फरवरी 2020 दिल्ली दंगों की कथित साजिश मामले में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता शरजील इमाम ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत की मांग की। इमाम ने कहा कि न तो उन्होंने दंगों में भाग लिया और न ही उनका हिंसा में कोई प्रत्यक्ष रोल रहा, इसके बावजूद वह लगभग छह साल से विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बंद हैं।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ के सामने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने इमाम की ओर से दलीलें प्रस्तुत कीं। दवे ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने इमाम के खिलाफ जो एकमात्र आधार रखा है, वह उनके कथित “उत्तेजक भाषण” हैं।
दवे ने माना कि भाषण में प्रयुक्त कुछ शब्द “अप्रिय” हो सकते हैं, लेकिन सवाल उठाया कि क्या केवल भाषण से ही साजिश का अपराध सिद्ध होता है। दवे ने कहा, “क्या सिर्फ भाषण अपने आप में साजिश है? क्या यह? और यह भाषण सिर्फ एकतरफा नहीं है। मैंने आपके समक्ष दिखाया है कि वह अहिंसा की अपील करते हैं। वह कहते हैं कि मार खाओ, हमला मत करो।”
उन्होंने तर्क दिया कि इमाम को 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार कर लिया गया था, जबकि दंगे 22 से 24 फरवरी 2020 के बीच हुए। दवे ने कहा, “लगभग छह साल हिरासत में रहने के बाद आज वह आपके सामने जमानत की मांग कर रहे हैं। खासकर जब वह घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे और उन मामलों में भी आरोपी नहीं हैं जहां वास्तविक दंगे हुए।”
दवे ने कहा कि साजिश के लिए ‘मन की बैठक’ अनिवार्य होती है, जबकि इमाम दंगों से लगभग एक महीने पहले ही जेल में थे। उन्होंने बताया कि दिल्ली हिंसा से जुड़े करीब 750 प्राथमिकी दर्ज हुईं, लेकिन इमाम का नाम उनमें शामिल नहीं है। उन्होंने समानता (parity) का हवाला देते हुए कहा कि कई ऐसे लोग जिन्हें घटनास्थल पर मौजूद बताया गया और जिन्होंने कथित रूप से दंगों में हिस्सा लिया, उन्हें जमानत मिल चुकी है।
दवे ने कहा, “एक नागरिक के तौर पर मेरी उम्मीद है और मेरी प्रार्थना है कि लगभग छह साल की गिरफ्तारी विचाराधीन अवस्था में एक लंबा समय है। कृपया इसे ध्यान में रखा जाए।”
इमाम और अन्य आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, सिद्धार्थ लूथरा समेत कई वकीलों ने भी दलीलें पेश कीं। मामले की सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
इसके विपरीत, दिल्ली पुलिस ने शरजील इमाम, उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत का कड़ा विरोध किया है। पुलिस का कहना है कि फरवरी 2020 के दंगे अचानक भड़कने वाली घटना नहीं थे, बल्कि “समन्वित, पूर्व-नियोजित और भारत की संप्रभुता पर सुनियोजित हमला” थे।
उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपी यूएपीए (UAPA) तथा तात्कालिक आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामले में “2020 दंगों के मास्टरमाइंड” होने के आरोप का सामना कर रहे हैं। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। ये हिंसक झड़पें CAA और NRC के खिलाफ चल रहे व्यापक प्रदर्शनों के दौरान भड़की थीं।
आरोपियों ने दिल्ली हाई कोर्ट के 2 सितंबर के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उन्हें “बड़ी साजिश” मामले में जमानत देने से इनकार किया गया था।

