राऊज एवेन्यू स्थित सेशंस कोर्ट ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) पर नोटिस जारी किया है। यह याचिका एक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती देती है, जिसमें सोनिया गांधी के खिलाफ 1980-81 की मतदाता सूची में कथित रूप से गलत तरीके से नाम शामिल करने की शिकायत को खारिज कर दिया गया था।
मंगलवार को सेशंस जज विशाल गोगने ने याचिकाकर्ता और अधिवक्ता विकास त्रिपाठी की प्रारंभिक दलीलों को सुनने के बाद यह निर्देश जारी किया। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड (TCR) भी तलब किया है ताकि कानूनी पहलुओं का विस्तार से परीक्षण किया जा सके। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी।
नागरिकता और वोटर लिस्ट का विवाद
इस कानूनी लड़ाई का मुख्य आधार यह आरोप है कि सोनिया गांधी का नाम भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से पहले ही मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पवन नारंग ने कोर्ट में तर्क दिया कि 1980-81 की मतदाता सूची में सोनिया गांधी का नाम शामिल करना ‘लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम’ (Representation of the People Act) का सीधा उल्लंघन था। कानून के अनुसार, केवल भारतीय नागरिक ही मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के पात्र हैं।
अधिवक्ता नारंग ने घटनाक्रम के समय पर सवाल उठाते हुए इसे “गंभीर अनियमितता” करार दिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि सोनिया गांधी का नाम पहले 1980 की सूची में आया, फिर हटा दिया गया, और जनवरी 1983 में दायर एक आवेदन के आधार पर 1983 में फिर से दर्ज किया गया। उनका दावा है कि ये दोनों घटनाएं उनके नागरिकता हासिल करने से पहले की हैं। नारंग ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची में नाम शामिल करवाने के लिए “दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ और फर्जीवाड़ा” किया गया होगा।
चुनाव आयोग से मिले नए सबूत
इस मामले में नया मोड़ तब आया जब याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने नए सबूत पेश किए। दरअसल, सितंबर में मजिस्ट्रेट ने मूल शिकायत को इसलिए खारिज कर दिया था क्योंकि वह मतदाता सूची की केवल फोटोकॉपी और अखबारी कतरनों पर आधारित थी, जो प्रमाणित नहीं थीं।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता नारंग ने सेशंस कोर्ट को सूचित किया कि अब उनके मुवक्किल ने चुनाव आयोग (Election Commission) से उन दस्तावेजों की सत्यापित (Attested) प्रतियां प्राप्त कर ली हैं। कथित वैधानिक उल्लंघन और फर्जीवाड़े के दावों को पुख्ता करने के लिए इन प्रमाणित रिकॉर्ड्स को अब रिकॉर्ड पर रखा गया है।
क्या था मजिस्ट्रेट का आदेश?
यह पुनरीक्षण याचिका मजिस्ट्रेट के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई है, जिसमें उन्होंने शिकायत को शुरुआती चरण में ही खारिज कर दिया था। मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा था कि शिकायत का कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है। साथ ही, उन्होंने टिप्पणी की थी कि नागरिकता और मतदाता सूची से जुड़े विवाद पूरी तरह से केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, और इन्हें आपराधिक शिकायत के माध्यम से तय नहीं किया जा सकता।
सेशंस कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करना इस बात का संकेत है कि अदालत अब यह जांच करेगी कि क्या नए प्रमाणित दस्तावेजों की रोशनी में मजिस्ट्रेट के उस फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
राज्य अभियोजक ने अधिकारियों की ओर से नोटिस स्वीकार कर लिया है। अब ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड आने के बाद 6 जनवरी को कोर्ट इस चुनौती पर आगे की सुनवाई करेगा।

