सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार से 2024 में किए गए धर्मांतरण विरोधी कानून के संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है। याचिका में इन संशोधनों को “अस्पष्ट” और “अत्यधिक व्यापक” बताते हुए संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया गया है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और इस मामले को उन अन्य लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ा जिनमें विभिन्न राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
यह याचिका लखनऊ की शिक्षाविद रूप रेखा वर्मा और अन्य ने दाखिल की है, जिसमें विशेष रूप से उत्तर प्रदेश निषेध धर्मांतरण अधिनियम, 2024 में किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), और 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते हैं।

यह याचिका अधिवक्ता पूर्णिमा कृष्णा के माध्यम से दाखिल की गई, जिसमें कहा गया है कि संशोधित अधिनियम की धारा 2 और 3 कानूनी रूप से अस्पष्ट हैं और यह तय करने के लिए कोई स्पष्ट मानक नहीं देतीं कि अपराध क्या है। “यह अस्पष्टता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक प्रचार के अधिकारों का उल्लंघन करती है और मनमाने ढंग से कानून लागू करने का रास्ता खोलती है,” याचिका में कहा गया।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि कानून के तहत शिकायत दर्ज करने के अधिकृत व्यक्तियों की श्रेणी का विस्तार उचित प्रक्रिया के बिना किया गया, जिससे दुरुपयोग और झूठे अभियोजन की संभावना बढ़ जाती है।
एक अन्य प्रमुख चिंता यह जताई गई है कि कानून सभी धर्मांतरणों के पीछे दुर्भावना की पूर्वधारणा बनाता है, जिससे व्यस्क व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता और निजी निर्णयों पर राज्य का हस्तक्षेप बढ़ता है। “सरकार यदि धार्मिक पहचान की रक्षक बनने लगे, तो यह व्यक्ति की अपनी आस्था चुनने की स्वतंत्रता का हनन है,” याचिका में कहा गया।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि कानून में निर्धारित दंड अनुचित और अत्यधिक हैं, जो कथित अपराध की गंभीरता से अनुपातहीन हैं। उन्होंने धारा 5 पर भी आपत्ति जताई, जिसमें महिलाओं की कथित “असुरक्षा” को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, जिससे उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निर्णय क्षमता पर चोट होती है।
राज्य के वकील ने अदालत को बताया कि इसी तरह की याचिकाएं पहले से ही भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष लंबित हैं, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि उनकी याचिका केवल 2024 के संशोधनों तक सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 2 मई को इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी। अब यह मामला अन्य राज्यों के धर्मांतरण कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ मिलाकर सुना जाएगा।