सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उन वकीलों की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताई जो सीनियर एडवोकेट नियुक्त होने के बाद पहले से लिए गए मामलों से हट जाते हैं। न्यायालय ने इस चलन को “पूरी तरह से अनैतिक” बताते हुए कहा कि यह केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही देखा जा रहा है।
यह टिप्पणी बिश्वनाथ कुंडू बनाम सीबीआई मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने उस समय की जब वादी की ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ।
एक अन्य अधिवक्ता, जो स्वयं उस मामले में पक्षकार नहीं थे लेकिन अदालत में मौजूद थे, ने जानकारी दी कि याचिकाकर्ता के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) हाल ही में सीनियर एडवोकेट नामित हुए हैं।
इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “यह एक नई प्रवृत्ति है और मुझे लगता है कि यह बार की ओर से अनैतिक आचरण है। यदि कोई व्यक्ति सीनियर एडवोकेट बनता है, तो क्या उसे केस छोड़ देना चाहिए? अब उसे सीनियर के रूप में सहायता करनी चाहिए। उन्होंने ज़िम्मेदारी ली है। यह पूरी तरह से अनैतिक प्रथा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह व्यवहार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में देखने को मिलता है, “मैंने इस तरह की बातें सिर्फ इस न्यायालय में देखी हैं — और कहीं नहीं।”
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि एक बार सीनियर एडवोकेट नामित होने के बाद भी उन्होंने विशेष अनुमति लेकर, सरकार की स्वीकृति के साथ, एक मामले में पेशी दी थी। उन्होंने टिप्पणी की, “सुप्रीम कोर्ट में बहुत अनैतिक प्रथाएं चल रही हैं।”
एक अन्य वकील ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि कोई एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अब पेश नहीं हो सकता, तो उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने मुवक्किल को सूचित करे और जरूरी प्रक्रिया अपनाकर AoR को बदले।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने इस पर सहमति जताई लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि मामलों से इस तरह हटना बिना ज़िम्मेदारी निभाए, चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “सिर्फ यह बात संबंधित वकील को पहुंचा दें कि अदालत ने इस व्यवहार को लेकर गंभीर असंतोष व्यक्त किया है।”