गंभीर मामलों में ‘स्टर्लिंग विटनेस’ की गवाही ही सजा के लिए पर्याप्त होती है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक नाबालिग बालिका के अपहरण और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए आरोपी की अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि जब कोई गवाह “स्टर्लिंग विटनेस” (अत्यंत निष्कलंक और विश्वसनीय गवाह) के रूप में सामने आता है, तो केवल उसकी गवाही के आधार पर भी अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (POCSO), अंबिकापुर द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 30 जून 2020 को दर्ज की गई एक शिकायत से संबंधित है, जिसमें पीड़िता के पिता ने बताया कि उनकी 14 वर्षीय बेटी 29 जून की शाम को अपनी सहेलियों के साथ टहलने निकली थी और वापस नहीं लौटी। उन्हें संदेह था कि गांव में अक्सर आने-जाने वाला युवक, राजू यादव, उसे बहला-फुसलाकर ले गया है।

बाद में पीड़िता मिली और उसने बयान दिया कि आरोपी उसे कछार के जंगल में ले गया, रातभर वहीं रखा और उसके साथ बलात्कार किया। पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण) के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई, फिर जांच के बाद IPC की धारा 376(3), 376(2)(g) और POCSO अधिनियम की धारा 3(a)/4(2) एवं 5(g)/6 के तहत आरोप तय किए गए।

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प्रमाण और गवाहियाँ

प्रसिद्ध गवाहों में शामिल थे:

  • पीड़िता (PW-3): उसने स्पष्ट, विस्तृत और सुसंगत रूप से घटना का वर्णन किया कि किस प्रकार आरोपी ने उसे जंगल में ले जाकर दुष्कर्म किया।
  • पिता (PW-1) और दादी (PW-2): उन्होंने गुमशुदगी और पीड़िता के बाद में दिए गए बयान की पुष्टि की।
  • जांच अधिकारी (PW-6): उन्होंने मेडिकल और फॉरेंसिक जांच समेत जांच प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया।
  • चिकित्सकीय विशेषज्ञ (PW-7 और PW-8): उन्होंने पीड़िता और आरोपी की चिकित्सकीय जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की।
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हालांकि शरीर पर बाहरी चोट के निशान नहीं मिले, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि पीड़िता का हाइमन फटा हुआ था, और फॉरेंसिक लैब रिपोर्ट में उसके स्लाइड पर मानव शुक्राणु पाए गए। हालांकि, आरोपी और पीड़िता के अंडरवियर पर कोई सीमेन नहीं मिला।

उम्र की पुष्टि

विद्यालय रजिस्टर और प्रधानाध्यापक अयोध्या प्रसाद जायसवाल (PW-5) की गवाही से पीड़िता की जन्मतिथि 03.01.2006 पाई गई। अदालत ने कहा कि यदि वैकल्पिक तिथि 03.01.2007 भी मानी जाए, तब भी पीड़िता घटना के समय 16 वर्ष से कम आयु की थी।

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कानूनी विश्लेषण

कोर्ट ने Ashwani Kumar Saxena, State of M.P. v. Preetam, Shree Kant Shekar, Alakh Alok Srivastava, B.C. Deva v. State of Karnataka, और Sonu Kushwaha मामलों का हवाला देते हुए दोहराया कि:

  • यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय और सुसंगत हो, तो केवल उसी के आधार पर दोष सिद्ध किया जा सकता है।
  • छोटी-मोटी विसंगतियाँ गवाही की विश्वसनीयता को प्रभावित नहीं करतीं।
  • मेडिकल और मौखिक गवाहियों को संयुक्त रूप से देखा जाना चाहिए।
  • POCSO मामलों में किसी प्रकार की नरमी उचित नहीं है।

कोर्ट ने Nawabuddin v. State of Uttarakhand और M.C. Mehta v. State of T.N. का भी उल्लेख करते हुए बाल यौन अपराधों के मामलों में सख्त कानूनी संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।

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अंतिम निर्णय

कोर्ट ने कहा:

“पीड़िता घटना के समय 16 वर्ष से कम आयु की थी। आरोपी ने उसका अपहरण कर उसके साथ गंभीर यौन हमला किया। उसकी गवाही, चिकित्सकीय और दस्तावेजी साक्ष्यों से पूर्णतः पुष्ट होती है। इसमें किसी संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है।”

अदालत ने निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा और आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366 और POCSO अधिनियम की धारा 3(a) सहपठित धारा 4(2) के तहत दोषी ठहराते हुए सजा को जारी रखा।

अंततः अपील खारिज कर दी गई और आरोपी को सजा पूरी करने के लिए जेल में ही रहने का निर्देश दिया गया। उसे सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के अधिकार की जानकारी दी गई।

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