फोरम के बीच बच्चे को घुमाना असुविधाजनक और हानिकारक: केरल हाईकोर्ट ने बाल संरक्षण मामले में कहा 

केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बाल अभिरक्षा विवादों में बच्चे को अलग-अलग फोरम के बीच ले जाने की प्रथा की कड़ी आलोचना की। न्यायमूर्ति सी.एस. डियास की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसे “बच्चे के सर्वोच्च हितों के लिए हानिकारक” करार दिया। WP(C) No. 35830 of 2024 में, अदालत ने कोट्टायम के बाल संरक्षण समिति (CWC) के आदेश को रद्द कर दिया। फैसले में अधिकार क्षेत्र की स्पष्टता और कानूनी प्रक्रियाओं में बच्चे की भलाई को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया। 

पृष्ठभूमि

यह विवाद एक छोटे बच्चे की अभिरक्षा पर केंद्रित था, जिसके माता-पिता अलग हो चुके हैं और समानांतर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। याचिकाकर्ता, जो बच्चे की मां है, ने केरल हाईकोर्ट में कोट्टायम CWC द्वारा जारी एक आदेश को चुनौती दी। इस आदेश में पुलिस को उसे और उसके बच्चे को समिति के सामने पेश करने का निर्देश दिया गया था, जबकि इसी मुद्दे पर पहले से फैमिली कोर्ट, कोट्टायम में मामला चल रहा था।  

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बच्चे के पिता ने बच्चे की अभिरक्षा के लिए फैमिली कोर्ट में O.P. No. 576/2024 और CWC में O.P. No. 411/2024 के तहत कार्यवाही शुरू की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पिता द्वारा CWC में याचिका दायर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसका उद्देश्य उसे परेशान करना था, क्योंकि मामला पहले ही फैमिली कोर्ट में चल रहा था। हाईकोर्ट से राहत मांगते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि बच्चे को फोरम के बीच घुमाना हानिकारक और अनावश्यक है।

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कानूनी मुद्दे और कोर्ट की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति डियास ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर विचार किया और फैमिली कोर्ट और CWC की भूमिकाओं और सीमाओं को स्पष्ट किया:

1. फोरम के बीच बच्चे को घुमाना:  

   न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि “फोरम के बीच बच्चे को घुमाना बच्चे के सर्वोच्च हितों के लिए असुविधाजनक और हानिकारक है।” न्यायमूर्ति डियास ने कहा कि बच्चे को बार-बार अलग-अलग फोरम में ले जाने से उसकी स्थिरता और भावनात्मक संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. अधिकार क्षेत्र का टकराव:  

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   फैमिली कोर्ट, गार्जियन्स एंड वॉर्ड्स एक्ट के तहत, अभिरक्षा मामलों को सुलझाने के लिए सक्षम है। इसके विपरीत, CWC का अधिकार क्षेत्र केवल उन मामलों तक सीमित है जहां बच्चा परित्यक्त, उपेक्षित, या देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता में हो। अदालत ने पाया कि यह मामला इन मानदंडों को पूरा नहीं करता, जिससे CWC का आदेश अवैध हो गया।

3. कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग:  

   न्यायालय ने यह भी कहा कि समान याचिकाएं विभिन्न फोरम में दायर करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह न केवल विपक्षी पक्ष को परेशान करता है बल्कि न्यायिक प्रणाली की दक्षता और विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाता है।

4. CWC की सीमित भूमिका:  

   फैसले में कहा गया कि CWC अभिरक्षा विवादों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक कि माता-पिता में से कोई भी बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ न हो। ऐसे मामलों में, CWC को अपनी सीमाओं में रहना चाहिए और फैमिली कोर्ट के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।  

5. पूर्व निर्णय का संदर्भ:  

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   अदालत ने Shaiju S. बनाम बाल कल्याण समिति [2021 (6) KHC 573] का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया कि CWC तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब माता-पिता दोनों बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हों।

फैसला

हाईकोर्ट ने CWC के आदेश को रद्द करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:

– याचिकाकर्ता को CWC के समक्ष मामले की स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज करने की अनुमति दी गई।  

– CWC को इन आपत्तियों का समाधान करने तक कोई भी आगे की कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया गया।  

– CWC को बच्चे को प्रस्तुत करने के लिए जोर न देने का आदेश दिया गया।  

– फैमिली कोर्ट को अभिरक्षा मामलों में प्राथमिक और अंतिम अधिकार क्षेत्र के रूप में पुनः पुष्टि की गई।  

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