दिए जाने वाले मुआवजे को 16,01,200 रुपये से बढ़ाकर 19,09,900 रुपये कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील राजस्थान हाईकोर्ट (जयपुर बेंच) के 25 अप्रैल 2025 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। यह मामला 27 जून 2006 को हुई एक घातक दुर्घटना से संबंधित है, जिसमें राजेंद्र सिंह गेना (32 वर्ष) की मृत्यु हो गई थी। उनकी कार को प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा लापरवाही से चलाए जा रहे ट्रक ने टक्कर मार दी थी।

दावेदारों ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत मुआवजा याचिका दायर की थी। उनका दावा था कि मृतक अपने ट्रांसपोर्ट बिजनेस और कृषि कार्यों से वित्तीय वर्ष 2004-05 में 84,000 रुपये और 2005-06 में 1,26,000 रुपये कमाता था।

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मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT), अजमेर ने 9 जून 2009 के अपने आदेश में मृतक की आय केवल 84,000 रुपये प्रति वर्ष मानी और अगले वर्ष की बढ़ी हुई आय के दावे को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए मुआवजे की कुल राशि बढ़ाकर 16,01,200 रुपये तो कर दी, लेकिन आय के आकलन को 84,000 रुपये पर ही यथावत रखा। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के इस निष्कर्ष से सहमति जताई थी कि 2005-06 का ITR असली नहीं था क्योंकि इसे मृत्यु के बाद दाखिल किया गया था और हस्ताक्षर में भी विसंगतियां थीं।

पक्षों की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि निचली अदालतों ने वार्षिक आय 1,26,000 रुपये के बजाय 84,000 रुपये निर्धारित करके गलती की है। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि से होने वाली 60,000 रुपये की अतिरिक्त आय की अनदेखी की गई।

इसके अलावा, दावेदारों ने कहा कि हाईकोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम प्रणय सेठी के फैसले के अनुसार पारंपरिक मदों (Conventional Heads) में 10% की वृद्धि नहीं की और ब्याज दर भी कम (5%) दी गई।

कोर्ट का विश्लेषण

वर्ष 2005-06 के लिए दाखिल ITR को खारिज किए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले निधि भार्गव बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2025) का हवाला दिया। पीठ ने कहा:

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“हमारे विचार में, केवल दुर्घटना की तारीख के बाद जमा किए जाने के आधार पर रिटर्न को खारिज करना कानूनी रूप से कायम नहीं रखा जा सकता।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निधि भार्गव मामले से यह स्थापित होता है कि मुआवजे की गणना के लिए दुर्घटना/मृत्यु के बाद दाखिल आयकर रिटर्न पर भी विचार किया जा सकता है।

हालांकि, इस विशेष मामले के तथ्यों को देखते हुए, कोर्ट ने उस विशिष्ट रिटर्न की वास्तविकता पर ट्रिब्यूनल के संदेह (हस्ताक्षर में भिन्नता के कारण) को भी नोट किया। इसलिए, उस रिटर्न को सीधे स्वीकार करने के बजाय, कोर्ट ने “व्यावसायिक वृद्धि” के सिद्धांतों के आधार पर एक अलग दृष्टिकोण अपनाया। कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:

“मौजूदा मामले में, यह बस नहीं माना जा सकता कि दुर्घटना के समय मृतक के व्यवसाय से कोई लाभ नहीं हो रहा था… इसके बजाय, पिछले वर्ष या वर्षों के रिटर्न को एक आधारभूत बेंचमार्क के रूप में लिया जाना चाहिए, यह मानते हुए कि व्यावसायिक लाभ शायद ही कभी स्थिर होते हैं और अक्सर एक प्रगतिशील विकास प्रक्षेपवक्र (Progressive Growth Trajectory) प्रदर्शित करते हैं।”

इस तर्क के आधार पर, कोर्ट ने माना कि मृतक के वित्तीय लाभों का निष्पक्ष और उचित मूल्यांकन आवश्यक है और वार्षिक आय का पुनर्मूल्यांकन करते हुए इसे 1,00,000 रुपये प्रति वर्ष निर्धारित किया।

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फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए पुनर्मूल्यांकित आय के आधार पर मुआवजे में वृद्धि की:

  • वार्षिक आय: 1,00,000 रुपये
  • भविष्य की संभावनाएं (40%): 40,000 रुपये
  • कटौती (व्यक्तिगत खर्च के लिए 1/4): (-) 35,000 रुपये
  • शुद्ध वार्षिक निर्भरता: 1,05,000 रुपये
  • गुणक (Multiplier – 16): 16,80,000 रुपये
  • पारंपरिक मद (संपदा, अंतिम संस्कार, साहचर्य की हानि): 2,29,900 रुपये

कुल मुआवजा राशि: 19,09,900 रुपये

कोर्ट ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर यह राशि सीधे दावेदारों के बैंक खाते में जमा करें। ब्याज दर वही रहेगी जो ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई थी।

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: सायर व अन्य बनाम रामकरण व अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील (SLP(C) No. 24501/2025 से उत्पन्न)
  • कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोटेश्वर सिंह

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