मेरिट वाले आरक्षित उम्मीदवार स्क्रीनिंग चरण में ही सामान्य सीटों के हकदार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक रोजगार में मेरिट (योग्यता) के महत्व को रेखांकित करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि आरक्षित वर्ग (Reserved Category) के उम्मीदवार स्क्रीनिंग टेस्ट या प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य/ओपन श्रेणी (General/Open Category) के लिए निर्धारित कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त करते हैं, तो उन्हें चयन प्रक्रिया के अगले चरणों के लिए ‘सामान्य श्रेणी’ का उम्मीदवार माना जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट की न्यायिक पीठ के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कनिष्ठ न्यायिक सहायकों (Junior Judicial Assistants) और क्लर्कों की भर्ती के लिए मेरिट वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को सामान्य सूची में शामिल करने का निर्देश दिया गया था।

यह विवाद 2022 में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा 2,756 रिक्तियों के लिए शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया से उत्पन्न हुआ था। चयन प्रक्रिया में दो चरण शामिल थे: एक लिखित परीक्षा और एक कंप्यूटर आधारित टाइपराइटिंग टेस्ट।

जब 1 मई, 2023 को लिखित परीक्षा के परिणाम घोषित किए गए, तो एक अजीब विसंगति सामने आई। कई आरक्षित श्रेणियों (SC, OBC-NCL, EWS आदि) के लिए कट-ऑफ अंक सामान्य श्रेणी (196.3451) से काफी अधिक थे। परिणामस्वरूप, आरक्षित श्रेणियों के कई ऐसे उम्मीदवार, जिन्होंने सामान्य कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए थे, लेकिन अपनी संबंधित श्रेणी के उच्च कट-ऑफ को पूरा नहीं कर पाए, उन्हें टाइपराइटिंग टेस्ट के लिए योग्य उम्मीदवारों की सूची से बाहर कर दिया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

राजस्थान हाईकोर्ट ने 5 अगस्त, 2022 को कनिष्ठ न्यायिक सहायक/क्लर्क ग्रेड-II के पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। योजना के अनुसार, 300 अंकों की लिखित परीक्षा और 100 अंकों का टाइपराइटिंग टेस्ट होना था। रिक्तियों की संख्या के पांच गुना तक उम्मीदवारों को टाइपराइटिंग टेस्ट के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाना था।

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परिणामों में कट-ऑफ अंक इस प्रकार थे:

  • सामान्य (General): 196.3451
  • अनुसूचित जाति (SC): 202.4398
  • ओबीसी-एनसीएल (OBC-NCL): 230.4431
  • ईडब्ल्यूएस (EWS): 224.5384

प्रतिवादी (आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवार) ने सामान्य कट-ऑफ (196.3451) से अधिक अंक प्राप्त किए थे, लेकिन अपनी श्रेणियों के लिए निर्धारित उच्च कट-ऑफ को पूरा करने में विफल रहे। इस प्रकार उन्हें टाइपराइटिंग टेस्ट में शामिल होने का अवसर नहीं दिया गया, जबकि सामान्य श्रेणी में कम अंक वाले उम्मीदवार योग्य हो गए।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता (राजस्थान हाईकोर्ट प्रशासन) वरिष्ठ वकील द्वारा प्रतिनिधित्व करते हुए, प्रशासन ने तर्क दिया कि “माइग्रेशन” (स्थानांतरण) का नियम—जहाँ एक मेरिट वाला आरक्षित उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में चला जाता है—केवल अंतिम चयन/नियुक्ति के चरण पर लागू होता है, प्रारंभिक शॉर्टलिस्टिंग के दौरान नहीं। उन्होंने दलील दी कि स्क्रीनिंग चरण में इस नियम को लागू करने से आरक्षित उम्मीदवारों को “दोहरा लाभ” (Double Benefit) मिलेगा। इसके लिए छत्तर सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1996) के फैसले का हवाला दिया गया।

प्रतिवादी (पीड़ित उम्मीदवार) उम्मीदवारों ने तर्क दिया कि सामान्य/ओपन श्रेणी गैर-आरक्षित उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण नहीं है, बल्कि यह योग्यता के आधार पर सभी के लिए खुला एक पूल है। अधिक अंक होने के बावजूद उन्हें बाहर करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि स्क्रीनिंग चरण में उन्हें सामान्य सूची में जगह न देना वास्तव में ओपन श्रेणी को सामान्य उम्मीदवारों के लिए कोटा मानने जैसा है, जो मेरिट को दंडित करता है।

न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि “ओपन” श्रेणी केवल योग्यता के आधार पर सभी उम्मीदवारों के लिए सुलभ है।

‘ओपन’ श्रेणी की प्रकृति पर न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने पीठ के लिए फैसला लिखते हुए कहा:

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” ‘ओपन’ शब्द का अर्थ ‘खुला’ होने के अलावा और कुछ नहीं है, जिसका अर्थ है कि जिन रिक्त पदों को ‘ओपन’ के रूप में चिह्नित करके भरा जाना है, वे किसी श्रेणी में नहीं आते हैं… सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए, जो पद ओपन या अनारक्षित या सामान्य के रूप में अधिसूचित/विज्ञापित हैं, जैसा कि शब्दों से पता चलता है, वे किसी भी जाति/जनजाति/वर्ग/लिंग के लिए आरक्षित नहीं हैं और इस प्रकार, सभी के लिए खुले हैं।”

“दोहरा लाभ” का सिद्धांत खारिज कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि स्क्रीनिंग चरण में मेरिट वाले आरक्षित उम्मीदवारों को सामान्य उम्मीदवारों के रूप में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति देने से दोहरा लाभ मिलता है। कोर्ट ने कहा:

“आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को संभावित रूप से ‘दोहरा लाभ’ देने के तर्क का आधार एक गलत धारणा पर आधारित है… ऐसी स्थिति में, आरक्षित उम्मीदवार किसी भी चरण में आरक्षण का लाभ नहीं उठाता है और पूरी तरह से योग्यता के आधार पर अनारक्षित रिक्त पद पर विचार किए जाने और नियुक्त होने का हकदार है।”

योग्यता-आधारित समायोजन बनाम माइग्रेशन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार बिना किसी रियायत (Concession) का लाभ उठाए सामान्य उम्मीदवारों से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो सामान्य सूची में उनका शामिल होना योग्यता का मामला है, “माइग्रेशन” का नहीं।

“यदि कोई उम्मीदवार, मान लीजिए ‘सी’, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग का सदस्य है, लिखित परीक्षा में किसी भी आरक्षित श्रेणी से संबंधित नहीं होने वाले उम्मीदवारों से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे सामान्य/ओपन श्रेणी की शॉर्ट-लिस्ट में शामिल किया जाएगा। इस चरण पर किसी भी माइग्रेशन का कोई सवाल ही नहीं है; योग्यता ही एकमात्र मानदंड है।”

पसंदीदा पदों पर चेतावनी (Caveat) कोर्ट ने सेवा आवंटन के संबंध में एक महत्वपूर्ण बात भी जोड़ी। यदि कोई मेरिट वाला आरक्षित उम्मीदवार सामान्य उम्मीदवार के रूप में अर्हता प्राप्त करता है, लेकिन अपने आरक्षित कोटे में उपलब्ध पसंदीदा पद (Preferred Post) प्राप्त करने में विफल रहता है, तो उसे उस पद का दावा करने के लिए अपनी आरक्षित श्रेणी में वापस जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि “आरक्षण नुकसान के साधन के बजाय समावेशन के साधन के रूप में कार्य करे।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया और खंडपीठ के आदेश को बरकरार रखा।

कोर्ट ने हाईकोर्ट के निम्नलिखित निर्देशों की पुष्टि की:

  1. सामान्य/ओपन श्रेणी की सूची को सख्ती से योग्यता के आधार पर तैयार करें, जिसमें वे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार शामिल हों जिन्होंने बिना किसी विशेष रियायत का लाभ उठाए सामान्य कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं।
  2. इसके बाद आरक्षित श्रेणी की सूचियां तैयार करें।
  3. बाहर किए गए मेरिट वाले उम्मीदवारों को टाइपराइटिंग टेस्ट में शामिल होने की अनुमति दें।

कोर्ट ने अनुपालन के लिए समय सीमा दो महीने बढ़ा दी और सलाह दी कि जहां तक संभव हो, पहले से पद पर मौजूद कर्मचारियों को हटाया न जाए।

मामले का विवरण:

केस का शीर्षक: राजस्थान हाईकोर्ट और अन्य बनाम रजत यादव और अन्य

केस संख्या: सिविल अपील संख्या 14112 वर्ष 2024 (संबद्ध मामलों के साथ)

कोरम: न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

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