सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025 को चुनौती देने वाली सभी लंबित याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया। अब देशभर के किसी भी हाई कोर्ट में इस कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर कोई नई याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार की ट्रांसफर याचिका स्वीकार करते हुए आदेश दिया—
“ट्रांसफर याचिका स्वीकार की जाती है और सभी कार्यवाहियां इस न्यायालय में स्थानांतरित की जाती हैं… यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी अन्य हाई कोर्ट उक्त कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार नहीं करेगा।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि कर्नाटक, दिल्ली और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं लंबित हैं। अलग-अलग अदालतों से परस्पर विरोधी आदेश आने की संभावना को रोकने के लिए कार्यवाहियों का केंद्रीकरण आवश्यक है।

जिन याचिकाओं को ट्रांसफर किया गया है, वे हेड डिजिटल वर्क्स प्रा. लि., बाघीरा कैरम (ओपीसी) प्रा. लि. और क्लबबूम11 स्पोर्ट्स एंड एंटरटेनमेंट प्रा. लि. द्वारा दायर की गई थीं। इन सभी ने कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए इसे अनुच्छेद 14, 19(1)(g) और 21 का उल्लंघन बताया है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि संसद के पास ऐसा कानून बनाने की विधायी क्षमता नहीं है और यह अधिनियम कौशल-आधारित और भाग्य-आधारित खेलों के बीच के अंतर को नजरअंदाज करता है।
केंद्र ने कहा कि यदि विभिन्न अदालतें अलग-अलग निर्णय देती हैं तो पूरे देश में कानून के प्रवर्तन को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा होगी। यह कानून पूरे भारत में लागू है और विदेश से संचालित सेवाओं पर भी असर डालता है, इसलिए इसकी वैधता पर अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट को ही देना चाहिए।
अगस्त 2025 में पारित ऑनलाइन गेमिंग एक्ट के तहत वास्तविक धन पर आधारित ऑनलाइन खेलों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। सेवा प्रदाताओं के लिए तीन साल तक की सजा और ₹1 करोड़ तक का जुर्माना तथा विज्ञापनदाताओं/प्रमोटरों के लिए दो साल तक की सजा और ₹50 लाख तक का जुर्माना निर्धारित है। वहीं दूसरी ओर, यह अधिनियम ई-स्पोर्ट्स और सामान्य ऑनलाइन गेमिंग को प्रोत्साहन भी देता है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून वैध कारोबार को बुरी तरह प्रभावित करता है। हेड डिजिटल वर्क्स, जो A23 नामक ऑनलाइन रमी और पोकर प्लेटफॉर्म चलाती है, ने तर्क दिया कि दशकों से चली आ रही न्यायिक व्याख्याओं को नज़रअंदाज़ कर blanket ban लगाया गया है। इसी तरह बाघीरा कैरम ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि जब तक सरकार किसी प्राधिकरण को नियुक्त कर यह स्पष्ट नहीं करती कि कौन सा खेल किस श्रेणी में आएगा, तब तक उनका संचालन असमंजस में है।