जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की जम्मू खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि मात्र भर्ती के लिए अधिसूचना जारी होने से किसी उम्मीदवार को नियुक्ति का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होता। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य अथवा चयन संस्था सभी घोषित रिक्तियों को भरने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि यह निर्णय मनमाना न हो।
न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी की एकलपीठ ने सुषांत खजूरिया बनाम जम्मू एंड कश्मीर बैंक मामले में यह टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर पद पर शेष बची रिक्तियों के आधार पर नियुक्ति की मांग की थी।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सुषांत खजूरिया ने 6 अक्तूबर 2018 को जारी अधिसूचना संख्या JKB/HR-Rectt-2020-27 & 28 के तहत जम्मू-कश्मीर बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद हेतु आवेदन किया था। याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा और साक्षात्कार दोनों में भाग लिया था।

बैंक ने कुल 175 पदों के लिए अधिसूचना जारी की थी, जिसमें से 138 अभ्यर्थियों को नियुक्त किया गया। शेष 37 पद रिक्त रह गए। इसके अतिरिक्त बैंक ने 18 अभ्यर्थियों की प्रतीक्षा सूची भी तैयार की, जिनमें से 16 ने कार्यभार ग्रहण किया। याचिकाकर्ता का दावा था कि उसकी मेरिट प्रतीक्षा सूची में शामिल कुछ अभ्यर्थियों से अधिक थी, इसलिए उसे बची हुई रिक्तियों पर नियुक्त किया जाना चाहिए।
प्रतिवादी का पक्ष
बैंक की ओर से अधिवक्ता श्री रमन शर्मा (एएजी) ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को 61.22 अंक प्राप्त हुए थे, जबकि प्रतीक्षा सूची में अंतिम अभ्यर्थी को 61.27 अंक प्राप्त हुए थे। चूंकि याचिकाकर्ता चयन सूची या प्रतीक्षा सूची, किसी में भी शामिल नहीं था, इसलिए उसे नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं प्राप्त है।
प्रतिवादी ने यह भी स्पष्ट किया कि विज्ञापन में यह शर्त थी कि केवल चयन सूची या प्रतीक्षा सूची में शामिल अभ्यर्थियों को ही नियुक्त किया जा सकता है, और यह प्रतीक्षा सूची 31 मार्च 2021 को स्वतः समाप्त हो गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय
अदालत ने शंकरसन दास बनाम भारत संघ, (1991) 3 SCC 47 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“यह कहना गलत है कि यदि कुछ रिक्तियों के लिए अधिसूचना जारी की जाती है और पर्याप्त योग्य उम्मीदवार उपलब्ध होते हैं, तो सभी सफल उम्मीदवारों को नियुक्ति का अधिकार प्राप्त हो जाता है… राज्य को सभी पद भरने का कानूनी दायित्व नहीं है।”
इसके अतिरिक्त राज्य बनाम भिखारी चरण खुंटिया, (2003) 10 SCC 144 के निर्णय का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि:
“किसी पद को भरना या न भरना एक नीतिगत निर्णय है और जब तक वह निर्णय मनमाना न हो, तब तक न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।”
अदालत ने यह भी टिप्पणी की:
“निस्संदेह, याचिकाकर्ता चयन सूची अथवा प्रतीक्षा सूची में शामिल नहीं था… अतः वह वैधानिक रूप से शेष रिक्तियों पर नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता, विशेषकर जब उसने चयन प्रक्रिया में बिना किसी आपत्ति के भाग लिया हो।”
न्यायालय ने याचिका को “पूर्णतः भ्रांतिपूर्ण” बताते हुए खारिज कर दिया और संबंधित अंतरिम आवेदन को भी निस्तारित कर दिया।