सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चंडीगढ़ प्रशासन को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए शिक्षा संस्थानों में 27% आरक्षण लागू न करने पर कड़ी फटकार लगाई और चेतावनी दी कि यदि एक सप्ताह के भीतर नीति लागू नहीं की गई, तो वह केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक को अदालत में तलब करने के लिए विवश होगा।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भूषण आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजनिया शामिल थे, ने प्रशासन की निष्क्रियता पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा:
“जब केंद्र सरकार से मंजूरी मिल चुकी है, तो चंडीगढ़ प्रशासन कानून और नियम बनाने में देरी क्यों कर रहा है?”

पीठ ने स्पष्ट आदेश देते हुए कहा:
“हम एक सप्ताह का समय दे रहे हैं। इस दौरान आवश्यक नियमों में संशोधन किया जाए और प्रवेश के लिए जारी किए गए प्रोस्पेक्टस में बदलाव किया जाए। यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो हम आवश्यक कार्रवाई के लिए विवश होंगे।”
यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जिसे एक मेडिकल कॉलेज की अभ्यर्थी ने दाखिल किया था। उसने चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के एमबीबीएस पाठ्यक्रम के प्रवेश प्रोस्पेक्टस को चुनौती दी थी, जिसमें ओबीसी आरक्षण का कोई उल्लेख नहीं था। उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जाति (15%) और अनुसूचित जनजाति (7.5%) को आरक्षण मिल रहा है, लेकिन ओबीसी वर्ग को अब तक शामिल नहीं किया गया है।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि ओबीसी आरक्षण नीति को केंद्र सरकार पहले ही स्वीकृति दे चुकी है और चंडीगढ़ प्रशासन से आवश्यक कानून बनाने को कहा गया है।
“नीति को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। अब प्रशासन को कानून बनाना है,” भाटी ने कहा।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा:
“इतना समय क्यों लग रहा है? मामला वर्षों से लंबित है। प्रशासक को कोर्ट बुला लेते हैं।”
जब चंडीगढ़ प्रशासन के वकील ने प्रक्रिया पूरी करने के लिए चार और हफ्तों का समय मांगा, तो कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया।
“चार हफ्ते क्यों चाहिए? जब सक्षम प्राधिकारी कुछ करना चाहे, तो कुछ ही मिनटों में कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में मैंने एक दिन में कर दिया,” मुख्य न्यायाधीश ने कहा।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने जून 2025 के उस निर्णय का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक भर्तियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण लागू किया गया था। इसके तुरंत बाद ओबीसी, दिव्यांगजन, भूतपूर्व सैनिक और स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों के लिए भी संशोधन कर आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
“जब प्रशासनिक इच्छाशक्ति होती है, तो तुरंत निर्णय हो सकता है,” उन्होंने कहा।
वर्षों से लंबित प्रस्ताव
चंडीगढ़ में ओबीसी आरक्षण की मांग वर्षों से लंबित है। फरवरी 2024 में, नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेज (NCBC) की सिफारिश पर चंडीगढ़ प्रशासन ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन इस पर कार्रवाई के बजाय एक-दूसरे को “सक्रिय विचाराधीन” बताकर जिम्मेदारी टालते रहे।
दिसंबर 2024 की सुनवाई में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि प्रस्ताव की समीक्षा चल रही है। तब कोर्ट ने अपेक्षा जताई थी कि केंद्र शीघ्र निर्णय लेगा। लेकिन फरवरी और अप्रैल 2025 में भी केवल समय मांगा गया — पहले छह सप्ताह और फिर आठ सप्ताह — लेकिन नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया।
पंजाब विश्वविद्यालय में भी आरक्षण अधूरा
ओबीसी आरक्षण की स्थिति पंजाब विश्वविद्यालय (PU) में भी अस्पष्ट बनी हुई है। दाखिले में छात्रों को केवल 5% आरक्षण मिलता है, क्योंकि 27% आरक्षण के विस्तार को यूजीसी ने अब तक मंजूरी नहीं दी है। वहीं, फैकल्टी की भर्ती में भी ओबीसी आरक्षण लागू नहीं किया गया है, क्योंकि स्पष्ट नहीं है कि विश्वविद्यालय पंजाब सरकार की नीति माने या केंद्र की। PU अधिकारियों के अनुसार, 27% आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव फिलहाल केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के पास लंबित है।
प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट की अंतिम चेतावनी
मार्च 2024 में चंडीगढ़ प्रशासन ने NCBC की सिफारिश पर शहर के सभी शैक्षणिक, तकनीकी और चिकित्सा संस्थानों में 27% ओबीसी आरक्षण का मसौदा नीति तैयार की थी और उसे गृह मंत्रालय को भेजा था। मंत्रालय ने कुछ टिप्पणियां देकर स्पष्टीकरण मांगा, और तब से प्रस्ताव “विचाराधीन” है।
अब सुप्रीम कोर्ट के एक सप्ताह के अल्टीमेटम के साथ यह मामला निर्णायक मोड़ पर है। यदि अगली सुनवाई तक आदेश का अनुपालन नहीं हुआ, तो प्रशासनिक अधिकारियों को अदालत में उपस्थित होना पड़ सकता है।