सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गोवा के म्हादई-कोटीगांव क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा संभावित बाघ अभयारण्य के रूप में चिह्नित किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि इस दौरान किसी भी परियोजना या विकास कार्य की अनुमति नहीं होगी। अदालत ने एक केंद्रीय सशक्त समिति को सभी हितधारकों की सुनवाई कर छह हफ्तों के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एनजीओ गोवा फाउंडेशन की याचिका पर आदेश दिया था कि राज्य सरकार म्हादई वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के क्षेत्रों को तीन महीने के भीतर बाघ अभयारण्य घोषित करे और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत बाघ संरक्षण योजना तैयार करे।

हाईकोर्ट ने महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा था: “यदि जंगल नहीं रहेगा तो बाघ मर जाएगा; और यदि बाघ नहीं रहेगा तो जंगल नष्ट हो जाएगा। इसलिए, बाघ जंगल की रक्षा करता है और जंगल बाघ की।”
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि—
- छह महीने के भीतर वन रक्षकों और चौकीदारों के साथ रणनीतिक स्थानों पर एंटी-पोचिंग कैंप स्थापित किए जाएं।
- बाघ अभयारण्य की अधिसूचना लंबित रहने के दौरान और भविष्य में भी वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में अतिक्रमण न होने दिया जाए।
208 वर्ग किलोमीटर में फैला म्हादई वन्यजीव अभयारण्य गोवा के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है और इसकी सीमा कर्नाटक से लगती है। NTCA ने लंबे समय से इसे बाघ अभयारण्य घोषित करने की सिफारिश की है, लेकिन प्रक्रिया कानूनी और प्रशासनिक अड़चनों के चलते लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद अब इस क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित किए जाने का निर्णय केंद्रीय सशक्त समिति की रिपोर्ट पर निर्भर करेगा, जो छह हफ्तों में आने वाली है।