सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अदालत की ग्रीष्मकालीन आंशिक कार्य अवधि के दौरान वरिष्ठ वकीलों को मामलों की बहस नहीं करनी चाहिए, ताकि जूनियर अधिवक्ताओं को अदालत में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल सके।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) के आदेश के विरुद्ध दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान की। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी और नीरज किशन कौल उपस्थित थे।
पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा, “इन आंशिक कार्यदिवसों के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ताओं को मामलों की बहस नहीं करनी चाहिए।” अदालत का यह संदेश वकालत पेशे में नवोदित अधिवक्ताओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है।
सुनवाई के दौरान जब एक वकील ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान की अनुपलब्धता के कारण स्थगन मांगा, तब यह टिप्पणी की गई।
यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में किए गए नियमों में संशोधन के अनुरूप है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पारंपरिक ‘ग्रीष्मावकाश’ शब्दावली को अब “आंशिक कार्य दिवस” नाम दिया है। यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट (द्वितीय संशोधन) नियम, 2024 के माध्यम से किया गया, जिसे 5 नवंबर 2024 को अधिसूचित किया गया था।
नए नियमों के अनुसार, “अदालत और कार्यालयों के लिए आंशिक कार्य दिवसों की अवधि और अवकाशों की संख्या इतनी होगी जितनी मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित की जाए और राजपत्र में अधिसूचित की जाए, बशर्ते यह 95 दिनों से अधिक न हो (रविवार को छोड़कर)।”
अब तक सुप्रीम कोर्ट गर्मी और सर्दी की छुट्टियों के दौरान पूरी तरह बंद नहीं रहता था और मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित ‘वैकेंसी बेंच’ के जरिए आवश्यक मामलों की सुनवाई की जाती थी। लेकिन संशोधित नियमों में अब “वैकेंसी जज” की जगह केवल “जज” शब्द का प्रयोग किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के 2025 के कैलेंडर के अनुसार, गर्मियों की आंशिक कार्य अवधि 26 मई 2025 से 14 जुलाई 2025 तक निर्धारित की गई है।