सुप्रीम कोर्ट ने एक सड़क दुर्घटना मामले में यह निर्णय दिया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर कार चालक द्वारा बिना किसी चेतावनी के अचानक ब्रेक लगाना दुर्घटना का मूल कारण था। न्यायालय ने मोटरसाइकिल सवार पीड़ित की आंशिक लापरवाही को 30% से घटाकर 20% कर दिया और मुआवजे की राशि ₹58.53 लाख से बढ़ाकर ₹91.39 लाख निर्धारित की।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने 29 जुलाई 2025 को पारित किया। यह मामला सिविल अपील संख्या __/2025 [@ विशेष अनुमति याचिका (दीवानी) सं. 28062-63/2023] के अंतर्गत एस. मोहम्मद हक्किम बनाम नेशनल इन्श्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य शीर्षक से सूचीबद्ध था।
पृष्ठभूमि:
7 जनवरी 2017 को अपीलकर्ता एस. मोहम्मद हक्किम, जो उस समय कोयंबटूर स्थित एक इंजीनियरिंग कॉलेज में तृतीय वर्ष के छात्र थे, मोटरसाइकिल से अपने मित्र के साथ यात्रा कर रहे थे। इसी दौरान आगे चल रही एक कार (चालित द्वारा प्रतिवादी संख्या 2) ने अचानक ब्रेक लगा दिए, जिससे मोटरसाइकिल कार से टकरा गई और हक्किम सड़क पर गिर पड़े। तभी पीछे से आ रही एक बस ने उन्हें कुचल दिया, जिसके कारण उनकी बाईं टांग कमर के नीचे से काटनी पड़ी।
कार और बस दोनों बीमित थीं—कार का बीमा प्रतिवादी संख्या 3 और बस का बीमा प्रतिवादी संख्या 1 (नेशनल इन्श्योरेंस कंपनी लिमिटेड) द्वारा किया गया था।
अपीलकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के समक्ष ₹1.16 करोड़ का मुआवजा दावा किया। अधिकरण ने ₹91,62,066 का आकलन करते हुए अपीलकर्ता की 20% आंशिक लापरवाही मानते हुए ₹73,29,653 भुगतान योग्य ठहराया। कार चालक को पूर्ण रूप से दोषमुक्त किया गया।
हाई कोर्ट में प्रतिवादी संख्या 1 (बीमा कंपनी) की अपील व अपीलकर्ता की प्रत्योत्तर याचिका पर सुनवाई के बाद, मद्रास उच्च न्यायालय ने लापरवाही का अनुपात 40% (कार चालक), 30% (बस चालक) और 30% (अपीलकर्ता) निर्धारित किया तथा परिचारक व्यय ₹18 लाख से घटाकर ₹5 लाख कर दिए। कुल देय मुआवजा ₹58,53,447 तय किया गया। भविष्य के उपचार के लिए ₹5 लाख की अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि दुर्घटना का मूल कारण कार द्वारा अचानक ब्रेक लगाए जाना था। पीठ ने कहा:
“हाईवे पर वाहनों की गति सामान्यतः अधिक होती है और यदि कोई चालक वाहन रोकना चाहता है तो उसे पीछे से आ रहे वाहनों को संकेत देना आवश्यक होता है। वर्तमान मामले में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कार चालक ने ऐसा कोई संकेत दिया।”
हालांकि न्यायालय ने यह भी माना कि अपीलकर्ता द्वारा पर्याप्त दूरी न रखना और बिना वैध लाइसेंस के वाहन चलाना लापरवाही के तत्व हैं, किंतु मुख्य कारण कार चालक की असावधानी थी। अतः लापरवाही का निर्धारण इस प्रकार किया गया:
- कार चालक – 50%
- बस चालक – 30%
- अपीलकर्ता – 20%
मुआवजा निर्धारण:
अपीलकर्ता की उम्र 20 वर्ष थी और दुर्घटना के कारण वह 100% कार्यात्मक विकलांगता से पीड़ित हैं। Navjot Singh बनाम Harpreet Singh (2020 SCC OnLine SC 1562) निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने मासिक काल्पनिक आय ₹20,000 और 40% भविष्य की संभावना को स्वीकार करते हुए 18 का गुणक (multiplier) अपनाया। Sarla Verma v. DTC और Pranay Sethi के दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया गया।
शीर्ष | राशि (₹) |
आय की हानि | ₹60,48,000 |
परिचारक व्यय | ₹18,00,000 |
पीड़ा व कष्ट | ₹2,00,000 |
वैवाहिक संभावनाओं की हानि | ₹5,00,000 |
असुविधा | ₹1,00,000 |
अतिरिक्त पोषण | ₹50,000 |
चिकित्सा व्यय | ₹22,03,066 |
यातायात खर्च | ₹20,000 |
वस्त्र क्षति | ₹3,000 |
भविष्य की चिकित्सा | ₹5,00,000 |
कुल | ₹1,14,24,066 |
20% आंशिक लापरवाही की कटौती के बाद, देय राशि ₹91,39,253 निर्धारित की गई, जिस पर दावे की तिथि से 7.5% वार्षिक ब्याज देय होगा।
अंतिम आदेश:
न्यायालय ने परिचारक व्यय ₹18 लाख को युक्तिसंगत ठहराते हुए हाई कोर्ट द्वारा की गई कटौती को असंगत बताया। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को जीवन भर किसी की सहायता की आवश्यकता होगी, अतः यह व्यय उचित है।
न्यायालय ने ₹91,39,253 का कुल मुआवजा निर्धारित कर आदेश दिया कि यह राशि चार सप्ताह के भीतर अपीलकर्ता को भुगतान की जाए। सभी लंबित आवेदनों का भी निस्तारण कर दिया गया।
अधिवक्ता उपस्थिति:
अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस. प्रभाकरण ने पक्ष रखा। प्रतिवादी संख्या 1 (बीमा कंपनी) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बासंत उपस्थित थे। अन्य प्रतिवादियों की ओर से संबंधित अधिवक्ताओं ने पैरवी की।
