सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई जिसमें उसने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें निजी अनुदानरहित स्कूलों को आरटीई (निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) कानून के तहत प्रतिपूर्ति करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र सरकार और हाईकोर्ट में मूल याचिकाकर्ता से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
मद्रास हाईकोर्ट ने 10 जून को दाखिल याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि शैक्षणिक सत्र 2024–25 के लिए आरटीई अधिनियम के तहत प्रवेश प्रक्रिया शुरू करने की जिम्मेदारी राज्य की है। अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 7(5) के अनुसार, इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।

हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को “अप्रतिहर्तव्य दायित्व” के तहत स्कूलों को प्रतिपूर्ति करने का निर्देश देते हुए टिप्पणी की थी कि “केंद्र सरकार से धनराशि न मिलने को राज्य अपनी वैधानिक जिम्मेदारी से बचने का कारण नहीं बता सकता।”
अदालत ने साथ ही केंद्र सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने का निर्देश दिया और कहा कि “केंद्र सरकार आरटीई घटक को समग्र शिक्षा योजना (SSS) से अलग कर राशि जारी करने पर विचार करे।”
तमिलनाडु सरकार के वकील ने दलील दी थी कि निजी स्कूलों को प्रतिपूर्ति मिलना उनका अधिकार है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी राज्य और केंद्र दोनों पर साझा रूप से होनी चाहिए। राज्य ने कहा कि उसे केंद्र से उसका वैध बकाया नहीं मिला, जिसके कारण स्कूल प्रबंधन को समय पर भुगतान नहीं किया जा सका।
इस तर्क को देखते हुए हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाया। वहीं केंद्र ने अपनी ओर से कहा कि वह सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन समग्र शिक्षा योजना एकीकृत योजना है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है। केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 7(5) के तहत प्राथमिक दायित्व राज्यों का है।