सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पर की गई टिप्पणी को हटाया; हत्या के आरोपी की जमानत शर्त में ढील देने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में आरोपी एसके मो. अनिसुर रहमान की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग की थी। आरोपी ने अदालत से अनुरोध किया था कि उसे कोलकाता शहर से बाहर जाने और अपने गृह जिले ‘पूर्व मेदिनीपुर’ में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने न केवल आरोपी की मांग को ठुकराया, बल्कि पीड़ित के भाई द्वारा दायर उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें आरोपी की जमानत रद्द करने की मांग की गई थी। एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट (ट्रायल कोर्ट) द्वारा स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (SPP) के खिलाफ की गई “सख्त टिप्पणियों” को हटा दिया और पश्चिम बंगाल के लीगल रिमेम्ब्रेन्सर को भेजे गए संदर्भ (reference) को रद्द कर दिया।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला पांसकुरा पुलिस स्टेशन केस संख्या 496/2019 से जुड़ा है, जो 8 अक्टूबर 2019 को दर्ज किया गया था। इसमें आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 120B (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए थे। आरोप है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते आरोपी एसके मो. अनिसुर रहमान ने साजिश रचकर कुरबान शाह की हत्या करवाई।

इस केस का कानूनी इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है:

  • केस वापस लेने की कोशिश: फरवरी 2021 में, राज्य सरकार ने अभियोजन वापस लेने का निर्देश दिया था, जिसे बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
  • ट्रायल का ट्रांसफर: 17 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि राज्य सरकार आरोपी की मदद करने के लिए “यू-टर्न” ले रही है। निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए केस को तमलुक कोर्ट से हटाकर ‘सिटी सेशंस कोर्ट, कलकत्ता’ के चीफ जज के पास ट्रांसफर कर दिया गया था।
  • जमानत की शर्त: 3 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने आरोपी को 5 साल से अधिक समय तक जेल में रहने के आधार पर जमानत दी थी, लेकिन यह सख्त शर्त लगाई थी कि वह “रिहाई के बाद कोलकाता शहर तक ही सीमित रहेगा।”
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कोर्ट में क्या दलीलें दी गईं?

आरोपी (अनिसुर रहमान) का पक्ष: वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने तर्क दिया कि आरोपी को कोलकाता तक सीमित रखना अनुच्छेद 21 के तहत उनके स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है। उन्होंने कहा कि आरोपी अपने बीमार माता-पिता की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं और अपने रिश्तेदारों के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रायल लगभग पूरा होने वाला है, इसलिए अब सबूतों के साथ छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं है।

शिकायतकर्ता (पीड़ित के भाई) का पक्ष: वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया ने जमानत रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि आरोपी को “राजनीतिक संरक्षण” प्राप्त है। उन्होंने दलील दी कि गवाहों को डराया-धमकाया जा रहा है, जिससे वे मुकर रहे हैं (hostile हो रहे हैं)। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि जमानत पर होने के बावजूद, पूर्व मेदिनीपुर के पुलिस अधीक्षक (SP) ने आरोपी को सुरक्षा मुहैया कराई है, जो दिखाता है कि उसे विशेष लाभ दिया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला

1. अदालती आदेशों की अंतिमत्ता (Finality): बेंच ने जमानत की शर्त में संशोधन करने से इनकार करते हुए कहा कि न्यायिक आदेशों में स्थिरता होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि बेंच बदल गई है, पिछले आदेश को पलटना सही नहीं होगा। जस्टिस दत्ता ने फैसले में लिखा कि पिछली बेंच ने लंबे समय तक हिरासत और सख्त शर्तों के बीच संतुलन बनाते हुए ही जमानत दी थी।

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2. जमानत रद्द करने की मांग पर: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस केस में राज्य का आचरण कई बार ऐसा लगा जैसे वह “आरोपी का मददगार” बन गया है और गवाहों का मुकरना एक “कड़वा अनुभव” है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि वर्तमान में आरोपी सीधे तौर पर ट्रायल को प्रभावित कर रहा है। इसलिए, इस चरण पर जमानत रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है।

3. ट्रायल कोर्ट की टिप्पणी पर सख्त रुख (Postscript): सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर 2025 को सेशन कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई। ट्रायल जज ने अतिरिक्त गवाहों को बुलाने की अर्जी दायर करने पर स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (SPP) के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की थी और उन्हें “सुस्त और उदासीन” (torpid and indifferent) कहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों को “पूरी तरह से अनुचित और अनावश्यक” करार दिया। कोर्ट ने कहा:

“स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के दृष्टिकोण को सुस्त और उदासीन कहना, पहल की कमी के लिए उनकी अन्यायपूर्ण आलोचना करना है… सेशन कोर्ट को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस अभियोजक की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हुई है।”

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि कानूनी कहावतों (Legal Maxims) का उपयोग तभी होना चाहिए जब संदर्भ इसकी मांग करे, उनका अत्यधिक उपयोग मुख्य मुद्दे से ध्यान भटका सकता है।

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निष्कर्ष और निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की अर्जियों का निपटारा करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए:

  1. संशोधन खारिज: आरोपी को कोलकाता तक सीमित रखने की शर्त बरकरार रहेगी। कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी को अपने गृह जिले में जान का खतरा है, तो उसका कोलकाता में रहना ही बेहतर है।
  2. जमानत रद्दीकरण खारिज: पीड़ित पक्ष की जमानत रद्द करने की याचिका खारिज कर दी गई।
  3. टिप्पणी हटाई गई: सेशन कोर्ट द्वारा स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों और राज्य सरकार को भेजे गए संदर्भ को निरस्त (Set aside) कर दिया गया।
  4. ट्रायल का निर्देश: सेशन कोर्ट को कानून के अनुसार ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले निर्धारित की गई समय-सीमा को लेकर अत्यधिक चिंतित होने के बजाय निष्पक्ष सुनवाई पर ध्यान देना चाहिए।

केस का विवरण:

  • केस शीर्षक: एसके मो. अनिसुर रहमान बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 43/2025
  • कोरम: जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

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